आधुनिक काल की विशेषता

आधुनिक काल की विशेषता आधुनिक काल की प्रवृत्तियाँ

aadhunik kaal ki visheshta aadhunik kaal ki pravritti



आधुनिक काल की विशेषता आधुनिक काल की प्रवृत्तियाँ aadhunik kaal ki visheshta aadhunik kaal ki pravritti – आधुनिक रीतिकाल के बाद का काल है .सन १८५७ से लेकर अब तक आधुनिक काल कहलाता है .सन १८५७ में एक ऐसी घटना घटी कि सारा देश हिल और सिहर गया और उसका परिणाम अति दूरगामी सिद्ध हुआ – यह थी प्रथम भारतीय स्वंतंत्र संग्राम की घटना .इसके बाद भारत में एक नयी चेतना जागी और रीतिकाल के विलासितापूर्ण मादक प्रभाव से मुक्त होकर वह नवयुग की अंगडाई लेने लगा – और सन १८५७ ई. में आधुनिक काल का जन्म हुआ .इस समय भारतेंदु हरिश्चंद्र जो आधुनिक गद्य के निर्माता और जनक कहे जाते हैं ,७ वर्ष के थे और कविता करने लगे .इस काल में धर्म ,साहित्य ,कला तथा दर्शन के क्षेत्र में नए दृष्टिकोण का सूत्रपात हुआ .यह आधुनिक काल विभिन्न राजनितिक ,सामाजिक ,धार्मिक और सांस्कृतिक परिश्तितियों के संपर्क और सम्नाय्व्य का परिणाम है .इस काल की साहित्यिक प्रवृतियाँ तथा विशेषताओं में काफी विविधता है .इसमें भारतेंदु युग से लेकर नयी कविता तक का काल समाविष्ट है ,किन्तु इतने दीर्घकाल में अनेक काव्यधाराओं के बाद भी कुछ सामान्य विशेषताएँ मिलती हैं ,जो कि निम्नलिखित है –

१. राष्ट्रीयता एवं अतीत का गौरवगान –

राष्ट्रीयता हिंदी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्ति है . आधुनिक काल के प्रारंभ से हिंदी कवियों ने भारत माता तथा उसकी संतानों की दुर्दशा में छटपटाते देखा .उनका ह्रदय भक्ति ,रीति और श्रृंगार परंपरा से हटकर राष्ट्र प्रेम की ओर मुड़ गया .इन कवियों ने देशवासियों को उनके अतीत गौरव याद दिलाकर उनमें उत्साह का भाव भरा .भारतेंदु युग के बाद दिवेदी युग और बाद में भी यह भावना बनी रही .भारतेंदु हरिश्चंद ,हरिऔध ,मैथिलीशरण गुप्त ,माखनलाल चतुर्वेदी ,सुभद्राकुमारी चौहान ,रामधारी सिंह दिनकर श्यामनारायण पाण्डेय आदि कवियों ने देश का अतीत गौरव गाकर राष्ट्रीयता की धारा प्रवाहित की है .

२. छायावाद – 

भारतेंदु युग और द्वेदी युग में रीतिकालीन श्रृंगार धारा जो क्षीण पद गयी थी .छायावाद नामक एक नयी प्रवृत्ति के रूप में प्रथम विश्व युद्ध के बाद उभरी .इसमें व्यक्तिगत धरातल पर प्रभाव और कल्पना लोक में प्रकृति प्रेम और नारी सौन्दर्य को चित्रित किया गया है .इस प्रवृत्ति में कवियों का अतृप्त प्रणय भावना वेदना से रो पड़ी है .प्रसाद ,पन्त ,निराला ,महादेवी वर्मा ,रामकुमार वर्मा आदि इस धारा के कवि हैं .

३. रहस्यवाद – 

छायावादी काव्य की ही यह एक उपधारा है .भक्तिकालीन कवियों के रहस्यवाद से इसमें बड़ी भिन्नता है .प्रकृत्ति के सभी उपकरणों में चेतना का आरोप ही रहस्यवाद है .कतिपय भिन्नता के कारण इसे नवीनता रहस्यवाद भी कहा जाता है .वह आधुनिक काल में छायावादी कवियों में पल्लवित हुई और बाद तक चलती आई है .पन्त ,प्रसाद ,निराला ,महादेवी वर्मा ,रामकुमार वर्मा ,अज्ञेय आदि कवियों के काव्य में यह धारा देखी जा सकती है .

४. प्रगतिवाद – 

प्रगतिवाद पूंजीवाद व्यवस्था के विरोध में दीन हीन मजदूरों एवं शोषितों के समर्थन की एक प्रवृत्ति है .इसमें छायावादी सौन्दर्य भावना ,रूढ़िवादी संस्कृति ,आदर्शवाद आदि का भी विरोध पाया जाता है . सन १९३६ के बाद हिंदी में यह प्रवृत्ति पनपी. निराला ,पन्त ,अंचल ,अश्क ,नागार्जुन ,रामविलाश शर्मा ,अमृत राय ,यशपाल ,राजेन्द्र यादव आदि ने इस प्रवृत्ति को विकसित करने का सराहनीय कार्य किया है .

५. प्रयोगवाद – 

इस काव्य प्रवृत्ति के नवीन काव्य शिल्प में जीवन के नए मूल्यों तथा यथार्थवादी प्रवृत्तियों को चित्रित किया गया .इस कार्य के लिए अज्ञेय ने सन १९४३ में तार सप्तक का सम्पदन किया ,सन १९५३ तक यह प्रवृत्ति तेज़ी के साथ विकसित होती रही .बौद्धिकता ,मनोविश्लेषन ,नवीन जीवन मूल्य तथा नवीन शिल्प प्रयोग इस धारा की प्रमुख विशेषताएँ हैं .अज्ञेय ,मुक्तिबोध ,भारतभूषण अग्रवाल ,प्रभाकर माचवे ,भवानीप्रसाद मिश्र ,नरेश मेहता ,रघुवीर सहाय ,केदारनाथ सिंह आदि इस धारा के प्रमुख साहित्यकार है .

६. नव लेखन – 

नव लेखन आधुनिक साहित्यकार की नवीनतम प्रवृत्ति है .नव लेखन की प्रवृत्ति कविता में नयी कविता ,नाटक में नए नाटक ,कहानी के क्षेत्र में नयी कहानी ,उपन्यास के क्षेत्र में नया उपन्यास तथा आलोचना के क्षेत्र में नयी आलोचना है .इसमें मानवता के स्थान पर व्यापक मानवता ,बौद्धिकता के स्थान पर शुद्ध बौद्धिकता ,व्यंग के स्थान पर तीखा व्यंग और यथार्थ आदि है .

७. अन्य विशेषताएं – 

हालावाद ,यथार्थवाद ,प्रतीकवाद ,आदर्शवाद आदि साहित्यिक प्रवृतियों का भी आधुनिककाल में उदय और विकास हुआ है .ये सभी विशेषताएँ कुछ समय तक ही अस्तित्व  में रही हैं .

८. खड़ीबोली का विकास –

इस युग में खड़ीबोली का विकास गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में पर्याप्त रूप से हुआ .इस युग में ब्रज ,अवधी आदि भाषाएँ लुप्त होती चली गयीं .
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि हम कह सकते हैं कि आधुनिक काल में गद्य का विकास विविध रूपों में हुआ .नवीनता ,बौद्धिकता ,देश प्रेम ,प्रतीकात्मकता उपमानों की नवीनता आदि इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं . डॉ.बच्चन सिंह के शब्दों में – “आधुनिक काल अपने ज्ञान विज्ञान और प्रवृत्तियों के कारण मध्यकाल से अलग हुआ .यह काल औद्योगीकरण ,नगरीकरण और बौद्धिकता से सम्बद्ध है ,जिसमें नवीन आशाएँ उभरी और भविष्य का नया स्वप्न देखा जाने लगा .” 
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