मुसीबतों से न घबराना

मुसीबतों से न घबराना

जीवन में आती है
कभी – कभी
मुस्किलों भरी हालात,
जिनसे उबरने
के लिए बहुत कुछ
सहना पडता है
बहुत कुछ
खोना भी पड़ता है।
अगर बिना डरे

जीवन

सच्चे मन से
कर्म करते रहें
तो  परवरदिगार
की कृपा भी
 मिल जाती है,
फिर छंटने लगती है
हमारे मन के भीतर
फैले अंधकार की
बदसूरत  कालिमा।

हमें उस डगर
पूरे मन से चलना है,
किसी भी कष्ट की
परवाह किए बिना,
जो जीवन मे आए
मुस्किलों से निपटने की
शक्ति देते हैं।
जब हम जीवन के
कर्म पथ पर
निरंतर आगे
 बढ़ने के लिए,
आने वाली मुस्किलों को
नजरअंदाज करने की
ठान लेते हैं
तो खुद ही
मुश्किलें हमारा रास्ता
छोड़ देती हैं।
तब हमे कोई
अपने जीवन में
खुशियां ,उल्लास
उजाले  भरने से
रोकने की हिम्मत
नहीं कर सकता।

जो मुसीबतों से
घबराकर भी
अपने अंदर उससे
टकराने की,
लड़ने की भरपूर
ताकत रखता है,
तब जीवन में
आनेवाली हर मुसीबत
खुद-ब-खुद घुटने
टेकने लगते हैं।
फिर जीवन में
बहारों का आगमन
होने लगता हैं
और मन के
भीतर फैले अंधकार की
बदसूरत कालिमा पर
धीरे-धीरे दिनकर की
लालिमा अपना
आधिपत्य जमा लेती
तब जीवन
खूबसूरत बहारों संग
अठखेलियां
करने लगता है ।

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 चढ़ने लगा दिवस रंग
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आकाश सा असीमित
उसका प्यार,
सूरज सा आलोकित
उसका संसार ,
पर कभी कभी
आसमान पर भी
गंभीर कारी कारी
बदली छा जाती
और दिन के उजाले
में भी अंधियारा
फैला देती ,
सूरज को भी
अपने आगोश में
समेट कर
ओझल कर देती,
पर सूरज तो सूरज है

 रेणु रंजन
 रेणु रंजन 

उसके तेज के आगे
कौन टिक पाता?
वैसे ही उस बदली
का भी अस्तित्व
ज्यादा दिनों
का नहीं होता ,
हवाएं जब अपने
उफान पर होती
सबको अपने साथ
बहा ले जाती ।
फिर अंधियारे को भगा
उजाला फैल जाती
अपने आसमान के
चारों ओर
सूरज के चेहरे भी
खिल जाते,
फिर दिखने लगता
दूर क्षितिज पर
इंद्रधनुषी रंगों संग
धरती आसमान का
मधुर मिलन
जैसे कोई अति व्याकुल
प्रेमियों की जोड़ी हो ।
ऐसे ही उसके
प्रेममयी घर -संसार
से भी बदली की
कारी छाया
छंटने लगी है,
और मधुर मिलन
पर दिवस का रंग
चढ़ने लगा है।
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  रेणु रंजन 
                      शिक्षिका 
                      रा0 प्रा0 वि0 नरगी जगदीश 
                      सरैया, मुजफ्फरपुर ।।।।

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