चित्त पावन हो सबके प्रति दया ममता करुणा भर लें
सवाल ये नहीं है
कि दूसरा कितना सच बोल रहा है
सवाल यह है
कि हम कितना सच को सोच रहे हैं!
अगर हर कोई सोची हुई बातें
सच सच कहने लगे दूसरों को
तो कोई किसी का मित्र नहीं रह पाएगा!
कोई भी रिश्ता टिक नहीं पाएगा
दूसरे के प्रति सोचे हुए सच को सुनाने पर
हर कोई एक दूसरे का शत्रु बन जाएगा!
सच ये है कि मन में सोचे गए सच को बोलते हुए
हममें से किसी ने किसी को कभी सुना नहीं है!
हमनें वही सुना जो झूठ दूसरे ने सुनाना सोचा
एक मां पिता जो सोचते अपनी संतति के बारे मैं
वो अगर हू बहू सुन ले संतान
तो फिर कोई संबंध नहीं रहेगा उनके बीच में!
अगर हर दंपति एक दूसरे के प्रति
सोची गई सारी बातें सुनाने लगे एक दूसरे को
तो फिर स्थिर नहीं रहेगी पति पत्नी की स्थिति!
सच यह है कि हम एक दूसरे की झूठ से जुड़े हैं
हम एक दूसरे की झूठ सुनकर खुश होते रहे हैं!
अगर कोई धूर विरोधी किसी को भाई कह दे
तो वे विरोध को कम करने की युक्ति निकालते!
और मजे की बात है
कि दुश्मन की चालाकी को समझकर भी
हर कोई मुगालते में रहता उसके भाईचारे के भ्रम में!
सच तो यह है कि
हम किसी से काम नहीं कामना से जुड़े हैं
हम किसी के साथ प्रेम नहीं स्वार्थ से बंधे हैं!
हम अपने मनोनुकूल झूठ सुनकर
किसी से उसी कारण उनसे प्रेम करने लगते हैं!
ऐसे घृणा युक्त प्रेम से बचने का
एकमात्र उपाय है कि हम अपने मन में
घृणा को नहीं पलने दें, क्रोध नहीं उबलने दें
चित्त पावन हो सबके प्रति दया ममता करुणा भर लें!
-विनय कुमार विनायक ,
दुमका, झारखंड-814101