घर को कभी बाँटा नहीं जाता
घर -1
जहाँ सुकून मिले, जहाँ जुनून मिले,
जो सदा ही चाहत में होता है,
रहे कहीं भी ताउम्र
जो सबकी चाहतों में होता है
वह घर होता हैl
जो सबको जोड़ दे, राह को मोड़ दे
कभी-कभी मोह भी छोड़ दे
सुख-दुःख में जो सबका संग होता है
वह घर होता हैl
जब टूट जाए आश,
अपनों का ही विश्वास
रहे न जब कोई एहसास
जहाँ हर कोई चैन से सोता है
वह घर होता हैl
जीतकर हारने का दुःख
अपनों से मिलने का सुख
अपनों से होकर भी विमुख
जहाँ समझौता होता है ,
ग्लानिबोध नहीं होता है
वह घर होता हैl
घर-2
सपनों का घर
अपनों का घर
गाँव का घर
शहर का घर
हो कहीं भी घर
घर-घर होता है
बिन इसके जीवन बेघर होता हैl
लगा हो गया बेघर
फिर बसाया नया घर
और इस तरह मैं बेघर
अलग-अलग नगर
बनाता गया नए-नए घरl
ईंटों से बना
भावों से सना
हिस्सा अपना-अपना सबका बना
होकर पत्थर भी जो पत्थर न बना
घर अपनों से मिलकर ही बना l
भावों से सनाl
दर्द है घर में
दुआ है घर में
टूट जाता है कितना पहले
पर कुछ ऐसा असर है घर में
कभी रोता है
कभी हँसता है
इस सफ़र में
खोता नहीं हौंसला
इसलिए सबसे बड़ा है घर
मेरी नज़र में
बड़ा बहुत बड़ा है घर
जिन्दगी के सफ़र मेंl
तकसीम कर भी दो
प्यार बाँटा नहीं जाता
हो खंज़र कोई भी
ज़ज़्बात को काटा नहीं जाता
धड़कनों का मतलब mat पूछो
रुपयें पैसे धन दौलत से
प्यार को बाँटा नहीं जाता
वो घर ही है जिसमें समय है सब कुछ
इसलिए घर को कभी बाँटा नहीं जाताl
घर- 3
मैंने हर जगह को
एक घर बनाने की कोशिश की
हर जगह में खुद को
समाने की कोशिश की
इसलिए प्रीत पैदा की
हर ईंट में
पत्थर में
जीवन में
सफ़र में
शायद कुछ यही सब था
मेरे घर में
इसलिए कई घर बसाए मैंने
जिन्दगी के सफ़र में
हर कहीं कोशिश की
खुद को मानाने की
नया घर बनाने की
पुराने से खुद को
मुक्ति दिलाने की
बड़ी कोशिश की भुलाने की
फिर से नया घर बसाने की
घर- 4
अब ये घर टूटता है
शब्द मन से फूटता है
माँ का मन दुखित है
घर सारा व्यथित है
स्वार्थ घट में भरा है
नेह जिसमें डूबता है
मन इस प्रश्न से टूटता है ……अब ये घर टूटता हैl
पूछता हूँ मन से
अपने तृषित तन से
क्या तूने नहीं सहा
फिर भी कुछ नहीं कहा
श्रम साधन सफल
मन फिर भी है विकल
आँसू आँखों में डूबता है ……अब ये घर टूटता हैl
भाई भाभी के बंधन
ज्यों अभिलाषित स्वर्ण-कंगन
अपनी-अपनी सोचते
सम्बन्ध-सीमाएँ तोड़ते
क्या करूँ अब
क्या करूँ अब
दुखित मन कौंचता हैं ……..अब ये घर टूटता हैl
हर पल व्यथा में पलूँ मैं
टूटकर भी आगे बढूँ मैं
यही मेरा फैंसला है
यही मेरा हौंसला हैं
जोड़ता हूँ टूटे रिश्ते
अदा कर मन की किश्तें
विपद में मन हूकता है …………….अब ये घर टूटता है
– डॉ. सुशील कुमार
कलपक्कम तमिलनाडु