हमने भी गर खुदा को तलाशा होता
हमने भी गर खुदा को तलाशा होता
तो क्यूँकर ये हमारा तमाशा होता।
भूपेन्द्र कुमार दवे |
करते करते तलाश उसी इक खुदा की
हमने भी खुद को खूब तराशा होता।
ठोकर खाके गिरना भी बुरा न होता
गर वो पत्थर खुदा का तराशा होता।
तू गिराके उठाता तो अच्छा होता
मैं गिरता तू उठाता तमाशा होता।
इंसान अगर खुदापरस्त नहीं होता
शैतान होता जुल्म बेहताशा होता।
शैतानी हरकत गर नाखुदा न करता
उसने भी इक खुदा को तलाशा होता।
तू सामने होता तो नजर ना उठती
पर यूँ सिर झुकाना भी तमाशा होता।
—- भूपेन्द्र कुमार दवे
यह रचना भूपेंद्र कुमार दवे जी द्वारा लिखी गयी है। आप मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल से सम्बद्ध रहे हैं। आपकी कुछ कहानियाँ व कवितायें आकाशवाणी से भी प्रसारित हो चुकी है। ‘बंद दरवाजे और अन्य कहानियाँ‘, ‘बूंद- बूंद आँसू‘ आदि आपकी प्रकाशित कृतियाँ है।संपर्क सूत्र – भूपेन्द्र कुमार दवे, 43, सहकार नगर, रामपुर,जबलपुर, म.प्र। मोबाइल न. 09893060419.