किसी भी हद तक जाकर चुनाव खरीदेगा
वो लोगों का हर वोट अपने भाव खरीदेगा,
किसी भी हद तक जाकर चुनाव खरीदेगा।
उसे ग़रीबों के आंसू-पार जाना है इसलिए,
वो लालच के वादों की एक नाव खरीदेगा।
हमदर्दी भरे मरहम के वोटों की जुस्तजू में,
वो अपने लिए फिर से झूठे घाव खरीदेगा।
भोली प्रजा में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए,
वो सरहदों पर बे-ज़रूरत तनाव खरीदेगा।
हम सर्दी में ठिठुर गए अलग बात है मगर,
मतलब आया तो गर्मी में अलाव खरीदेगा।
ये कह के लोकतंत्र का त्यौहार है इसलिए,
लोगों के लिए शराब और पुलाव खरीदेगा।
छोटे बड़े में एकता की बात कहने के लिए,
वो भोली स्लम बस्तियों में पड़ाव ख़रीदेगा।
उसके चेहरे पे दिखती हैं धोखों की झुर्रियां,
कब तक मूंछों के लिए झूठा ताव खरीदेगा।
सियासत की तमन्ना ना शौहरत की आरज़ू,
ज़फ़र तुमसे किसलिए मनमुटाव खरीदेगा।