मेरा होना या ना होना दोनों एक जैसे है

मरने तक

मेरा होना या ना होना
दोनों एक जैसे है
जब-जब तुम खुद को समर्पित करोगे
मैं तुम्हें समपर्ण कर लूंगा
कभी आकाश की गहराई में देखना
मैं आकाश की तरह, 
मद्धिम-मद्धिम तुम्हारे गले तक लौटूंगा! 
कभी बादलों को देखना
मैं इसी तरह तुम्हारे संवेदनाओं में, 
धीरे-धीरे दौड़ता आऊंगा! 
बस जाऊंगा नही तुम्हारे और मेरे वजूद के
मरने तक! 

कहानी 

मेरा होना या ना होना दोनों एक जैसे है

तुम्हारी आंखों में

एक ठंडक सी दस्तक होगी….! 
तुम्हारे मन के स्पंदन में, 
कोई चेहरा तो आया होगा
बस वहीं तुम्हारे और मेरे बीच का प्यार है! 
तुम्हें कैसे बताते की, 
हमारा यह नि:शब्द मिलन
सूर्य की किरनें जैसी पुरानी है! 
इसको ही निरन्तर समझना, 
यह बस मेरे और तुम्हारे अद्वैत की कहानी है! 

मेरा गाँव

धधकते लू के बयार में महकता है मेरा गाँव, 
सब सो जाते है सारी रात जागता है मेरा गाँव!! 
सरकारें बदल गयी हुकूमत भी बदल गया
लेकिन खुद को कभी नही बदलता है मेरा गाँव!! 
बिजलियां भी है धूप भी है उजाले भी होगें चारों तरफ, 
ना जाने क्यों अंधेरों में भी चमकता है मेरा गाँव!! 
कोई कितना ही पकड़े अपने तहज़ीब के हाथ से, 
इसे जितना पकड़ो उतना ही फिसलता है मेरा गाँव!! 
यहाँ जलसा भी है कब्रिस्तान भी है और भी है कुछ, 
बस आधा बसता है आधा उजड़ता है मेरा गाँव!! 
कभी जीवन में कभी मरन में कभी स्याह के हथेली पर
बस यूहीं कतरा-कतरा लम्हा-सा बिखरता है मेरा गाँव!
न लफ्ज़ है बयान की बस एक अनसुलझा दौड़ है, 
एक विचित्र खलिश की आग पर जलता है मेरा गाँव!!

– राहुलदेव गौतम 

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