देश मे लॉक डाउन है

देश मे लॉक डाउन है 

देश मे लॉक डाउन है।
लाखों-करोड़ों लोग क़ैद हैं घर में
हुक्मरानों का हुक्म है कि लॉक डाउन है!
और हाँ हुक्म की अनदेखी ना करें ….. कर्फ्यू जैसा ही है
कर्फ्यू जैसा है तो सड़कों पर ये लोगों का जत्था क्या है?
ये कौन हैं जो हुक्म की नाफ़रमानी कर रहे हैं…
ये कौन लोग हैं जो हाथो मे बैग लिए,
कंधों पर बच्चों को लादे

देश मे लॉक डाउन है

कई किलोमीटर के सफ़र पर निकल पड़े हैं…
ये पागल हैं क्या!
इन्हे पता नहीं देश मे कोरोना है
ख़ुद तो मरेंगे ही,
साथ मे अपनी पत्नी जो पहले ही सूख कर काँटा हो गयी है
और अपने बच्चे जो पानी ही से प्यास बुझाकर कंधों पर लुढ़क चुके हैं….
उन्हें भी साथ लेकर मरेंगे
ये वहीं लोग हैं ना जिनके मुँह और बदन से बदबू आती है?
ये वही लोग हैं ना जो आनंद विहार के बस स्टैंड या रेल्वे स्टेशन पर
हज़ारों की तादाद मे पाए जाते हैं और बस या ट्रेन के रुकने पर
इनका पूरा का पूरा जत्था अंदर घुसा चाला आता है और पूरे डिब्बे को गंदा कर देता है
अच्छा हुआ देश में लॉक डाउन है
सारी ट्रेन और बसें बंद हैं
इन्हें मरने से डर नहीं लगता क्या!
…. जनाब! इन्हें डर लगता है…..
इन्हें डर है….
इन्हें कोरोना से पहले भूख से मर जाने का डर है।
इन्हें डर है अपने बच्चों की भूख और नींद की तड़प का
जिन्हें कंधों और साईकिल के हैंडल पर लादे
इन्हें तय करना है कई सौ किलोमीटर का सफ़र,
ताकि पहुँच सकें ये अपने परिवारजनों के बीच,
जो बची है इनकी एक आशा की किरण।
इन्हें डर कोरोना ग्रसित हाथों का नहीं है,
इन्हें आशा है उन हाथों से मिले एक वक़्त की रोटी,
इन्हें आशा है अपनी सरकार से, जिसे इन्होंने चुना था।
पर सरकार तो कह रही है कि लॉक डाउन है?
पर वो ये बताना भूल गयी कि लॉक डाउन शरीर का था, दिमाग़ का नहीं…..
लॉक डाउन में रोज़मर्रा की तरह शरीर तो संचालित होता दिखता है…..
मगर दिमाग़ नहीं!
असल में, शरीर व्यस्त है रामलला को तंबू से निकाल कर चबूतरे तक लाने में,
दूध लेने जाते आदमी में लाठियां भांजने में, कि उसकी मौत ही हो जाए,
हाईवे से पैदल-पैदल अपने घरों को निकलते
दिहाड़ी मजदूरों को मुर्गा बनाने में या फ्राॅग जम्प करवाने में।

और दिमाग़ सुबह के नाश्ते मे ओट्स लेता हुआ,
 9:00am-10:00am की रामायण में बिज़ी है और
ये सोच रहा है कि अगले एपिसोड मे राम कैसे शिव का धनुष तोड़ सीता से विवाह करेंगे।
रामायण ख़त्म होते ही दिमाग़ दिन के लंच की तरफ़ दौड़ता है।

इसी आपाधापी में, ये बात कहीं छुप जाती है या भुला दी जाती है कि ये दिहाड़ी मज़दूर वही हैं
जो कारखानों या गोदामों में माल ढोते हैं,
कभी हमे सब्ज़ी बेचते दिखाई देते हैं,
या कभी घरों मे पलस्तर या पुताई करते नज़र आते हैं,
जिनका सीधा तार कहीं ना कहीं हमारी रोज़मर्रा की मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ा है।

– उमेश जोशी ,
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश 
संपर्क – 8766365275,  8512080861

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