बंदर और मगर की मित्रता
द्रुम डाल पर बैठा बन्दर
जामुन रोज खिलाता था
इसी बहाने हुई मित्रता
उनको कुछ नहीं भाता था
इक दिन बोली मगर से मगरी
मगरमच्छ और बंदर |
जाओ उसको ले आओ
मीठा होगा दिल उसका
किसी जतन से उसको पाओ
नदी किनारे आकर बोला
सुनो मित्र तुम मेरी बात
किया याद तुमको भाभी ने
चलो आज तुम घर पर तात
बैठ पीठ पर बन्दर पहुंचा
गहरी थी जहां जल धारा
बन्दर ने फिर पूछा उससे
तात कहां है घर वह प्यारा
पता चला जब बन्दर को
हुआ है उससे गहरा घात
तुरत मगर से वह फिर बोला
सुनो मित्र तुम मेरी बात
टांग पेड़ पर उसको आया
जिसकी चाहत गहरी तुमको
यदि लेना है उसको फिर तो
चलो वापसी मेरे घर को
मूरख मगर समझ ना पाया
बन्दर की यह गहरी चाल
नदी किनारा ज्यों ही आया
बन्दर ने ली एक उछाल
– विनय मोहन शर्मा
अलवर