सावन की कविता

सावन 

कोयल ने छेड़े हैं पंचम
मलयानिल की देखो बही बयार
प्रकृति की सरगम को सुनकर
हृदय में उठ रहे विविध ज्वार 

सावन
सावन

         
करुणासिक्त हुआ मेरा मन
पल्ल्वित पुष्पित हुआ सारा तन   
अल्हड़ता सी छायी बेलों पर
अब हो जाने दो मधुर मिलन 
       
वर्षाकी पड़ी मध्य्म फु हाड़     
पंछी का मीठा कलरव है
भौरों की गुंजन से देखो !
आया ये कैसा उत्सव है 
         
हरियाली हर तरफ दिखी
वन उपवन सारे  खिल से गए
जीवन  के सभी रंग जैसे
इंद्रधनुष  में मिल से गए |

– प्रतिभा ठाकुर 
मधुबनी 

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