अपनी हँसी खुद हँसता चल

अपनी हँसी खुद हँसता चल

बढ़ना है जीवन में आगे,
अपने लीक पर बढ़ता चल।
पथ रोकने आए कोई,
नजरअंदाज कर चलता चल।

हँसता चल

दूसरों की खुशी से अक्सर,
जलते – भूनते कायर लोग।
उनकी तू परवाह न कर,
जीवन मस्त चाल चलता चल।

खोखले लोग बहुत आजकल,
भरा किसी का देखे नहीं।
भरा घट क्या छलके कभी,
फिर, अपनी रवानी बढ़ता चल।

दुख का आना-जाना रहता है,
फिर इसके पीछे बेकार क्यों।
सुख के क्षण का पहचान कर,
अपनी  जिंदगी जीता चल।

डगमगाए जब भी कदम तो,
टिकाए रखना नज़र लक्ष्य पर।
भरोसा अपने उर में हरपल,
सर्वज्ञाता ईश्वर का रखता चल।

आए कभी भी वक्त खराब,
मुड़ना न, सबक ले बढ़ते जाना।
निराशा को दूर झटक अपने से,
अपनी हँसी खुद हँसता चल।



— रेणु रंजन
( शिक्षिका )
– रा0प्रा0वि0 नरगी जगदीश यज्ञशाला 
सरैया,  मुजफ्फरपुर, बिहार 

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