कोरोना का डर पर कविता

 कोरोना

कोरोना का ऐसा साया 
पूरी पृथ्वी पूरे  ब्रह्मांड को
लील गया
हाय !!! इसका डर कितना दर्द दे गया

कोरोना का डर पर कविता

मिलना जुलना ये लील गया
हाथ से हाथ मिलाना ये भुला गया
हर एक मित्र अब दुश्मन बन गया
हाय!!! इसका डर कितना दर्द दे गया

पहले पानी को  तरसते थे
इसे बचाने की मुहिम चलाते थे
अब हवा को भी कीमती बना गया
हाय!!इसका डर कितना दर्द दे गया

शिक्षा ;काम ;खाना पीना
घूमना घुमाना: खाया पिया पचाना
सब कुछ चारदीवारी में सिमट गया
हाय!!इसका डर कितना दर्द दे गया
 
योग  पर योग  उछल कूद
सात्विक आध्यात्म का ज्ञान
पहले भी हमे था
पर अमल में लाना अच्छे से
ये हमे सिखा गया
हाय!!इसका डर कितना दर्द दे गया
 साफ सफाई का महत्व बहुत है
सुना सुनाया समझा समझा
हर तरफ बिकने वाला सफाई का मंत्र  हमे ये दे गया
हाय!!!इसका डर कितना दर्द दे गया

बेखौफ दुनिया में गुमान थे हम
किरणों का जाल बिछाकर 
आश्वस्त थे हम
छोटे से कण में होती कितनी ताकत
ये सबक हमे दे गया
हाय!!!इसका डर कितना दर्द दे गया 

– सोनिया

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