अनाथ लड़की
रेलगाड़ी की खिड़की से
निहारती मन की आंखों से
वह लड़की कितनी मासूम
लग रही थी।
रेणु रंजन |
मानो उसका बचपन
कहीं खो चुका था
और उसमें बुजुर्गों सा
खालीपन भर चुका था।
उसकी किलकारी
न जाने कहां
गुम हो रही थी
और वह शुन्य निगाहों से
एकटक खिड़की से बाहर
तेजी से भागते
पेड़ों झाड़- झंखारों को
देख रही थी।
पास ही बैठी एक
बुजुर्ग महिला
बार बार उसके
माथों और बालों को
अपनी कांपती हाथों से
सहला रही थी ।
मै काफी देर से
उसकी उदासीनता
को परख रही थी
जब रहा नही गया तो
पुछ बैठी उस
महिला से “ये कौन है मां?”
वह बुजुर्ग महिला अपनी
कांपती आवाज से
बोलने लगी,
“क्या करोगी जानकर,
क्या इसके दुख हर लोगी?”
मेरा मन शंकित हो उठा
बोली “बताइए अगर हो सका
तो हरने की कोशिश करूंगी। “
तो सुनो यह एक अनाथ है
भटकती हुई स्टेशन
पर ही मिली थी,
खुब रो रही थी।
मैने पुछा तो बताई
“मेरी सौतेली मां और बाप
मुझे स्टेशन पर ही
रोता छोड़ गए।”
जब इसके मां बाप है ही
तो यह अनाथ कैसे?
गंभीर उच्छ्वांस भर
वह महिला बोल पड़ी
“इसके मां बाप कहां
वो तो जीते जी ही मर गए,
तो यह अनाथ नही
तो और क्या?