उधर सड़क पर

उधर सड़क पर 

उधर 
सड़क पर 
किनारे 
झाडी के पास 
बैठी बूढी औरत 
कटोरा थामे हाथ

मुँह पर दुआएँ 

ढेरों,हजारों,लाखों,
आते जाते पथिक को रोककर 
माँगती भीख 
रोती बुदबुदाती I 
बदन पर कपडे 
लज्जित हाय ! फटे हुए 
बाल विखरे 
चहरे पर झुर्रियाँ
सचमुच 
वह दुखियारी औरत 
झेलकर पीड़ा 
बैठी है 
वक्त की चौखट पर 
घूँट भर 
दुःख ! के 
पी रही है 
टूटती बिखरती सी I 
न समझ पाते हम 
किसी की पीड़ा 
बस रखकर 
उसकी हथेली पर 
दो-चार रुपये चले जाते 
मस्तमौला,उथल पुथल करते 
मुस्कुराते I 

यह रचना अशोक बाबू माहौर जी द्वारा लिखी गयी है . आपकी विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी है . आप लेखन की विभिन्न विधाओं में संलग्न हैं . संपर्क सूत्र –ग्राम – कदमन का पुरा, तहसील-अम्बाह ,जिला-मुरैना (म.प्र.)476111 ,  ईमेल-ashokbabu.mahour@gmail.com

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