ग्रामीण जीवन की समस्या पर निबंध | Problems of Rural Life in Hindi

ग्रामीण जीवन की समस्या पर निबंध 

ग्रामीण जीवन पर निबंध Essay on Indian Village life ग्रामीण जीवन की समस्याएँ पर निबंध Gramin jeevan ki samasya Gramin jeevan ki samasya in hindi हमारी ग्रामीण समस्याएँ पर निबंध हिंदी में भारतीय ग्रामीण का जीवन सुधार की आवश्यकता – भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनता गांवों में ही बसती  है। ये गाँव ही भारत की आत्मा है। हमारे जीवन का दर्पण है और वास्तविक भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति के प्रतिक है। वास्तविक प्राकृतिक सुन्दरता की मनोरम छटा गाँवों में ही बिखरी पड़ी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि यदि भारत को विकसित करना है ,तो पहले यहाँ के गांवों को विकसित करना होगा ,क्योंकि भारत गांवों में ही बसता है किन्तु यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि भारत की आत्मा कहे जाने वाले गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है। 

बिजली की समस्या 

आज भारत सरकार की ओर से ये दावे किये जाते हैं कि गाँवों के उत्थान के लिए भरकस प्रयास किये जा रहे हैं किन्तु सच्चाई तो यह है कि आज भी अधिकतर गाँवों में बिजली ,पानी ,सफाई ,शिक्षा ,स्वास्थ्य ,संचार ,यातायात की समस्यायें गाँववासियों का जीवन दूभर किये हुए हैं। आज भी गाँवों के सड़कें कच्ची तथा गड्ढों से युक्त हैं तथा बरसात में इन सड़कों पर चलने के बारे में हम शहरी लोग सोच भी नहीं सकते। गाँव में अधिकतर सभी किसानों ने अपने खेतों की सिंचाई के लिए मशीन तो लगा ली है परन्तु बिजली की कमी के कारण वे नलकूप बेकार पड़े रहते हैं तथा किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। गाँवों में १५ से १६ घंटे बिजली की कटौती की जाती है तथा वही बिजली शहरों में मुहैया करायी जाती है। बिजली की यह कटौती किसी भी समय हो जाती है इसीलिए परेशानी कई गुणा बढ़ जाती है। 

स्वच्छ जल व चिकित्सा का अभाव 

ग्रामीण जीवन की समस्या पर निबंध | Problems of Rural Life in Hindi

पीने का साफ़ पानी भी अधिकतर गाँवों में उपलब्ध नहीं है। गाँवों में नगर निगम के पानी की लाइन नहीं है जिसके कारण ग्रामीणों को कुवों ,तालाबों आदि का पानी पीना पड़ता है और फिर हैजा ,दस्त ,पेचिस आदि बीमारियाँ ग्रामीणों को उठानी पड़ती है। सरकार की ओर से भी इस दिशा में कोई ठोस कदम कहीं उठाये जाते हैं। ग्रामीणों की परेशानी यही पर समाप्त नहीं हो जाती है। उचित चिकित्सा के अभाव में कितने ही ग्रामवासी असमय ही मौत के मुँह में चले जाते हैं। राज्य सरकार की ओर से गाँवों में जो प्राथमिक चिकित्सा केंद्र चलाये जाते हैं उनके डॉक्टर अपने अस्पताल में बैठने के स्थान पर अपने व्यक्तिगत क्लिनिक में प्रक्टिस कर रहे हैं। कितनी ही बार तो डॉक्टर की अनुपस्थिति में काम्पौन्दर या चपरासी ही बीमार को देख लेते हैं और फिर उलटी – सीधी दवाई लेने से मरीज की हालत और भी बिगड़ जाती है। सरकार की ओर से बीमारों को मुफ्त दवाइयाँ देने का प्रावधान है किन्तु कितनी ही दवाइयाँ अस्पताल में पहुँचने से पहले ही दवाई की दुकानों में बेच दी जाती है। दूसरे डॉक्टर भी जल्द से जल्द गाँवों से अपना तबादला शहरों में कराने की जी – तोड़ करते रहते हैं क्योंकि गांवों में न तो उनका मन ही लगता है और न ही कोई सुविधाएँ ही प्राप्त होती है।

 

शिक्षा का अभाव 

शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीणों की दशा बहुत दयनीय है। प्राईमरी स्कूलों की खस्ता हालत देखकर बहुत दुःख होता है। प्रत्येक गाँव के प्राईमरी स्कूल के कमरों में पंखों व बिजली की कोई व्यवस्था नहीं है। सफाई का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। स्कूल में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है,ज्यादातर स्कूलों के हैंडपंप खराब पड़े रहते हैं क्योंकि कोई भी उनकी देखभाल पर ध्यान ही नहीं देता है। गाँवों के स्कूलों में शिक्षक प्रायः अनुपस्थित ही रहते हैं और यदि आते भी है तो पढ़ाने के स्थान पर बातों में व्यस्त रहते हैं। इंटरकॉलेज केवल थोड़े बहुत गाँवों में ही होते हैं और इन कॉलेजों में शिक्षक शहर से पढ़ाने आते हैं इसीलिए अधिकतर वे अनुपथित रहते हैं। 

टूटी सड़कें व संचार माध्यमों की कमी 

गांवों की सड़कें तथा गलियाँ टूटी फूटी होती है तथा उनकी मरम्मत के बारे में कोई भी नहीं सोचता है। ऐसी टूटी फूटी सड़कों पर जब बुग्गी ,घोड़ा तांगा ,ट्रैक्टर आदि वाहन चलते हैं तो सड़कें और भी टूट जाती है। टूटी फूटी गलियाँ से गन्दा पानी बाहर बहता रहता है जिससे अनेक बीमारियाँ फ़ैल जाती है। सड़कों पर लाइट का तो नामोनिशान ही नहीं होता है इसीलिए थोड़ा सा भी अँधेरा होने पर आने जाने में बहुत परेशानी होती है इसके अतिरिक्त राज्य सरकार द्वारा खोली गयी राशन की दुकाने ,डाकघर इत्यादि बंद रहते हैं और जब खुलते हैं तो सामान ही उपलब्ध नहीं होता है। इसके अतिरिक्त गाँव वालों को अपनी फसल बेचने में अत्यंत कठिनाई होती है क्योंकि गाँवों से मंडी दूर होती है। इसका पूरा लाभ भी किसानों को नहीं मिल पाता और सारा पैसा दलाल ही खा जाते हैं। ये दलाल गाँव के लोगों से कम मूल्य में अनाज खरीद लेते हैं और फिर बाज़ार में अच्छे पैसों में बेचकर खूब लाभ कमाते हैं। अब यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि जो दिन रात मेहनत करके ,सूखे ,बाढ़ ,वर्षा का कष्ट झेलकर फसल उगाता है ,वही दुखी रहता है। 
अधिकतर गाँवों में संचार माध्यमों की भी बेहद दुर्व्यवस्था होती है। फोन लाइन ठीक से कार्य नहीं करती है ,ख़राब हो जाने पर कोई ठीक करने में जल्दी से नहीं पहुँचता इसीलिए उनका शहरों से संपर्क टूट सा जाता है। गांवों में एक ही सहकारी बैंक होता है ,जिसके कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाते है। वे तो शहरों की ओर भागते हैं तथा कोई भी कार्य मन लगाकर नहीं करते हैं। 
इन सबके अतिरिक्त गांवों की दुर्दशा का मुख्य कारण अशिक्षा ,कुसंस्कार ,रूढ़िवादीता आदि भी है। आज भी ग्रामीण लोग बुरी परम्पराओं में जकड़ें हुए हैं ,अंधविश्वासों से घिरे हुए है। बाल विवाह ,बेमेल विवाह भी गाँवों की मुख्य समस्याएँ हैं। 

ग्रामीण जीवन की समस्याओं का निवारण करने के उपाय 

प्रत्येक समस्या का समाधान होता है ,बशर्ते हम दिल से उसका हल ढूंढकर उस पर अमल करें। सर्वप्रथम राज्य सरकारों की और से गांवों की प्रगति तथा विकास के लिए जो भी नियम या संस्थाएँ बनायी जा रही है वे ठीक से कार्य करती है या नहीं यह देखना बहुत जरुरी है। दूसरी ओर ग्रामीणों को स्वयं भी जागरूक होने की आवश्यकता है। आज वे भी टेलीविजन देखते हैं रेडिओ सुनते हैं तो उन्हें भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए तथा अंधविश्वासों से बाहर निकलकर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। 

निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि आज हिंदुस्तान बदल रहा है ,गाँव भी पहले से अधिक विकसित हो रहे हैं ,सरकार की ओर से भी ठोस कदम उठाये जा रहे हैं ,किन्तु इतने ज्यादा गाँवों का सुधार करने के लिए हमें और भी अधिक प्रयत्न करने होंगे ,तभी हमारा देश सही अर्थों में उन्नत तथा विकासशील देश कहला सकेगा। 

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