रामचरितमानस महाकाव्य है

रामचरितमानस महाकाव्य है

भारत में विगत ७५ सालों में किसी भी जाति के लेखक को महान रचना करने से नहीं रोका गया,लेकिन रामचरित मानस जैसी लोकप्रिय एक भी कृति आधुनिक भारत के लेखक क्यों नहीं रच पाए ,किसने रोका है तुलसी से महान रचना लिखने से ?
तुलसीदास का महत्व यह है कि उन्होंने कालजयी रचना के रुप में रामचरित मानस को लिखा जिसे सैंकड़ों सालों बाद भी करोड़ों लोग पढ़ रहे हैं। इन दिनों लेखक काल-कवलित रचना लिखते हैं जो अकाल मृत्यु की चंद महिनों में ही शिकार हो जाती है। कालजयी रचना में महान साहित्य दृष्टिकोण छिपा रहता है। जबकि आजकल की रचनाएं मांग-पूर्ति के आधार पर सामाजिक -वैचारिक गणित की संगति में लिखी जा रही हैं । इसलिए वे न तो जनता तक पहुँच पाती हैं और नहीं कालजयी बन पाती हैं।
रामचरितमानस महाकाव्य है

रामचरित मानस कालजयी रचना है आप इसकी जितनी आलोचना करें,इससे उसका दर्जा घटने वाला नहीं है। कालजयी रचनाएं राष्ट्र की लाइफलाइन से जुड़ी होती हैं ।

तुलसीदास कृत रामचरित मानस धार्मिक ग्रंथ नहीं है और नहीं यह जाति विशेष के लिए लिखा गया ग्रंथ है, यह महाकाव्य है और हमें महाकाव्य को पढ़ने-पढ़ाने का शास्त्र या आलोचना विकसित करनी चाहिए। हमारे बहुत सारे मित्र तुलसी को दलित या स्त्री के नजरिए से देखकर तरह -तरह के जाति और लिंगगत विद्वेष के रुपों को खोज लाते हैं।ये सभी लोग महाकाव्य को देखने की साहित्यचेतना अभी तक विकसित नहीं कर पाए हैं। महाकाव्य कभी कॉमनसेंस चेतना से समझ में नहीं आ सकता। महाकाव्य ,साहित्य की श्रेष्ठतम चेतना है। उसके लिए विकसित साहित्यबोध का होना जरुरी है।
तुलसी का औरतों के प्रति आधुनिक नजरिया था। तुलसी की स्त्रियाँ किसी का आशीर्वाद नहीं चाहतीं, बल्कि आशीर्वाद देती हैं। लोग राम के पैरों पड़ते हैं,उनसे भक्ति का वरदान माँगते हैं,तुलसी के यहाँ स्त्रियाँ  सीता के पैर तो पड़ती हैं लेकिन उल्टा उनको आशीष देती हैं।लिखा है-
अति सप्रेम सिय पायँ परि,बहुत विधि देहिं असीस।
सदा सोहागिनि होहु तुम,जब लगि महि अहि सीस।।



यह लेख जगदीश्वर चतुर्वेदी जी द्वारा लिखा गया है .प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग,कलकत्ता विश्वविद्यालय,कोलकाता, स्वतंत्र लेखन और स्वाध्याय .संपर्क ईमेल – jcramram@gmail.com


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