उपभोक्तावाद की संस्कृति श्यामाचरण दुबे

उपभोक्तावाद की संस्कृति श्यामाचरण दुबे 

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उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का सारांश

उपभोक्तावाद की संस्कृति  पाठ या लेख श्री श्यामाचरण दुबे जी के द्वारा लिखित है | श्री दुबे जी ने इस लेख के माध्यम से उपभोक्तावाद के विभिन्न पहलुओं पर बल दिया है | लेखक का मानना है कि लोग विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं तथा वस्तुओं की गुणवत्ता को अनदेखा कर रहे हैं | 
लेखक के अनुसार, धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है | एक नई प्रकार की जीवन-शैली अपना पाँव पसार रही है | फलस्वरूप, उपभोक्तावाद का दर्शन अस्तित्व में आ रहा है | उत्पादन की अधिकता पर जोर दिया जा रहा है | वर्तमान समय में उपभोग-भोग ही सुख बन गया है | लेखक अपनी इस बात पर बल देते हुए कहते हैं कि उत्पाद लोगों का नहीं, बल्कि लोग उत्पादों को समर्पित होते जा रहे हैं |आज बाजार विलासिता की सामग्रियों से भरा पड़ा है, जो निरन्तर आपको लुभाने का प्रयत्न करते रहते हैं | 
लेखक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली कोई वस्तु को ही ले लीजिए, जैसे विभिन्न प्रकार का टूथपेस्ट बाजार में उपलब्ध है | कोई दाँतो को मोतियों जैसा चमकदार बना देता है, तो कोई मुँह की दुर्गंध हटाने में कारगार है | कोई टूथपेस्ट मसूड़ों को मजबूती प्रदान करने के लिए बना है, तो कोई बबूल और नीम के गुणों से भरा हुआ है | अब पेस्ट के अनुसार ब्रश भी होना चाहिए | बाजार में एक से बढ़कर एक ब्रश उपलब्ध हैं, जो आकार, बनावट, सफाई, रंग आदि में अलग-अलग विशेषता वाला हो | साथ ही मुँह की दुर्गंध से बचने के लिए माउथ वास की भी जरूरत होगी | सूचि और भी बड़ी-लम्बी होने की संभावना है | 
लेखक अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं कि सौंदर्य प्रसाधनों की भीड़ तो और भी ज्यादा लोगों को चमत्कृत
उपभोक्तावाद की संस्कृति
उपभोक्तावाद की संस्कृति

कर रही है | सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में में तो हर महीने नए उत्पाद जुड़ जाते हैं | उदाहरण के रूप में साबुन को ही ले लीजिए, कोई बहुत सुगंधित है, तो किसी में कम सुगंध है | कोई साबुन तरोताज़ा रखता है, कोई पसीना रोकता है, कोई जर्म्स से सुरक्षा देने का वादा करता है, कोई साबुन का उद्देश्य शरीर को पवित्र रखना होता है, तो फिर कोई साबुन खुद को शुद्ध गंगाजल से निर्मित बताने में जरा भी देर नहीं करता | संभ्रांत महिलओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हजार के सौन्दर्य सामान मिलना कोई नई बात नहीं है | महिलाओं की तरह पुरुष भी इस प्रतिस्पर्धा में शामिल हैं | पहले तो उनका काम साबुन-तेल से चल जाता था | अब पुरुषों के जीवन में भी तरह-तरह के सौन्दर्य सामान शामिल है |

आगे लेखक सौन्दर्य की बात करते-करते परिधान की दुनिया में आ जाते हैं | वे कहते हैं कि अत्यधिक मात्रा में बुटीक खुलने लगे हैं | विभिन्न डिज़ाइन के परिधान बाजार में आने लगे हैं, जो बहुत मंहगे भी हैं | केवल समय देखना हो तो चार-पाँच सौ के घड़ी में भी काम चल सकता है, परन्तु प्रतिष्ठा या हैसियत दिखाना हो तो घड़ियाँ पचास-साठ हजार से लाख-डेढ़ लाख तक की भी पहनी जा रही है | संगीत की समझ भले ही न हो, पर म्यूजिक सिस्टम बड़ा और कीमती होना चाहिए | कम्प्यूटर को काम से ज्यादा दिखावे के लिए ख़रीदा जा रहा है | ऊँची प्रतिष्ठा का दिखावा करने के लिए शादी-विवाह पांच सितारा होटलों में बुक किए जाते हैं | दिखावा का वही हाल हॉस्पीटल और स्कूलों के साथ भी है | अभी भारत में तो नहीं, परन्तु अमेरिका और यूरोप में मरने से पहले ही अपने अंतिम संस्कार या क्रिया-क्रम के बाद का प्रबंध कर लिया जाता है, जिसकी कीमत भी पहले ही देय होता है | आपके कब्र या समाधि स्थल पर हरी घास होगी, आपकी इच्छानुसार फूल होंगे, फव्वारे होंगे, आप चाहें तो मंद ध्वनि में निरन्तर संगीत आदि की व्यवस्था भी करा सकते हैं | भविष्य में ऐसा भारत में भी सम्भव हो सकता है | 
तत्पश्चात्, लेखक इस प्रश्न को लेकर आगे बढ़ते हैं कि उपभोक्तावाद की संस्कृति का विकास भारत में क्यों हो रहा है ? जवाब में लेखक कहते हैं कि भारतीय परम्पराओं का अवमूल्यन हुआ है | हमारी आस्थाएँ दिन-प्रतिदिन कमजोर हुई हैं | सत्य तो यह कि हम पाश्चात्य संस्कृति की दासता स्वीकार कर लिए हैं | हम आधुनिकता की झूठी चकाचौंध में खो गए हैं तथा समस्त भ्रामक विज्ञापन हमारी मानसिकता को अपने वश में कर लिया है | 
अत: लेखक उक्त संस्कृति के फैलाव का परिणाम सोचकर बहुत चिंतित हैं | आगे वो कहते हैं कि हमारे सीमित संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है | भला आलू चिप्स, पिजा और बर्गर खाकर स्वस्थ कैसे रहा जा सकता है ? ज्यों-ज्यों दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति में भी बढ़ोत्तरी होगी | लेखक के अनुसार, गांधीजी ने कभी कहा था कि हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाज़े-खिड़की खुले रखें पर अपनी बुनियाद पर कायम रहें | नि:सन्देह, उपभोक्तावाद की संस्कृति भविष्य में एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ सकती है…|| 

उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के प्रश्न उत्तर  

प्रश्न-1 लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है ? 

उत्तर- लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को स्वस्थ जीवन जीने के लिए सही और जरूरत के अनुकूल उत्पादों का उपभोग करना चाहिए | 
प्रश्न-2 आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है ? 

उत्तर- आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूर्णतः प्रभावित कर रही है | सत्य तो यह कि हम पाश्चात्य संस्कृति की दासता स्वीकार कर लिए हैं | हम आधुनिकता की झूठी चकाचौंध में खो गए हैं तथा समस्त भ्रामक विज्ञापन हमारी मानसिकता को अपने वश में कर लिया है | 
प्रश्न-3 जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं | आशय स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- “जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं…” | लेखक के इस कथन से आशय यह है कि आज उत्पाद से संबंधित तरह-तरह के विज्ञापन अपने आकर्षण के जाल में लोगों को फंसाते जा रहे हैं | लोग सिर्फ अपनी जरूरत के अनुसार उत्पाद नहीं ख़रीदते, बल्कि उत्पाद ख़रीदने के पीछे उनका उद्देश्य समाज में अपनी प्रतिष्ठा का दिखावा करना होता है | लोग महंगी से महंगी वस्तुएं ख़रीदने पर केंद्रित रहते हैं | इसलिए प्रस्तुत लेख में, लेखक ने अपनी इस बात पर बल देते हुए कहा है कि उत्पाद लोगों का नहीं, बल्कि लोग उत्पादों को समर्पित होते जा रहे हैं |
प्रश्न-4 कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं ? क्यों ? 

उत्तर- वर्तमान समय में किसी भी उत्पाद से संबंधित विज्ञापन या विज्ञापन का माध्यम समाज के लिए एक सशक्त आधार बन गया है | लोग तरह-तरह के दिगभ्रमित करने वाले आकर्षक विज्ञापनों के मायाजाल में फंस जाते हैं | लोगों को लगता है कि जो टी.वी. पर विज्ञापन दिखाया जा रहा है, वह पूर्णतः हमारी समस्याओं का समाधान है | इसलिए कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं | 
प्रश्न-5 आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन ? तर्क देकर स्पष्ट करें | 

उत्तर- मेरे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए, न कि उसका विज्ञापन | क्योंकि वस्तु की गुणवत्ता ही हमें लाभ पहुँचा सकती है और हम स्वस्थ रह सकते हैं | वरना विज्ञापन तो केवल लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए बनाया जाता है | 
प्रश्न-6 धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है | इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है | यह क्रिया कैसे हो रही है — धीरे-धीरे | अत: यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है | जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं | जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है | 

ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए | 

उत्तर- क्रिया-विशेषण से युक्त लगभग पाँच वाक्य निम्नलिखित हैं — 
• हर माह उसमें नए-नए उत्पाद जुड़ते जाते हैं | 
• यह गम्भीर चिंता का विषय है | 
• यह है एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज  की |
• अच्छे इलाज के अतिरिक्त यह अनुभव काफी समय तक चर्चा का विषय भी रहेगा | 
• एक सुक्ष्म बदलाव आया है | 
प्रश्न-7 धीरे–धीरे, ज़ोर से, लगातार, हमेशा,  आजकल, कम, ज़्यादा, यहाँ, उधर, बाहर —  इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए | 

उत्तर – शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य निम्नलिखित हैं – 
• धीरे-धीरे – धीरे-धीरे उसके सेहत में सुधार आ  जाएगा | 
• ज़ोर से — उसे जरा ज़ोर से आवाज़ लगावो | 
• लगातार —  सुबह से लगातार वर्षा हो रही है | 
• हमेशा —  हमेशा अच्छी किताबें पढ़ो | 
• आजकल — आजकल वह खुश दिखाई देता है | 
• कम — कम बोलना समझदारी है | 
• ज़्यादा — ज़्यादा चलने से शरीर स्वस्थ रहता है | 
• यहाँ — यहाँ उसकी जमींदारी है | 
• उधर — उधर जाना मना है | 
• बाहर — तुम्हें घर से बाहर निकलना नहीं है | 
प्रश्न-8 पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए | 

उत्तर-  ‘दिखावे की संस्कृति’ से तात्पर्य यह है कि लोग उत्पादों की गुणवत्ता को अनदेखा करके, बाहरी चमक-दमक और आकर्षक पैकेजिंग से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं | दिखावे की संस्कृति ने लोगों को सिर्फ दिगभ्रमित करने का काम किया है तथा यह संस्कृति मनुष्य में केवल भोग की प्रवृति को बढ़ावा दिया है | 

उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ का शब्दार्थ

• विलासिता – आरामदायक जीवन जीना 
• शैली – ढंग
• वर्चस्व – प्रधानता, दबदबा 
• निरन्तर – बिना किसी अन्तर के 
• विज्ञापित – सूचित, अधिसूचित 
• अनंत – जिसका अंत न हो, असीम 
• सौंदर्य प्रसाधन – सुंदरता बढ़ाने वाली वस्तु 
• परिधान – वस्त्र, कपड़ा, लिबास 
• अस्मिता – पहचान, शिनाख़्त 
• अवमूल्यन – मूल्य में गिरावट या कमी 
• क्षरण – नाश, नष्ट 
• उपनिवेश – वह विजित देश जिसमे विजेता राष्ट्र के लोग आकर बस गए हों | 
• प्रतिमान – मानदंड, प्रतिमा, प्रतिमूर्ति 
• प्रतिस्पर्धा – होड़, प्रतियोगिता 
• छद्म – बनावटी, कृत्रिम, छल, कपट 
• दिग्भ्रमित – दिशाहीन, भ्रम की स्थिति कायम करना 
• वशीकरण – वश में करना, काबू करना 
• अपव्यय – फिजूलखर्ची 
• तात्कालिक – उसी समय का
• परमार्थ – दूसरों की भलाई, परोपकार 
• बुनियाद – नींव 
• आक्रोश – गुस्सा, क्रोध | 

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