भारतगान – रमाशंकर सिंह ‘दिव्यदृष्टि’
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भारतगान कविता का सारांश मूल भाव
प्रस्तुत पाठ या कविता भारतगान , कवि रमाशंकर सिंह ‘दिव्यदृष्टि’ जी के द्वारा रचित है। इस कविता के माध्यम से कवि रमाशंकर जी ने भारत भूमि का गुणगान किया है। इस भूमि की प्राकृतिक छटा, विराटता और समृद्धता का वर्णन किया गया है। भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान की चंद्रमा तक पहुँच और वैज्ञानिकों का उल्लेख किया गया है। कवि ने इस पाठ में अनेकता में एकता का भी बखान किया है….. ।।
भारतगान कविता का भावार्थ व्याख्या
दुनिया में सबसे न्यारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
सारे जगत को अपना परिवार मानता है,
इस नीति को हमारी संसार जानता है,
सद्भाव का सितारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रमाशंकर सिंह ‘दिव्यदृष्टि’ द्वारा रचित कविता भारतगान से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने देश भारत के प्रति अपना प्रेम और लगाव प्रदर्शित कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि हमारा भारत देश पूरी दुनिया में सबसे न्यारा और महान है, जो मुझे जान से भी प्यारा है। कवि कहते हैं कि हमारा भारत सारे संसार को अपना परिवार मानता है, जिसे पूरी दुनिया जानती है। भारत अपनी सद्भावना के लिए भी जाना जाता है। अतः हमारा देश भारत अपनी जान से भी प्यारा है।
सबको सखा समझकर संशयरहित सुकोमल,
जितने वसुंधरा पर हैं दीन-हीन-दुर्बल,
देता उन्हें सहारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
धरती पे स्वर्ग की है यदि कल्पना कहीं पर,
वह मूर्त रूप लेती सच मानिए यहीं पर,
कश्मीर का शिकारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रमाशंकर सिंह ‘दिव्यदृष्टि’ द्वारा रचित कविता भारतगान से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने देश भारत के प्रति अपना प्रेम और लगाव प्रदर्शित कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि इस धरती पर समस्त दीन-हीन, असहाय लोगों को सहारा व सम्मान देना हम अपना फ़र्ज़ समझते हैं। इसलिए हमारा महान भारत अपनी जान से भी प्यारा है। अंतिम चार पंक्तियों के माध्यम से कवि अपनी बातों पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग की कल्पना की जाए तो सच मानिए तो एकमात्र कश्मीर घाटी है, जो भारतभूमि पर स्थित है। इसलिए हमें हमारा भारत अपनी जान से भी प्यारा है।
दक्षिण सतत सुनाए सागर समृद्धि लहरी,
पूरब प्रकाश द्वारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
स्वाधीनता दिलाए इसको सपूत गाँधी,
विज्ञान की जवाहर इसमें बहाए आँधी,
तकनीक का पिटारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रमाशंकर सिंह ‘दिव्यदृष्टि’ द्वारा रचित कविता भारतगान से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने देश भारत के प्रति अपना प्रेम और लगाव प्रदर्शित कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि इस मातृभूमि (भारत) की उत्तर दिशा की रक्षा हिमालय पर्वत करता है, जो वहाँ एक वीर, कर्मठ और सक्षम पहरेदार की तरह खड़ा है। दक्षिण में सागर की लहरें हुँकार भरती रहती हैं। भारत के पूरब दिशा में सर्वप्रथम सूरज उदित होता है। इसलिए हमें हमारा भारत अपनी जान से भी प्यारा है। अंतिम चार पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि भारत के महान सपूत महात्मा गाँधी ने अंग्रेज़ों की गुलामी से देश को आज़ाद करवाया तथा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के रूप में हमारी नीतियों में ज्ञान-विज्ञान को अधिक से अधिक स्थान मिला। कवि भारत को तकनीक का पिटारा की संज्ञा भी देते हुए कहते हैं कि इसलिए तो हमें हमारा भारत अपनी जान से भी प्यारा है।
इस तथ्य को कदाचित विद्यार्थियों न बिसरो,
स्पेस को खंगाले दिन-रात मित्र ‘इसरो’,
ब्रह्माण्ड का इशारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
जल, जीव और जीवन-संभावना शशि पर,
वैज्ञानिकों की टोली है खोजती निरंतर,
दे चंद्रयान नारा अपना महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
जिनके प्रयत्न से ये उपलब्धियाँ मिली हैं,
उनका ऋणी यहाँ का हर फूल हर कली है,
है कल्पना, सुनीता का यह महान भारत,
है जान से भी प्यारा अपना महान भारत।
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रमाशंकर सिंह ‘दिव्यदृष्टि’ द्वारा रचित कविता भारतगान से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने देश भारत के प्रति अपना प्रेम और लगाव प्रदर्शित कर रहे हैं। कवि प्रथम चार पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि विद्यार्थियों को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इसरो अर्थात् भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद् के वैज्ञानिक लगातार ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रहों- नक्षत्रों की पड़ताल में लगे हुए हैं, ताकि यह ज्ञात हो सके कि वे हमारे लिए कितना उपयोगी हैं या भविष्य में बन सकते हैं। तत्पश्चात् आगे कवि कहते हैं कि हमारे वैज्ञनिकों का समूह यह जानने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं कि चाँद पर जल, जीव और जीवन की संभावनाएँ हैं या नहीं। इसी उद्देश्य को साधते हुए हमारा चंद्रयान चंद्रमा तक की यात्रा भी कर चुका है। अंतिम चार पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि हमारे देश को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी बनानेवालों का, वैज्ञानिकों, अभियांत्रिकों, दार्शनिकों, शिक्षाशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों आदि का इस देश का बच्चा-बच्चा या हर नागरिक उपकार मानता है या ऋणी है। भारतभूमि कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी अंतरिक्ष यात्रियों की जन्मभूमि है। इसलिए हमें हमारा भारत अपनी जान से भी प्यारा है।
भारतगान कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1- ‘सारे जगत को परिवार मानता है’ – कविता में ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर- वसुधैव कुटुंबकम अर्थात् पूरा विश्व एक कुटुंब है या परिवार है – इस विचारधारा का सूत्रपात भारत उस प्राचीन समय में ही कर चुका था, जब वैश्वीकरण के बारे में किसी ने कल्पना भी न किया होगा। इसलिए कविता में ऐसा भाव प्रकट करते हुए कहा गया है कि भारत सारे जगत को परिवार मानता है।
प्रश्न-2- ‘धरती पे स्वर्ग की है यदि कल्पना कहीं पर’ – कविता में ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर- स्वर्ग से आशय हर किस्म के सुखों की अनुभूति से है अर्थात् हरियाली, झीलें, मीठे फल, पुष्प से लदे खुबसूरत बाग़, जहाँ देवता शिकारों में बैठकर जल-विहार करते हों इत्यादि। और इस तरह की कल्पना को सच साबित करता है कश्मीर, जो भारतभूमि में स्थित है। इसलिए प्रस्तुत कविता के कवि अपनी बातों पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि यदि धरती पर स्वर्ग कहीं पर है, तो भारतभूमि पर है।
प्रश्न-3- हिमालय को वीर-धीर प्रहरी क्यों माना जाता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, हिमालय को वीर-धीर प्रहरी इसलिए माना जाता है, क्योंकि उत्तर से लेकर पूर्व तक विस्तृत हजारों मील फैली हिमालय पर्वत श्रृंखला प्राकृतिक रूप से दुश्मनों से हमारी रक्षा करती है।
प्रश्न-4- ‘पूरब प्रकाश द्वारा’ का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर- वास्तव में ऐसी मान्यता है कि भारत के पूर्व दिशा (अरुणाचल प्रदेश) में सर्वप्रथम सूर्य उदित होता है, जिसके पश्चात् वह अन्यत्र फैलता है।
प्रश्न-5- भारत को धरती का स्वर्ग क्यों कहा जाता है ?
उत्तर- भारत को धरती का स्वर्ग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि भारत भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामजिक, बौद्धिक, धार्मिक, आर्थिक इत्यादि दृष्टिकोण से समृद्ध व संपन्न है। यहाँ अनेकता में एकता का प्रगाढ़ स्वरूप देखने को मिलता है, जो कहीं न कहीं अन्य देशों के लिए आकर्षण का विषय भी है।
प्रश्न-6- हमें किनका ऋणी होना चाहिए और क्यों ?
उत्तर- वास्तव में जिस किसी ने भी भारत को महान व समृद्ध बनाने के लिए अपना बलिदान व योगदान दिया है, हमें उनका ऋणी होना चाहिए।
प्रश्न-7- ‘जल, जीव और जीवन-संभावना शशि पर’ – भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह भाव बताने का प्रयास किया है कि जिस तरह से चंद्रयान के द्वारा हमारे वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हासिल किए हैं, अब वह दिन दूर नहीं जब हमारे वैज्ञानिक चंद्रमा पर जल, जीव और जीवन को खोजकर बस्तियाँ बनाने में सफल होंगे।
प्रश्न-8- कल्पना और सुनीता कौन हैं ?
उत्तर- कल्पना अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला है और सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में जाने वाली दूसरी भारतीय महिला है।
व्याकरण-बोध
प्रश्न-9- निर्देशानुसार उत्तर विकल्पों में से छाँटकर लिखिए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –
…दिवाकर… शब्द आकाश का पर्यायवाची नहीं है।
सागर का पर्यायवाची है – सिंधु
कौन-सा शब्द धरती का पर्यायवाची है ? – वसुंधरा
कौन-सा शब्द पानी का पर्यायवाची नहीं है ? – वारिज
गंगा हिमालय से निकलती है। गंगा के स्थान पर कौन-सा शब्द आ सकता है ? – भागीरथी
प्रश्न-10- हिमालय को यदि हिम + आलय लिखा जाए तो नीचे लिखे शब्दों को कैसे लिखा जाएगा –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है –
रत्नाकर – रत्न + आकर
स्वाधीनता – स्व + आधीनता
धर्मात्मा – धर्म + आत्मा
दिवाकर – दिवा + आकर
धर्माधर्म – धर्म + अधर्म
विद्यार्थी – विद्या + अर्थी
नित्यानंद – नित्य + आनंद
वार्तालाप – वार्ता + आलाप
दयानंद – दया + आनंद
सत्यार्थ – सत्य + अर्थ
भारतगान कविता के शब्दार्थ
सद्भाव – सज्जनता
न्यारा – जो बिलकुल अलग हो, अपूर्व, विचित्र
संशयरहित – संदेशरहित
शिकारा – कश्मीरी लंबी नाव जिसके बीच में बैठने का छायादार स्थान होता है
मूर्त – ठोस, साकार
बिसरो – भूलो
तकनीक – टेक्नोलॉजी
स्पेस – अंतरिक्ष
इसरो – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
चंद्रयान – चंद्रमा पर पहुँचा भारत का पहला अंतरिक्ष यान
ऋणी – कर्ज़दार।