तुम न आये थे तो – फैज़ अहमद फैज़

फैज़ अहमद फैज़

तुम न आये थे तो हर चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
और अब शीशा-ए-मय, राहगुज़र, रंगे-फ़लक
रंग है दिल का मेरे “खूने-जिगर होने तक”
चम्पई रंग कभी, राहते-दीदार का रंग
सुरमई रंग की है सा’अते-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, खस-ओ-ख़ार का रंग
सुर्ख फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू-रंग, शबे-तार का रंग
 

आसमाँ, राहगुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीगा हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आईना है

अब जो आये हो तो ठहरो कि कोई रंग, कोई रुत, कोई शय
एक जगह पर ठहरे
फिर से इक बार हर इक चीज़ वही हो कि जो है
आसमाँ हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय

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