उठो

उठो

उठो
समय आया है
नव नभ में उड़ने की
नया बेला में
नव उपवन में

लिखो नया सबेरा
नई किरण
नई आशा का
नव संचार करो
कहते जाओ
बहते जाओ

धीर धरो
लग जाओ
मंजिल पाने में
मेहनत करते जाओ
रूकना नहीं
थकना नहीं
टूटना नहीं
संबल बनना तुम
पा लेना
चरम सौन्दर्य को
यही अभिलाषा हो

(2)

लिखो खत

………….
लिखो खत
देश को
करो सलाम
कहो
मैं आता हूँ
तेरी सेवा करने

जब तक साँस रहे
जी भर
दम भर
लड़ूँगा
लिखना
सवा सौ करोड़
देशवासियों को
करो प्रणाम सबको

गिरने न दूँगा
झूकने न दूँगा
आन बान को
नया शान दूँगा
लिखना खत माँ को
कहना जा रहा हूँ
होने बलिदान
देश के लिये

(3)

मेरी माँ

………

मेरी माँ
उठ सुबह
लग जाती कामों में

जयचन्द प्रजापति 'कक्कू जी"
जयचन्द प्रजापति ‘कक्कू जी”

जी भर करती
सुबह से शाम तक
लगी रहती है
चूल्हा चौका में
गायों  के सानी पानी में
साफ सफाई में
कपड़े लत्ते में

कम सोती है
नींद नहीं आती है
खेतो खलिहानों में
भूसा दाना में
पल्लू खोंसे
पसीनें में
सूखे होंठ लिये
करती जाती
कहती जाती
कहना है उसका
कल नया सबेरा आयेगा

———————

यह रचना जयचंद प्रजापति कक्कू जी द्वारा लिखी गयी है . आप कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं . संपर्क सूत्र – कवि जयचन्द प्रजापति ‘कक्कू’ जैतापुर,हंडिया,इलाहाबाद ,मो.07880438226 . ब्लॉग..kavitapraja.blogspot.com

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