जीवन की अंतिम लड़ाई

हत्यारा

जीवन की अंतिम लड़ाई में वह अपने आपको बहुत ही असहज , लाचार और कमजोर महसूस कर रहा हैं । इतना उसने अपने आपको कभी अकेला महसूस नहीं किया। वह लगभग पैंसठ साल का बूढ़ा हैं। बह पांच छः दिन से भूखा हैं। उसके बाल बड़े हुए हैं । शरीर जर्जर अवस्था में हैं। वह बूढ़ा जो चलने में असमर्थ हैं , उसके पांव और हाथों में लोहे की मोटी मोटी हथकड़ी लगी हुई हैं। बरेली सेंट्रल जेल की एक बैरक में भाव हीन अवस्था में हैं। बह बैरक से बहार की और अपलक शून्य में देखे जा रहा हैं।
                
उसके चेहरे को देखने से लगता हैं की वह परमेश्वर से  मौत  की याचना कर रहा हैं। आज परमेश्वर उस को बरदान मांगने के लिए कहा होता तो बह सिर्फ अपने लिए मौत की मांग करता। किन्तु  कैसी मजबूरी हैं  मौत भी उसके बस में ना थी।
             
हत्यारा

उस को अपना वह छोटा सा गाँव याद आता हैं वहीँ भूख और गरीबी तो थी किन्तु अपनापन भी था। वहीँ आधी रोटी स्वयं खाना और अपनी आधी रोटी दूसरों को दे देना का संस्कार था। उस को याद आता हैं की वह कक्षा आठ से आगे नहीं पढ़ सका था किंयों की इससे आगे पढ़ा ने के लिए उसके बाप के पास पैसे ही नहीं थे।अतः : गाँव के सेठ के यहाँ मुनीमगिरी करने लगा। उसकी शादी हो गयी और उसके एक बेटा हुआ। दूसरे बच्चे को जन्म देते समय इलाज के अभाव में तथा सही देखभाल ना होने के कारण उसकी पत्नी और बच्चा दोनों स्वर्ग सिधार गये। अतः: मन बहलाने के लिए अब उसके पास उसका दो साल का बेटा था। सेठ उसकी मेहनत और ईमानदारी से बहुत प्रभाबित था। उसने उस को अपने एक रिश्तेदार के पास काम करने के लिए शहर भेज दिया।

            
शहर आकर बह यहाँ की चकाचौंध , यहाँ की विलासिता और यहाँ के रहन सहन से बहुत प्रभावित हुआ उसके मन में भी एक बड़ा आदमी बनने , एक इज्जतदार आदमी बनने और एक पैसे बाला आदमी बनने की इच्छा होने लगी।
              
अपने अनुभव से उसकी समझ में एक बात तो आ गयी थी कि शिक्षा ही एक मात्र साधन हैं जो गरीब को अमीर और मूर्ख को अकल्मन्द बना सकती हैं |उसने तय किया कि वह  कठिन मेहनत करेगा ,अपना सब कुछ लगा देगा और अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर एक बड़ा अफसर बनाना हैं ।
          
उसकी इस कल्पना ने उस को जीने की नयी राह दी। काम के अलावा बह सारे दिन अपने बेटे के बारे में सोच ता रहता था। उसकी छोटी छोटी बातों तथा छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखता था। उस को स्कूल छोड़ कर आता। उसके लिए तरह तरह की किताब खरीद कर लाता । उस को खूब पढ़ने के लिए उत्साहित करना।
          
वह इतना अपने बेटे में मगन रहता था कि उसकी दुनिया उसके बेटे में सीमित हो कर रह गयी थी। अपने बेटे के कष्ट और दर्द को बह अपना दर्द समझता था और उसकी खुशी को अपनी खुशी। उसकी मेहनत रंग लाई और उसके बेटे ने आई ऐ एस की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वह खुशी से झूम रहा था। उसके बेटे ने उससे कहा कि वह इस खुशी के अब सर पर उससे दो वचन मांगना चाहता  हैं और आशा करता हैं की वे. निराश नहीं करेंगे । भला जिसे आप बहुत प्यार करते हो और जो आपके जीने का मक़सद हो आप उस को कैसे निराश कर सकते हो
          
उसने कहा कि उसकी सहपाठी हैं जो आई ए एस की बेटी हैं बह उससे शादी करना चाहता हैं और दूसरा उस को अहसास हैं कि उसके पिता ने उस को यहाँ तक पहुंच ने में कितनी मेहनत की हैं कितना कुछ सहा हैं। इसलिए उसके पिता उसके साथ रहे और कभी भी उस को छोड़ कर ना जाए| 
          
आप जिसे प्यार करते हैं उसके विरुद्ध जाने का प्रश्न ही नहीं होता। उसने अपने बेटे की दोनों बात मान ली । यही से उसका दुर्भाग्य शुरू हो जाता हैं। उसके बेटे की बहू कहती   थी की तुम हमारी सोसाइटी में रहने के लायक नहीं हो।तुमसे ज्यादा परे लिखे और सभ्य तो हमारे नौकर हैं। जब भी बह गाँव जाने के लिए कहता  उसका बेटा उस को रोक लेता। बहू के त्रिस्कारो के बाबजूद बह रह रहा था किन्योकि बह अपने बेटे को सुखी देखना चाहता था। उस को दुखी देखना उसके बस में नहीं था।
        
अभी पांच दिन पूर्व उसका बेटा सरकारी दौरे पर शहर से बहार गया हुआ था। बेटे की पत्नी बहुत गुस्से से बोली ” मेंने तुझ से कई बार कहा कि गाँव चले जाओ पर तेरही समझ में आता ही नहीं हैं । अब इस घर में या तो में रहूंगी या तू। अभी में आग लगा कर तेरा और तेरह बेटे का जीवन बर्बाद करती हूं।” बह उससे बहुत अनुनय विनय करता रहा कि उसके बेटे को आने दें , बह अपने बेटे को को एक बार और आखरी बार देखना चाहता हैं अपने बेटे को देख कर बह गाँव चला जाएगा और फिर कभी नहीं आएगा। मगर यह किया ,बह हतप्रभ रह गया ,उसके बेटे की बहू ने अपने ऊपर पेट्रोल  से  आग लगा ली थी।
        
वह चीखा  । मोहल्ले बाले आये , उस को अस्पताल लेकर गए। अस्पताल में डाक्टर ने उस को मृत घोषित कर दिया | पुलिस ने उस को अपने बेटे की बहू की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि एक पैंसठ साल का वृद्ध  सताईस  साल की लड़की को कैसे जला सकता हैं।
         
वह इन्ही विचार में खोया हुआ था ,कि किसी ने उस को कन्धे पकड़ कर झकझोरा। बह जेल का सिपाई था और कह रहा था कि तुमसे मिलने कोई आया हैं। उसने सामने देखा तो उसका बेटा खड़ा था। वह लगातार रो रहा था और उसकी आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे। किन्तु आज उसके हाथ अपने बेटे के आँसू पोंछने के लिए खड़ा ना हो सके |
                                                       
 –  अशोक कुमार भटनागर
                                              रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी
                                          रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार

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