जीना इसी का नाम है – मंगल ज्ञानानुभाव

किसी का दर्द ले सके तो ले उधार …….जीना इसी का नाम है. अनाड़ी फिल्म  का ये गीत जब मैंने सुना तो मानो ऐसा प्रतीत हुआ  जैसे जीवन दर्शन की व्याख्या कर दी हो किसी ने. आज के व्यस्त जीवन चर्या में कुछ पल अगर हम अपने साथ बिताएँ तो ज्ञात होगा की एक शून्य  हमारे अंतर्मन में है हम अपने व्यवसायिक जीवन में इतना व्यस्त हैं की हमार व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पक्ष अँधेरे में ही दम तोड़ देता है. प्रकृति के सिद्धांत हम पर लागू हो रहे हैं प्रतिपल पर हम जैसे नशे में अपनी जिंदगी जिए जा रहे हैं. महान विचारक कृष्णमुर्ती का कहना था “मैं नास्तिक हुआ करता था फिर मैंने जाना मैं ही ईश्वर हूँ- I used to be atheist till I realized I was god”. पूर्णतः खुलने खिलने और खेलने के लिए आवश्यक मात्र जागरूक होना है.
बस समझ  होनी चाहिए की हर इंसान  अपार संभावनाओं का जीवंत उदाहरण है और एक शक्तिशाली ज्ञान कोष भी सृजन की असंख्य पहलु उसके व्यक्तित्व की पहचान है. ईश्वरीय उर्जा श्रोत से तारतम्य साध कर सम्पूर्ण ब्रम्हांड के सृजन की छमता भी. मशीनी जीवन शैली में कैसे ढूंढें हम उस अनमोल गुण को जो हमारी विशेषता है जो हम पुरे ऊर्जा और उमंग के साथ अभिव्यक्त कर सकें जिसमे हमें आनंद की अनुभूति हो. इस गीत के हर शब्द अनमोल हैं और जीवंत आध्यात्म भी.
मनन के लिए  इतना ही सत्यान्वेषी

यह रचना रणजीत कुमार मिश्र द्वारा लिखी गयी है। आप एक शोध छात्र है। इनका कार्य, विज्ञान के क्षेत्र में है . साहित्य के क्षेत्र में इनकी अभिरुचि बचनपन से ही रही है . आपका उद्देश्य हिंदी व अंग्रेजी लेखनी के माध्यम से अपने भाव और अनुभवों को सामाजिक हित के लिए कलमबद्ध करना है।

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