युवा वर्ग पर फैशन का प्रभाव | फैशन और युवा पीढ़ी पर निबंध

फैशन और युवा पीढ़ी पर निबंध

युवा वर्ग पर फैशन का प्रभाव फैशन और युवा पीढ़ी पर निबंध vidyarthi aur fashion par nibandh fashion par nibandh in hindi hindi essay on fashion short nibandh on fashion – जीवन के चार आश्रमों में ब्रहचर्य प्रथम है। इसे ही विद्यार्थी जीवन भी कहा जाता है। विद्यार्थी शब्द का अर्थ है – विद्या प्रगति का अभिलाषी व्यक्ति। विद्यार्थी जीवन विद्या अध्ययन ,चरित्र निर्माण तथा शारीरिक और मानसिक शक्तियों के विकास के लिए ही होता है।
छात्र का कर्त्तव्य है कि वह पढ़ने के साथ ही शरीर का भी विकास करे। विद्या अर्जन के काल में भौतिक सुखों की इच्छा विघ्न बनकर आती है। इसीलिए कहा गया है कि –
अलसस्य कुतो विद्या ,अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रम् ,अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥
अर्थात सुख चाहने वाले को विद्या की चाह नहीं करनी चाहिए। उसे अनेक प्रकार की इच्छाओं ,स्वाद ,श्रृंगार ,कौतुक ,तमाशा आदि से दूर रहना चाहिए। चरित्र निर्माण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। 

युवा वर्ग पर फैशन का प्रभाव 

युवा वर्ग पर फैशन का प्रभाव | फैशन और युवा पीढ़ी पर निबंध

आज हमें खेद के साथ कहना पड़ेगा कि आज के अधिकाँश विद्यार्थी चरित्र निर्माण और स्वास्थ्य की चिंता नहीं करते हैं। आज के छात्र ज्ञान प्राप्ति के अभिलाषी न होकर ,विद्या की अर्थी ढ़ोने वाले हो गए हैं। विद्याअध्ययन तो एक कठोर तप है। सतत साधना है पर वह उनके वश का रह नहीं गया है। दो घंटे भी जमकर वे पढ़ नहीं सकते हैं। आज उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि उनका रहन -सहन सरल हो। वे उच्च विचारों वाले हो या लोग उन्हें आदर्श छात्र कहें। वे तो चाहते हैं कि सहपाठी और अन्य व्यक्ति उन्हें सुन्दर और चुस्त स्मार्ट कहें। इसके लिए वे फैशन की ओर भागते हैं। वे विद्या के उपासक कम और फैशन उपासक अधिक हो गए हैं। 

फैशन क्या है इन हिंदी

फैशन क्या है ? यही कि पुरानी वेश भूषा को त्यागकर नया -सा पहनावा पहनना। नई से नयी बातों को अपनाना। बोलचाल ,उठना – बैठना आदि में भी कुछ नवीनता ,सामान्य से भिन्नता बन रहा है। समाज के समस्त तरुण वर्ग पर फैशन का भूत सवार है। 
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च । 
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ।।
अपने बालों को नए नए ढंग से सवारने की ,तरह -तरह की सुगन्धित तेल लगाने की ,क्रीम पाउडर व शैम्पू के प्रयोग की। बढ़िया से बढ़िया चमकदार और बहुमूल्य वस्त्रों पहनने की या यूरोपीय वेश भूषा धारण करने की छात्रों में होड़ सी लगी है। न केवल छात्र अपितु छात्राएँ भी फैशन में पीछे नहीं है। वे फैशन की पुतली बनकर ही कॉलेज के अन्दर – बाहर मंडराती फिरती है। देखा जाय तो आज के छात्रों का अधिकाँश समय फैशनपरस्ती में ही नष्ट हो रहा है। 

फैशन के नुकसान

छात्रों में बढ़ती हुई इस प्रवृत्ति के अनेक दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इससे छात्रों में अध्ययन के स्थान पर यौन आकर्षण बढ़ रहा है। नैतिकता के भाव नष्ट हो रहे हैं और स्वछन्दता बढ़ रही है। कॉलेज लॉन में ,कॉफी घरों के बाहर किसी रेस्तरा के पास निरुदेश्य खड़े होकर गप्पे हाँकते हुए छात्रों का समूह नित्य ही देखने को मिलता है। विद्या अर्जन में निश्चय ही बाधा आ रही है। इसका दुष्परिणाम अनुतीर्ण होने या तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण होने के रूप में विद्यार्थियों को ही भोगना पड़ता है ,अपितु उनके माता -पिता पर भी बोझ पड़ता है। उनका व्यय भार अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है और फिर उन्हें अनैतिक ढंग से कमाई करनी पड़ती है। 

विद्याअर्जन तो एक कठोर तप है। उसके लिए कठोर परिश्रम ,त्याग – तपस्या और साधना की आवश्यकता पड़ती है। यदि छात्रों को अपनी इस अवस्था से छुटकारा पाना है तो उन्हें फैशन का मोह छोड़ना पड़ता है। नए -नए फैशन को प्रचलित करने वाले चलचित्र और पत्र – पत्रिकाओं पर नियंत्रण करना होगा। छात्र – छात्राओं को सादी और स्वच्छ वेश भूषा धारण करने के लिए प्रेरित करना होगा। घरों के वातावरण में भी सादगी लानी होगी। तभी छात्र – छात्राएँ फैशन के भूत से बच सकेंगे। नहीं तो फैशन के कारण पतन निश्चित है। 

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