अरविन्द कुमार सिंह |
मेरे घर के पास एक किनारे का पेड़ है ,
जो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है –
जब एक नया सवेरा आएगा ,
इसलिए उसकी निगाह मेरी झोपड़ी के ,
टूटे फूटे दरवाजे पर टिकी रहती है ।
मै हताश हूँ ।
पर मैं निराश नहीं हूँ ,
मैंने जीवन जी रहा हूँ
नेताओं के आश्वाशन पर –
उनकी मिश्री घुली बातों पर —
उस असीम ,अज्ञात शक्ति के चमत्कारों पर
परिवर्तन होगा ।
दिन फिरेगे ।
इसलिए भविष्य पर भरोसा किये बैठा हूँ ।
एक नया समाज बनेगा –
निराशा और दुःख के बादल छटेंगे –
चारों तरफ सुखों के फूल खिलेंगे –
इसलिए भविष्य रूपी बादलों को देखता हूँ
भविष्य के गर्भ में छिपा खुशहाल भारत देखता हूँ ।
” यह रचना अरविन्द कुमार सिंह द्वारा लिखी गयी है . आप कोलकाता में अध्यापक के रूप में कार्यरत है . अरविन्द जी की कविताओं का संग्रह ‘नवरंग‘ जल्द ही प्रकाशित होने वाला है . प्रस्तुत कविता उसी संग्रह से ली गयी है . आपकी रचनाये विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है . व्यंग के माध्यम से वर्तमान हालत पर रोष व्यक्त करना तथा आशावादिता बनाये रखना इनकी रचनाओं का प्रमुख लक्षण हैं .”