जीवन की परीक्षा
जब कठिन परीक्षा आती है
जब विपत्तियाँ छा जाती है
साहसी जीव जी लेते हैं
और कड़वी विष पी लेते हैं
पर, कायर निष्काम रिपु
जब अपराध अघाता है
तब पीछे हाय पछताता है
जीत, जीत और जीत का
कब जीत वरन करे वर का
सौ बार फिसलकर फिर उठो
जग जयकार करे,उस नर का
और जो पीड़ा का दान मिला
अनल प्रभा उसे चुम लेती है
सुकृति मंगल पुण्य देती है
पर जीत का सेहरा पा करके
उज्ज्वल कृति को गा करके
एक और गाथा दोहराने को
चल दिया धीर कृत पाने को
पर हर्ष में अभिमान अजेय
खोता वैभव,पुरुषार्थ उत्तम
नियति ढाता,विपदा सितम
यह जीवन है अनमोल रतन
सुख दुःख का पुरातन रन
है व्यर्थ मोह के चक्कर में
पीड़ा से होता तप्त जीवन
यह अजर अमर तब बनता है
परमार्थ में अर्पण करते हैं
पुरुषार्थ समर्पण करते हैं
~सुरेन्द्र प्रजापति
असनी,गया(बिहार)
7061821603