बूढ़ा बरगद
बूढ़े बरगद के साये में बहुत सारे छोटे-छोटे पेड़-पौधे आराम से फल-फूल रहे थे। कभी जोरदार आंधी आती, कभी खूब ज़ोरों की बारिस होती और कभी झुलसने वाली तेज धूप। बूढ़ा बरगद अपने साये तले पलने वाले हर
पेड़-पौधे, घास-फूस की इन सबसे रक्षा करता था।
एक दिन कुछ नए पेड़-पौधे आपस में बातें कर रहे थे। एक नवजवान पौधा बोल रहा था—“ये बूढ़ा बरगद कितनी लंबी-चौड़ी जगह छेक कर खड़ा हुआ है।हमें आगे बढ्ने कमौका ही नहीं देता। न हमें सूरज की धूप मिलती है न बारिस की बौछार ।‘
हवा भी तो हमें प्रयाप्त मात्रा में नहीं मिलती। घुटन सा महसूस होता है । “ एक मरियल सा पौधा बोला। हमारे हिस्से का तो बहुत सार्स यही ले लेता है।“
बूढ़े बरगद ने इन लोगों की बातें सुन ली। उसने कहा—“कौन किसके हिस्से का डूप लेता है? कौन किसके हिस्से का पानी। ये थोड़े दिनों के बाद ही पता चल जाएगा। बहुत दिन रहा इस धरा पर अब मेरा समय आ गया है। मेरे जाने के बाद तुम्हें सब मालूम हो जाएगा। “
कुछ दिनों के बाद बरगद का पेड़ सुख गया। अब जब उन पौधों पर तेज धूप, बरसात, बड़े-बड़े ओले सीधे-सीधे पड़ने लगे तो उन्हें मालूम हुआ कि बूढ़े बरगद के साये में हम कितने आराम से रहते थे। कोई धूप से कुंभलाने लगा तो कोई आँधी-तूफान से गिरने और उखड़ने लगा। कोई ओले से गंजा होने लगा। तो कोई पशु-पक्षियों के भोजन और आवास से परेशान होने लगा। बूढ़े बरगद का महत्व अब उन्हें समझ में आने लगा था ।
– दिनेश चन्द्र प्रसाद “दीनेश”
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