जंगल बुक हिंदी पर चर्चा

जंगल बुक -2 हिंदी पर चर्चा
(एकांकी )

पात्र -शेर ,हाथी ,जेब्रा ,जिराफ, लोमड़  ,तोता ,गधा, गोरैया,कोयल
आज पंद्रह सितंबर को जंगल में हिंदी दिवस मनाने का संकल्प इससे पहली वाली बैठक में पारित हुआ था अतः आज जंगल के सभी निवासी इस सभा में हिंदी दिवस मनाने एकत्रित हुए हैं सर्व सम्मति से हाथी दादा को इस सभा का मुख्य अतिथि एवं शेर को अध्यक्ष्य पद दिया जाना सुनिश्चित हुआ,तोता राम ने समारोह का संचालन संभाला। 
तोता – आज इस सुवसर पर मंचासीन सभी अतिथियों का मैं स्वागत करता हूँ ,दोस्तों जैसा की आप को मालूम हैं आज हिंदी दिवस है और हम यहाँ अपने जंगल में हिंदी की दशा और दिशा पर चिंतन करने के  लिए उपस्थित हुए हैं ,मैं प्रथम सम्बोधन हेतु जंगल के नवांकुर साहित्यकार कु गौरैया को आमंत्रित कर रहा हूँ ,सभी वक्ताओं से एनएमआर निवेदन है कि समय सीमित हैं और सभी वक्तों को सुनना है अतः संछिप्त में अपनी बात रखें।
गोरैया – मंच पर आसीन अतिथियों को नमन के पश्चात आज मैं हिंदी की दशा और दिशा पर अपने विचार रख

रही हूँ ,आज दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन गयी है। पूरा विश्व आपस में जुड़ा और मिला हुआ-सा दिखाई पड़ रहा है। संचार और तकनीक ने भौगोलिक दूरियां खत्म कर दी हैं। हिंदी का सीधा संपर्क जनमानस से है। हिंदी के बिना राज्य हो सकता है, लेकिन राष्ट्र नहीं हो सकता। राष्ट्रीय स्तर पर किसी दूसरे देश से बात करने के लिए राष्ट्र की अपनी कोई एक भाषा होनी चाहिए मेरे अनुसार हिंदी में वो सारी खूबियां हैं जो इसे राष्ट्र भाषा का मानक देने में समर्थ हैं ,बहुमत की भाषा हिंदी है. बड़े प्रदेशों की भाषा हिंदी है. इसलिए मुझको लगता है कि हिंदी राष्ट्र की भाषा हो. लेकिन हमारे यहां भाषा के नाम पर राजनीति बहुत होती है. हम क्षेत्रीयता, भाषा, जाति, धर्म जैसी चीजों में खुद को उलझाये रखते हैं। आज के इस सुअवसर पर हम प्रतिज्ञा करें कि जब तक हिंदी राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं कर लेती तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगें। अस्तु जय हिन्द।

तोता -अभी आदरणीय गौरैया  ने बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि हिंदी राष्ट्र भाषा बनने का पूरा सामर्थ्य रखती है।  अब में जंगल के जाने माने वकील  श्री लोमड़ प्रसाद को आमंत्रित कर रहा हूँ आज हिंदी दिवस पर अपना उद्बोधन देकर हमें कृतार्थ करें। 
लोमड़ प्रसाद -आदरणीय मंच सभी सुधिजन आज हिंदी दिवस के मौके पर मैं हिंदी की दशा और दिशा पर अपने विचार रख रहा हूँ। अभी हिंदी को उसके अपने घर अर्थात हिंदुस्थान में ही अपनी वह स्थिति प्राप्त करने के लिए जूझना पढ़ रहा है, जिसकी वह वास्तविक अधिकारी है।सालों गुजर गए हिंदी को राष्ट्रभाषा का मान दिलाने का प्रण ठाने लेकिन हिंदी आज भी बिसूरती हुई अपनी हालत पर खड़ी है। हर साल सितम्बर का महीना हिंदी के नाम होता है और बाकि के 11 महीने अंग्रेजी को समर्पित। ऐसे में हिंदी को जनभाषा के रूप में प्रतिष्ठापित किये जाने की जो कवायद है, वह आयोजनों तक ही रह गई है। कल तो उच्च वर्ग  के लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाते थे, अब निम्न आय वर्ग भी अंग्रेजी स्कूलों के मोहपाश में बंध गया है। आखिर यह स्थिति आयी क्यों, इस पर चिंतन की जरूरत है।“ निज भाषा उन्नत्ति अहे ,सब उन्नत्ति को मूल ,बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल ” ‘ भारतेंदु हरिश्चंद्र ‘ की ये पंक्तियाँ हमें हिंदी की अस्मिता को सुरक्षित रखने का वादा याद दिलाती हैं। हमें यह बात भी ध्यान रखनी होगी कि हिंदी केवल भारत की भाषा नहीं है। विश्व भर में हिंदी बोलने वाले और हिंदी के प्रति अनुराग रखने वाले लोग फैले हुए हैं। भारत के प्रति संसार की बढ़ती हुई रुचि के कारण आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक, जो भी हों, जो भी व्यक्ति,संस्थान या देश अपनी इस क्षुधा और जिज्ञासा को शांत करना चाहेगा, उसे हिंदी रूपी द्वार को अंगीकार और पार करना  होगा।अस्तु 
तोता – आदरणीय लोमड़ प्रसाद ने बहुत तार्किक तथ्य हमारे सामने रखे। अब में आमंत्रित कर रहा हूँ स्वरकोकिला आदरणीया कोयल बहन जी को कि आज वो हिंदी दिवस पर इस मंच से अपने सुरों का साज सज्जित कर  अनुग्रहीत करें। 
कोयल बहिन जी – आज  इस पावन अवसर पर समृद्ध मंच को प्रणाम करते हुए मैं अपनी मातृभाषा हिन्दी की कृतज्ञ हूँ कि आज इस भाषा की बदौलत मुझे पहचान मिली है मुझे लम्बा भाषण नहीं देना आपके समक्ष में हमारी प्यारी हिंदी का अभिनंदन करते हुए कुछ पंक्तियाँ आपके सामने गुनगुनाना चाहती हूँ। 
लहराती द्युति दामनी ,घोल मधुरमय बोल।
हिन्दी अविचल पावनी ,भाषा है अनमोल।
भाषा है अनमोल,कोटि जन पूजित हिंदी।
फगुवा रंग बहार ,गगन में चाँद सी बिन्दी।
कह सुशील कविराय ,प्रेम रंग रस बरसाती।
कोकिल अनहद नाद ,तरंगित मन लहराती।

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हिंदी भाषा दिव्य है ,स्वर्ग सरिस संगीत।
हिन्दी ने ही रचे हैं ,दिव्य काल गत गीत।
दिव्य काल गत गीत ,रची तुलसी की मानस।
संस्कृत का आधार ,लिए हिन्दी का मधुरस।
कह सुशील कविराय ,मातु के माथे बिन्दी।
नेह नयन अनुराग ,समेटे सबको हिन्दी।

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हिन्दी ही व्यक्तित्व है ,हिन्दी ही अभिमान।
हिन्दी जीवन डोर है ,हिन्दी धन्य महान।
हिंदी धन्य महान ,राष्ट्र की गौरव भाषा।
चेतन चित्त विभोर ,हृदय की चिर अभिलाषा।
आदि अनादि अमोघ ,मध्य जिमि नारी बिन्दी।
सुंदर सुगम सरोज ,हमारी प्यारी हिंदी।
 अस्तु जयहिंद ,जय हिंदी 
(तालियों  गड़गड़ाहट से पूरा हाल गूंजता है )
तोता -वह कोयल बहिन जी आपने तो अपने सुरों से समां बाँध दिया आपका कोटिश आभार। अब मैं मूर्धन्य साहित्यकार ,शिक्षक ,विचारक आदरणीय हाथी दादा कि आज के इस समारोह के मुख्य अतिथि भी हैं को अपने उद्गार के  आमंत्रित कर रहा हूँ।
हाथी दादा -आज के इस गरिमामय समारोह के अध्यक्ष आदरणीय शेर सिंह जी ,उपस्थित गणमान्य जंगल के नागरिक बंधु ,आज हिंदी दिवस पर आप सभी को आत्मीय बधाई देते हुए मैं अपनी बात आप लोगों के समक्ष रख रहा हूँ ,प्रत्येक भाषा लोगों की आत्मा की निशानी और शक्ति है, जो स्वाभाविक रूप से इसे उन्हें अभिव्यक्त करती है। इसलिए प्रत्येक के अपने विचार-स्वभाव ,जीवन ,ज्ञान और अनुभव व्यक्त करना का तरीका विकसित होता है …। इसलिए किसी राष्ट्र के लिए या मानव समूह- का सबसे बड़ा मूल्य है, अपनी भाषा को संरक्षित करना और इसे एक मजबूत और जीवित संस्कृति का साधन बनाना। एक राष्ट्र, जाति या एक व्यक्ति, जो अपनी भाषा खो देता है, अपना संपूर्ण जीवन या उसका वास्तविक जीवन नहीं जी सकता है। हिंदी भाषा की उत्पत्ति कहाँ से है? किन पूर्ववर्ती भाषाओं से वह निकली है? वे कब और कहाँ बोली जाती थीं? हिंदी को उसका वर्तमान रूप कब मिला? इस पर बहुत मत और वादविवाद हो सकतें हैं किन्तु कितने ही वैदिक छंद तक अवस्‍ता में तद्वत् पाए जाते हैं। राचीन भारतीय आर्यभाषा काल का समय 1500 ईसा  पूर्व से लेकर 500 ईसापूर्व तक माना गया है इसमें वेदों ,ब्राह्मण ग्रंथो एवं पाणनि की अष्टाध्यायी की रचना हुई। हिंदुस्‍तान की वर्तमान संस्‍कृतोत्‍पन्‍न भाषाओं का जन्‍म कोई 1000 ईसवी के लगभग हुआ।मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा काल 500  ईसा पूर्व से 1000 ईस्वी सन तक माना जाता है इस समय इस समय लोक भाषा का विकास हुआ और उन्हें पालि (500 ईसा पूर्व से -1 ईसा पूर्व तक ) प्राकृत (1 ईसा से 500 ईस्वी तक ) अपभ्रंश (500 ईस्वी से 1000 ईस्वी तक ) भाषा का नाम दिया गया। अभी तक माना जाता था कि ब्राह्मी लिपि का विकास चौथी से तीसरी सदी ईसा पूर्व में मौर्यों ने किया था, पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के ताजा उत्खनन से पता चला है कि तमिलनाडु और श्रीलंका में यह ६ठी सदी ईसा पूर्व से ही विद्यमान थी। यह लिपि प्राचीन सरस्वती लिपि (सिन्धु लिपि) से निकली, अतः यह पूर्ववर्ती रूप में भारत में पहले से प्रयोग में थी। संस्कृत भारत और हिंदू धर्म की शास्त्रीय भाषा है, जिसमें अधिकांश धर्मग्रंथ (वृंदावन), महाकाव्य ( महाभारत, भगवत गीता) और प्राचीन साहित्य लिखा जाता है। पाली का उपयोग थेरवाद बौद्ध धर्म की प्रचलित और विद्वतापूर्ण भाषा के रूप में किया जाता है, क्योंकि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति सबसे पहले बिहार, भारत में हुई थी। उत्तर भारत की अधिकांश आधुनिक भाषाएं इन दो भाषाओं जैसे हिंदी, उर्दू, पुनाजाबी, गुजराती, बंगाली, मराठी, कश्मीर, सिंधी, कोंकणी, राजस्थानी, असमिया और उड़िया से उपजी हैं। इतने समृद्ध इतिहास के वावजूद आज हिंदी अपने स्वयं के अस्तित्व को क्यों खोज रही है इस पर हमे विचार करने की आवश्यकता है। भारत और अन्य देशों में ६० करोड़ से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फिजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की अधिकतर और नेपाल की कुछ जनता हिन्दी बोलती है। भाषाओं की विभिन्नता के समावेश के बावजूद भी अंग्रेजी को बोलचाल का माध्यम बनाया जाता है। जितनी मेहनत हम अंग्रेजी सीखने में करते हैं, उतनी मेहनत हम अपने ही भारत देश की किसी और भाषा को सीखने में क्यों नहीं करते हैं? पाश्चात्य अथवा अंग्रेजी संस्कृति को दोष देने से पहले प्रत्येक भारतीय को अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए कि वो खुद अपनी संस्कृति के प्रति कितने निष्ठावान हैं। आपने मुझे धर्यपूर्वक सुना इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ ,जय हिन्द ,जय हिंदी। 
तोता-आदरणीय मुख्य अतिथि ने बहुत सारगर्भित बातें हमारे समक्ष रखीं मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ एवं अपने अध्यक्षीय भाषण हेतु आदरणीय शेर सिंह जी को आमंत्रित करता हूँ। 
शेरसिंह -माँ सरस्वती के श्रीचरणों में वंदन उपरांत सम्माननीय मंच का अभिवादन करता हूँ आज जंगल के इस गरिमामय समारोह में हिंदी विमर्श बहुत सार्थक सन्देश दे रहा है मैं अपनी बात हिंदी के राजनीतिक संघर्ष से शुरू करता हूँ ,भारत का संविधान किसी भी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं देता है। हालाँकि भारत गणराज्य की केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा हिंदी है। भारतीय संविधान  संविधान के अनुच्छेद 343, राजभाषा अधिनियम 1963 (यथा संशोधित 1967) के अनुसार आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं की सूची है, जिन्हें अनुसूचित भाषाओं के रूप में संदर्भित किया गया है।इन भाषों को  मान्यता, स्थिति और आधिकारिक प्रोत्साहन दिया गया है।
इसके अलावा, भारत सरकार ने 1500-2000 वर्षों के अपने लंबे इतिहास के कारण तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम और ओडिया को शास्त्रीय भाषा का गौरव दिया है। सभी भारतीय भाषाएं इन 4 समूहों में से एक में आती हैं: भारत-आर्य, द्रविड़ियन, चीन-तिब्बती और अफ्रीका-एशियाटिक। अंडमान द्वीपों की विलुप्त और लुप्तप्राय भाषाओं में पांचवां परिवार है। हिंदी दुनिया की दूसरी सबसे बोली जाने वाली भाषा है (अंग्रेजी और स्पेनिश के बाद )डॉ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन २००५ के हवाले से लिखा है कि, विश्व में हिंदी जानने वालों की संख्या एक अरब दो करोड पच्चीस लाख दस हजार तीन सौ बावन (१, ०२, २५, १०,३५२) है जबकि चीनी बोलने वालों की संख्या केवल नब्बे करोड चार लाख छह हजार छह सौ चौदह (९०, ०४,०६,६१४) है। दुनिया की अन्य प्रमुख भाषाओं की तरह, हिंदी की देश भर में कई अलग-अलग बोली और भाषाएं हैं।ब्रज भाषा)(खड़ी बोली)हरियाणवी ,बुंदेली ,अवधी ( बाघेली) (क़न्नौजी)(छत्तीसगढ़ी) प्रमुख हैं। 
सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के बढ़ते इस्तेमाल पर भारत में बहुत विवाद हैं । ये कटु सत्य है कि भाषा ,भारत में एक विवादास्पद मुद्दा है,1963 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में  “देवनागरी लिपि में हिंदी” को भारत की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। देवनागरी लिपि संभवतः विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि हैI यह जैसी लिखी जाती है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का सेतु बनाने में इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने एक ओर कम्प्यूटर, टेलेक्स, तार, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीप्रिंटर, दूरदर्शन, रेडियो, अखबार, डाक, फिल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के माध्यमों को अपनी ओर आकृष्ट किया है, तो वहीं दूसरी ओर शेयर बाजार, रेल, हवाई जहाज, बीमा उद्योग, बैंक आदि औद्योगिक उपक्रमों, रक्षा, सेना, इन्जीनियरिंग आदि प्रौद्योगिकी संस्थानों, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों, आयुर्विज्ञान, कृषि, चिकित्सा, शिक्षा, प्रबंधन आदि में हिंदी के प्रयोग ने यह स्वतः सिद्ध क्र दिया है कि हिंदी सेतु भाषा के साथ राष्ट्र भाषा बनने का सामर्थ्य रखती है। आज के इस आयोजन में उपस्थित सभी गणमान्य स्वजनों से निवेदन है कि आज हम ये प्रतिज्ञा लेकर यहाँ से प्रस्थान करें कि हिंदी को हम भाषा के रूप में नहीं बल्कि अपने आचरण में अपनाएंगें तभी हम हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में प्रतिस्थापित कर पाएंगे अस्तु जय भारत ,जय हिंदी। 
तोता – स्वतंत्र राष्ट्र में राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय वेश तो प्रतीकात्मक रूप से राष्ट्र की पहचान है। वास्तव में राष्ट्रभाषा ही राष्ट्र की धमनियों में संचारित होने वाली राष्ट्रीयता की जीवंत धारा, रुधिर धारा है। राष्ट्रभाषा के बिना जन-जन का न तो पारस्परिक सम्पर्क संभव है और न देशवासियों में एकता की भावना ही पनप सकती है। हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक विशाल दर्पण भी है। इसकी मृदु-ध्वनियाँ भारतीय कविता को परिभाषित करती हैं। वास्तव में हिंदी पूरे देश को संगीतमय सम्मोहन से बांधती है और एक  जीवंत समाजकी परिकल्पना प्रदान करती है । भाषाओं की भव्य योजना में यह अपेक्षाकृत युवा है, । बहुत से लोग हिंदी भाषा सीखने के लिए प्रयास कर रहे हैं क्योंकि भारत अधिक सामाजिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हो रहा है, भारत  एक वैश्विक महाशक्ति भूमिका में बढ़ रहा है और हिंदी में विश्वगुरु बनने की अपार संभावनाएं हैं ।
आप सभी इस समारोह में उपस्थित हुए मैं ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ एवं अध्यक्ष महोदय की आज्ञा से आज के इस समारोह के समापन की घोषणा करता हूँ। 
(नेपथ्य में हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा का स्वर गूँजता हैं एवं परदा गिरता है। )

– डॉ सुशील शर्मा 

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