चाय

चाय

भारतीयों का एक अच्छा गुण है- वह अन्य संस्कृति को बहुत ही जल्द अपना लेते हैं।जैसे मान लीजिए चाय पीना।पेय के रूप में अंग्रेजों के जमाने से यह लोकप्रिय है । दुसरे इलाकों में यह इतना प्रलचित नहीं था।पहले लोग चाय पीना इतना पसंद नहीं करते थे । उसे विदेशी पेय कहा जाता था।इसके बहुल प्रचलन के लिए अंग्रेजों ने काफी मेहनत की । बजार में मुफ्त में चाय मिलती थी।चाय पीने के फायदों का विज्ञापन होता था।समय के साथ चाय हमारा पसंदीदा पेय बन गया । 
फिर कईं सालों तक उसे बड़ों का पेय पदार्थ माना जाता था .बच्चों को चाय पीने के लिए मना किया जाता था । अब भी कुछ घरों में छोटे बच्चों को चाय पीने का मनाही है।स्वास्थ्य से संबंधित कारओं की वजह से यह किया जा रहा है । अब भी कईं लोगों के मन में यह धारणा बनी हुई है कि चाय पीने से बच्चों का लिवर खराब हो जाएगा,
चाय
चाय 

पेट गरम हो जाएगा, रंग काला पड़ जाएगा आदि । तब बच्चों को चाय पीने से टोकने का एक सामाजिक कारण था । पहले जमाने में बच्चों का बड़ों के सामने चाय पीना उनके प्रति असम्मान प्रदर्शन माना जाता था । मुझे याद है मैं तब आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था । मेरे खेल के शिक्षक ने मुझे चाय पीते हुए देख लिया था और खूब पिटाई की थी । हां, उस समय बिना किसी कारण के भी बच्चों को पिटने की आजादी शिक्षक के पास थी । आजकल और वह आजादी नहीं । घर में बैठ कर चाय पीने की आजादी का मतलब था बड़ा हो जाना । बस एक क्षेत्र में चाय पीने की आजादी थी । वह था पढ़ाई के समय । रात को पढ़ाई के समय मां चाय बना देती थी । अभी परिस्थितियों में बदलाव आया है । अब तो हालत एेसी है कि सुबह की चाय न मिलने पर बहुत लोगों की नींद नहीं टूटती । सही वक्त पर चाय न मिलने पर बहुत लोगों का सिर दुखता है । आदि ।

   अगर गौर करें तो आपको यह मालूम चलेगा कि अब चाय केवल एक पेय नहीं । चाय हमारी संस्कृति का एक अंग हो गया है । किसी भी अतिथि के घर आने पर उससे पहले चाय ही पिलाई जाती है । रिश्ते के लिए जब लड़की के घर लड़के वालें आतें हैं तो लड़की चाय ही लेकर आती है । यह बात मुझे पता नहीं था। मैं भी लड़की देखने गया था । जो चाय लेकर आई मैं उसे न देखकर दूसरों को देखता रहा । जो चाय लेकर आई थी वह चाय री कप मेज पर रख कर बड़ों को प्रणाम कर चली गई । मैं लड़की की प्रतीक्षा कर रहा था ।  बहुत देर बैठने के बाद चला आया । लड़की के बड़े भाई मुझे छोड़ने आए । मैंने उनसे पूछा कि आपने लड़की क्यों नहीं दिखाई ? उन्होंने कहा, मतलब ? जिसने तुम्हें चाय लाकर दिया वही तो लड़की थी । तुम कैसे आदमी हो इतनी सी बात समझ नहीं आई ! क्या पत्रकार हो तुम ! 
       यहां बता दूं कि तब मैं पत्रकार हूं । पत्रकारों को कितनी बातों की जानकारी रखती पड़ती है उस दिन मुझे यह अहसास हुआ । चाय से ही पता चलता है कि किसी घर भी बुनियाद कितनी मजबूत है । अच्छी चाय मतलब बुनियाद मजबूत है और खराब चाय मतलब अमीर हो सकते हैं लेकिन बुनियाद ही नहीं । आप किसीके घर गए हों , वहां कौन आपको चाय परोस रहा है इसी से आपकी अहमियत मालूम होती है । अगर नौकर ने चाय दी तो सोच लीजिए कि उनके सामने आपका कुछ भी दर्जा नहीं । अगर घर की लक्ष्मी चाय बना दे तो जान लीजिए कि आपकी कोई हैसियत है। 
आजकल कईं घरों में चाय के बदले काफी पसंद की जाती है ।लेकिन पता नहीं कि काफी अपना सा नहीं लगता ।शायद चाय की तरह काफी को हम अपना नहीं पाए हैं ।चाय में आत्मीयता का सुगंध है और काफी में औपचारिकता खूशबू ।जैसे चाय अपना हो और काफी मेहमान। 

– डा.मृणाल चटर्जी
अनुवाद इतिश्री सिंह राठौर

मृणाल चटर्जी ओडिशा के जानेमाने लेखक और प्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं ।मृणाल ने अपने स्तम्भ ‘जगते थिबा जेते दिन’ (संसार में रहने तक) से ओड़िया व्यंग्य लेखन क्षेत्र को एक मोड़ दिया ।इनका एक नाटक संकलन प्रकाशित होने वाला है।

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