अष्टछाप के कवि

अष्टछाप के कवि

Astchap Ke Kavi 


astchap ke kavi अष्टछाप के कवि अष्टछाप पर टिप्पणी अष्टछाप का जहाज अष्टछाप के संस्थापक का नाम अष्टछाप कवि की रचना अष्टछाप किसकी रचना है अष्टछाप किसे कहते हैं अष्टछाप के कवि अष्टछाप के कवियों का परिचय दीजिए ashtchhap kaviyon ke name ashtchhap ke kavi kaun kaun hai ashtchhap ke kavi ka naam ashtchhap ke do kaviyon ke naam bhakti kaal ke kavi astachap ashtchhap ki rachna kisne ki astchap ke kavi – हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्ति काव्य को प्रेरणा देने का बहुत कुछ श्रेय श्री वल्लभाचार्य (१४७८ ई.-१५३० ई,) को है ,जो कि पुष्टिमार्ग के संस्थापक एवं प्रवर्तक थे। इनके द्वारा प्रवर्तित पुष्टिमार्ग में दीक्षित होकर सूरदास आदि आठ कवियों की मंडली ने अत्यन्त महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की।आचार्य बल्लभाचार्य के ४ शिष्य – सूरदास ,कुम्भनदास ,परमानन्ददस तथा कृष्ण दास और उनके पुत्र विट्ठलदास के ४ शिष्य – नन्ददास ,चतुर्भुज दास ,गोविन्द स्वामी और छीत स्वामी हिंदी साहित्य में अष्ट छाप के कवि रूप में जाने और माने जाते हैं . ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे,इस रूप में इन्हे अष्टसखा की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है।इन सभी कवियों का वर्णन निम्नलिखित है – 

१ .सूरदास – 

अष्टछाप के कवियों में सूरदास सर्वश्रेष्ठ कवि थे। इनके जन्म स्थान, जन्म तिथि, अन्धत्व तथा जाति के सम्बन्ध में विद्वानों में बड़ा मतभेद है। अधिकांश लोग इनका जन्म सन् 1443 मानते हैं। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान सीही
सूरदास
सूरदास

मानते हैं और कुछ लोग आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क के किनारे रुनकता ग्राम मानकर इन्हें सारस्वत ब्राह्मण सिद्ध करते हैं। कुछ लोग इन्हें चन्दवरदाई का वंशज स्वीकार करते हैं। इनके अंधत्व के सम्बन्ध में भी मतभेद हैं। अधिकांश लोग इन्हें जन्मान्ध स्वीकार करते हैं।परन्तु अपनी रचनाओं में वस्तुओं के रूप रंग आदि का जितना सूक्ष्म चित्रण सूर ने प्रस्तुत किया है उसके आधार पर इन्हें जन्मान्ध नहीं कहा जा सकता ।

सूरदास बल्लभाचार्य के शिष्य थे। ये उन्हीं के साथ गऊ घाट पर रहते और कीर्तन करते थे। कहा जाता है कि एक दिन नौका से जाते समय बल्लभाचार्य ने किनारे बैठकर गाते सूरदास की यह आवाज ‘मो सम कौन कुटिल खल कामी’ सुनी । वे सूरदास के पास आये तथा उन्हें श्रीकृष्ण लीला के पद गाने का आदेश दिया और पुष्टि मार्ग की दीक्षा दी। उनकी मृत्यु के उपरान्त सूरदास श्रीनाथ मन्दिर के कीर्तन मण्डल के प्रधान बने।
सन् 1585 में ये पारसोली गये और गोसाई विठ्ठलदास के सामने यह पद गाते-गाते श्रीकृष्ण में लीन हो गये –
खंजन नैन रुप मदमाते ।
अतिशय चारु चपल अनियारे,
पल पिंजरा न समाते ।।
चलि – चलि जात निकट स्रवनन के,
उलट-पुलट ताटंक फँदाते ।
“सूरदास’ अंजन गुन अटके,
नतरु अबहिं उड़ जाते ।।
रचनाएँ – सूरदास की प्रमुख रचनाएँ बतायी जाती हैं –सूरदास, साहित्य लहरी और सूर सरावली। सूरदास इनकी प्रसिद्ध रचना है। इसमें सवा लाख पद बताये जाते हैं।किन्तु खोज करने पर भी सात हजार से अधिक पद नहीं मिल सके हैं।बल्लभाचार्य के आदेश से श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध को आधार मानकर इन्होंने इस ग्रन्थ को लिखा था।समस्त सूरसागर का मंथन करने पर इनकी रचनाओं में 5 प्रकार की भावनाएँ मिलती हैं। विनय सम्बन्धी पद, बाल वर्णन सम्वन्धी पद, प्रेम सम्बन्धी पद, मुरली माधुरी तथा रूप माधुरी।
सूरदास वात्सल्य और श्रृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।इन्होंने बड़ी तन्मयता से श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का चित्रण किया ।कहा जाता है कि इनको माता यशोदा का हृदय प्राप्त था जिसमें ये बाल कन्हैया की लीलाओं का प्रत्यक्ष दर्शन करते थे। श्रृंगार चित्रण में संयोग और वियोग दोनों दशाओं का सुन्दर चित्रण मिलता है। इनके काव्य सौष्ठव को ध्यान में रखकर लोग इन्हें हिन्दी काव्य आकाश का सूर्य कहते हैं।

(2) परमानन्द –

ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। सन् 1468 ई० में कान्नौज में इनका जन्म हुआ था। ये बड़ी मधुर कविता करते थे। सुनते हैं एक बार इनका एक पद सुनकर श्री बल्लभ जी कई दिन तक अपने शरीर की सुध भूले रहे । इनके मुक्तक पदों का संग्रह परमानन्द सागर में मिलता है। 

(3) कुम्भनदास –

ये जाति के क्षत्रिय थे और गोवर्धन के पास के ही एक ग्राम के निवासी थे।इनका जन्म सन् 1468 ई० में हुआ । अष्टछाप के प्रसिद्ध कवि चतुर्भुज इनके पुत्र थे।ये कृषि का अपना स्वतंत्र व्यवसाय करते थे।इनके दो ग्रंथ दानलीला और पदावली-प्रसिद्ध है।ये दोनों पुस्तकें गीतिकाव्य हैं।एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इनको फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा था। 

(4) चतुर्भुजदास – 

ये कुम्भनदास जी के पुत्र थे। इनका जन्म सन् 1640 ई० में हुआ था। इनकी भाषा बड़ी सुन्दर एवं सुव्यवस्थित है। दानशीलता, शक्ति प्रताप आदि छः पुस्तकें इन्होंने लिखी थीं। ये सब गीतिकाव्य है।


(5) छीत स्वामी – 

ये चतुर्वेदी (चौबे) ब्राह्मण थे । सन् 1515 ई० में मथुरा में इनका जन्म हुआ। विट्ठलनाथ जी से दीक्षा लेने से पहले इन्हें अशिष्ठ पुरुषों की संगति थी । दान लीला, कुंज लीला और बधाई आदि में अपने समस्त हार्दिक अनुराग के साथ उनके रूप सौन्दर्य, तिरछी चितवन एवं विविध भाव भंगिमाओं तथा क्रिया-कलाप का इन्होंने वर्णन किया है।

 (6) नन्ददास – 

इनका जन्म सन् 1533 ई० और मृत्यु सन् 1578ई० मानी जाती है ।इनकी कविता बड़ी सरल और मधुर है। इन्होंने अनुप्रासयुक्त संस्कृत मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। अतः प्रसिद्ध है-“सब कवि गढ़िया, नंददास जड़िया .” 
ये सूरदास के समकालीन कवि थे और काव्य की दृष्टि से अष्टछाप के कवियों में सूरदास के बाद इनका नाम आता है। इन्होंने निम्नलिखित ग्रंथों का प्रणायन किया है – 
भँवरगीत, रामपंचाध्यायी, अनेकार्य नाममाला, रुक्मिणी मंगल, हितोपदेश, दशमस्कन्ध भागवत, दानलीला, मानलीला, ज्ञानपंजरी, रसमंजरी, रूम मंजरी, नाम मंजरी चिंतामणि आदि ।नन्ददास की प्रसिद्धि हुई भँवरगीत और रामपंचध्यायी के कारण है . 

(7) कृष्णदास –

इनका जन्म गुजरात में अहमदाबाद के आस पास सन् 1497 ई० के लगभग हुआ । ये जाति के शुद्र थे, परन्तु श्रीवल्लभ की कृपा से मन्दिर के प्रधान थे . एक बार बीरबल ने इनको कारागार भेज दिया, परन्तु आचार्य के अनुरोध से इन्हें मुक्ति मिली और फिर मन्दिर के प्रधान बना दिये गए, इन्होंनेजण विषयक प्रसिद्ध पुस्तके लिखी है जो सब गेय हैं ।अष्टछाप के अन्य ‘कवियों के समान श्रृंगार के रिक्त इनके पदों में ब्रजभूमि के प्रति प्रेम भी व्यक्त हुआ है। 

(8) गोविन्द स्वामी – 

इनका जन्म भरतपुर राज्य में सन् 1505 ई० में हुआ था।ये स्थायी रूप से महावन  में रहते थे।सन् 1535 ई० में इन्होंने स्वामी विट्ठलदास से दीक्षा ली।गोवर्द्धन पर्वत पर इनकी लगाई हुई ‘कदंनखडी’ अभी तक प्रसिद्ध है। ये बड़े अच्छे गायक थे. जनश्रुति है कि प्रसिद्ध गायक तानसेन इनका गाना सुनने आया करते थे।
इनके अतिरिक्त अन्य कवि हैं- हितहरिवंश, स्वामी हरिदास, ध्रुवदास, रसखान, मीराबाई, हरिराम व्यास, नरोत्तमदास आदि। 

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