संसद का आदमी

संसद का आदमी

संसद का आदमी
सफेद कपड़ों का हैं पुतला
शान्ति का दूत वह लगता
हैं पर अशांति का नेता
देख देश की प्रजा

नेता

उसे होतीं अतिप्रसन्नशा
पूछा मैंने जब प्रजा से
कैसी हैं तुमकों प्रसन्नशा  ?
बोलती प्रजा तुमकों क्यों नहीं प्रसन्नता  ?
हमनें चुना हैं संसद का नेता
सदियों चलीं आ रही सत्ता का झमेला
चुनते आ रहे ऐसा हम आका
जो कर रहे देश का अहित मेरे आका
भूखा रहा किसान रो रही बेटियाँ
देख दशा आँसू आयें मेरे आका
सत्ता की  रोटियाँ वो सेक रहे
अपनों को आगे ला रहे
प्रजा को हैं पिछे छोड़ रहे
कैसी हैं ये सत्ता ?
सफेद कपड़ों का हैं वह पुतला

तरस रही दाने दाने को कृषक काया
पड़ी किसे फिक्र उसकी                                     
अब सब हैं माया माया
अपना ना भरें ,भरें सबका पेट उसकी हैं चिन्ता
यही सोच सीच रहा लहू से दाने दाने को आका
समझ अपना फर्ज़ यही हैं सब अपना

देख कन्या के सुखे होठों को                           
कृषक हैं रो रहा  सोच रहा                                   
देश हित उसे सता रहा
गर्व उसे सत्ता चुनने का यही वह सोचता
देखा जब सभ्य मानवों को
कैसी हैं उनकी सभ्यता
उतर आयें पशुता पर ना रही मानवता
देख रहा देश उनकों
रो रहा अब अपने को
कैसे चुन रहे ?
इस भाग्य विधाता को
रो रहा बार -बार अपनी इस दुविधा को
कह रहा वह , संसद का आदमी
सफेद कपड़ों का हैं पुतला

उठीं फिर आशा एक
बुझते दीये में देख तेल को
होगें ना ये मेरे होंगें इस राष्ट्र के तो

बुझ गई आशा देखा जब बदलते इस रंग को
लाऊँ कैसे अब द्विविधा से बाहर राष्ट्र को
संसद में बैठा हैं सफेद कपड़ों का पुतला जो

राजतंत्र प्रजातंत्र का मुखौटा हैं जो चल रहा
प्रजातंत्र को प्रजातंत्र होगा अब बनाना
सदीयों से चली आ रही सत्ता को होगा अब बदलना
बदलेंगे विचार बदलेगा तभी राष्ट्र
राजतंत्र पर प्रजातंत्र का तभी होगा अधिकार

समझें मुझे भले सत्ता विरोधी
पर हूँ मैं राष्ट्र प्रेमी
मोह नहीं सुर्खियों का  न सत्ता का
मोह हैं तो प्रजातंत्र की कुशलता का
संसद का आदमी सफेद कपड़ों का हैं पुतला

दल सदस्य तमगा वे मुझे पहनायेंगे
अपनों से अपनों को लड़ायेंगें
रहना हैं अटल इस पथ पर
ना हो प्रजातंत्र खुशहाल तब तक
यही हैं शपथ मेरी तब तक

       
                         

 –अनिता चौधरी
                               शाहपुरा(जयपुर) राजस्थान

         

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