गुस्सा आता है
भिखारी से
भिखारी |
मैंने पूछा-
जनाब आप हट्टे कट्टे जवान हो
हाथ पैर भी सलामत
फिर क्यों ?
माँगते हो भीख
कर हरकत अजीब सी
पसार हाथ I
भिखारी तिलमिलाया
आह ! भर चिल्लाया
साहब आप नहीं जानते
मैं कौन ?
क्या हूँ ?
पहने चोला भिखारी का
भिखमंगा नंगा हूँ I
भिखारी ने मुझे
सबक सिखाया
गुस्सा हमें ही नहीं
भिखारी को भी आता है
नौकर को भी आता है
पास बैठे सज्जन को आता है
मुझे आता है
तुम्हें आता है
संसार में अनंत प्राणियों को आता है I
रचनाकार परिचय
नाम- अशोक बाबू माहौर
जन्म -10 /01 /1985
साहित्य लेखन -हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में संलग्न
प्रकाशित साहित्य-विभिन्न पत्रिकाओं जैसे -स्वर्गविभा ,अनहदकृति ,सहित्यकुंज ,Indian Wikipedia ,साहित्य शिल्पी ,पुरवाई ,रचनाकार ,पूर्वाभास,वेबदुनिया आदि पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित I
साहित्य सम्मान -इ पत्रिका अनहदकृति की ओर से विशेष मान्यता सम्मान २०१४-१५ से अलंकृति I
अभिरुचि -साहित्य लेखन ,किताबें पढ़ना
संपर्क-ग्राम-कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111
ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.com
8802706980