विदेश में भारतीय भाषाएँ

विदेश में भारतीय भाषाएँ

हिंदी भाषा भारतीय जनता के विचारों का माध्यम है, अपने आप को अभिव्यक्त करने की शैली है और इसी नींव पर टिकी है भारतीय संस्कृति. बाल गँगाधर तिलक का कथन इसी सत्य को दिशा दे रहा है  “देश की अखंडता-आज़ादी के लिए हिंदी भाषा एक पुल है”. 
हमें अपनी हिंदी ज़ुबाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये 
कहा किसने सारा जहाँ चाहिये
हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये
तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ
निगाहों में वो आसमाँ चाहिये 
मुहब्बत के बहते हों धारे जहाँ
वतन ऐसा जन्नत निशाँ चाहिये 
जहाँ देवी भाषा के महके सुमन
वो सुन्दर हमें गुलसिताँ चाहिये..! 
भारतवर्ष की बुनियाद “विविधता में एकता” की विशेषता पर टिकी है और इसी डोर में बंधी है देश की विभिन्न जातियाँ, धर्म व भाषाएँ. भारतीय भाषाओं के इतिहास में एक नवसंगठित सोच से नव निर्माण की बुनियाद रखी जा रही है. भाषा, सभ्यता, संस्कृति, का चोली-दामन का साथ है. भारत के हर प्रान्त से विभिन्न देशों में हमारे भारतीय जाकर बसे हैं -मारिशियस, सूरीनाम, जापान, मास्को, Thailand, England, USA, Canada, जहाँ उनके साथ गई है कशमीर से कन्याकुमारी तक के अनेक प्राँतों की भाषाएँ, जिसमें है उत्तर की पंजाबी, सिंधी, उड़ीया, म.पी, यू.पी की भाषाएँ, गुजराती, बंगाली, राजस्थानी, मराठी, और दक्षिण प्रांतों की तमिल, तेलुगू और कोंकणी
भारतीय भाषाएँ
भारतीय भाषाएँ

भाषा. यही भाषाएँ अपनी अपनी संस्कृति से जुड़ी रहकर अपने प्राँतीय चरित्र को उजागर करती है. संस्कृति को नष्ट होने से बचाना है तो सर्व प्रथम अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी को बचाना पड़ेगा.

आज़ादी के पहले और आज़ादी के बाद जो भारतीय विदेशों में जाकर बसे उनमें सामाजिक फ़र्क है. आज़ादी के पहले वाले मजबूर, मज़दूर, कुछ अनपढ़ लोग ग़रीबी का समाधान पाने के लिये मारिशियस, सूरीनाम, गयाना, त्रिनदाद में जा बसे जहाँ उन्हें अपनी ज़रूरतों के लिये सँघर्ष करना पड़ा. 
आज़ादी के बाद जो भारतीय गए वो कुशल श्रमिक भारतीय थे, पढ़े लिखे थे, और महत्वकांक्षा वाले व्यक्ति थे. उनमें आत्म विकास की चाह और साथ-साथ अपनी मात्र भूमि के विकास की चाह भी थी. भारतीय धर्म, संस्कृति, साहित्य की पुष्ठ भूमि उनके पास भी है, लेकिन उन्हें जो अभाव विदेशों में महसूस होता है वह है, आपसी संबंधों का अभाव, पुरानी और नई पीढ़ी के बीच बढ़ती हुई  पीढ़ियों के बीच की रिक्ति. वहाँ की विकसित जीवन शैली और भारतीय सभ्यता, इन दोनों जीवन के रहन-सहन के अंतर के कारण एक असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है. संस्कृतिक मूल्यों को लेकर, पारिवारिक सँबंधों को लेकर, एक अंतर-द्वंद्व पैदा होता है, और यही अंतर-द्वंद्व इस भारतीय भाषा के लिये बड़ी बुनियाद है. 
हर इक देश की तरक्की उसकी भाषा से जुड़ी हुई होती है, वही हमारे अस्तित्व की पहचान है. उसकी अपनी गरिमा है. भाषा केवल अभिव्यक्ति ही नहीं, बोलने वाले की अस्मिता भी है, और उसके जीवन शिली का प्रतीक भी, जिसमें शामिल रहते हैं आपसी संबन्धों के मूल्य, बड़ों का आदर-सम्मान, परिवार के सामाजिक सरोकार, रीति-रस्मों के सामूहिक तौर-तरीके. विदेशों में गए हुए भारतीय परिवारों का परिचय जिस सभ्यता से होता है, उस सभ्यता में किशोरावस्था आने से पहले बच्चा माँ-बाप से अलग हो जाता है, पति-पत्नि के रिश्ते की कड़ियाँ आर्थिक आज़ादी के कारण ढीली पड़ जाती हैं, समझौते पर जीवन व्यतीत हुए जा रहे हैं. कुछ पाकर कुछ खोने के बीच के अंतरद्वंद्व का समाधान पाने के लिये, मानवीय, नैतिक, अदर्श मूल्य बनाए रखने के लिये, भारतीय संस्कृति की स्थापना करने और हिंदी को विश्व मंच पर स्थान दिलाने का कार्य किया जा रहा है. इस महायज्ञ में हिंदी भाषी ही नहीं, पंजाबी और गुजराती भाषियों का भी योगदान है, जो निरंतर निस्वार्थ भाव से कार्य करते आये हैं- धर्म के रूप में, साहित्य के रूप में, और भाषा के रूप में.  अब तो सरिता का बहाव अंतराष्ट्रीयता की ओर बढ़ रहा है, और अगर मैं अमेरीका की बात करूं तो इस दिशा में मक्सद को मुकाम तक लाने के लिये निम्न रूपों से प्रयत्न हो रहे हैं: 
१. संस्था गत / 
२. व्यक्ति गत /
३. मीडिया गत रूप में 

१. संस्था गत रूप में न्यू यार्क के भारतीय विध्या भवन की ओर से हिंदी को एक दिशा हासिल हुई है, जिसके निवर्तमान अध्यक्ष है श्री सतीश मिश्र. उनके निर्देशन के अंतरगत हिंदी शिक्षण और संस्थाओं के साहित्य और संस्कृतिक कार्य सफलता पूर्वक हो रहे हैं.
अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, एक ऐसा संस्थान है जो विश्व में हिन्दी भाषा और साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये काम कर रही है. इसके नेत्रित्व में भाषा की प्रगति को दशा और दिशा मिल रही है. भारतीय विद्या भवन NY में भाषा, व् साहित्य संस्कृति को लेकर अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं. इस समिति का मुख्य उदेश्य हैं-
हिन्दी शिक्षण – द्वितीय भाषा के रूप में 
प्रकाशित पत्रिका: विश्वा और ई-विश्वा 
समारोह और स्तरीय काव्य गोष्ठियाँ 
हिंदी शिक्षण की दिशा में सफल प्रयासों के कारण आज अमेरिका में कई विश्वविध्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है, लायोला, आयोवा, ओरेगन. शिकागो, वाशिंगटन, अलबामा, फ्लोरिडा, यूनीवर्सिर्टी ओफ टेक्सास, रटगर्स, एन,वाइ,यू, कोलम्बिया, हवाई, और अनेक शिक्षा स्थानों में.  
हिंदी को विदेशी भाषा के रूप में मान्यता हासिल हो इसके लिये निश्चित पठ्यक्रम पढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे क्षात्रों को हिंदी ज्ञान के लिये गुण (credit) मिलें. विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में हिन्दी को द्वितीय भाषा के रूप में पढ़ाने के लिए शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार करना और शासन द्वारा हिंदी को विदेशी भाषा के रूप में मान्यता के लिये प्रयास ज़ारी हैं. न्यू जर्सी के कुछ स्कूलों में हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में मान्यता हासिल हुई है. हम भारतियों का लक्ष्य यही है कि जर्मन, फ्रेंच, स्पैनिश, रूसी, चीनी व जापानी भाषाओं की तरह हिंदी भी हर स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई जाए. अमेरिका शिक्षा विभाग का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जा रहा है. हिंदी प्रसार के इन प्रयत्नों के अतिरिक्त इसी दशक में समिति ने अपनी वेब-साइट को विकसित किया है, जिसका नाम है <http://www.hindi.org>
American Council For Teaching Foreingn Language ( ACTFL) की व्यवस्था के अंतरगत जून से अगस्त २००७ और दो वर्ष बाद भी एक कार्यशाला हुई जिसमें चीनी, फारसी, अरबी, उर्दू भाषाओँ को शामिल किया गया था. हर साल जून महीने में अमेरिका के अनेकों शहरों में हिंदी की कार्यशालाएं होती है जिसमें भावी शिक्षकों को सत्रों में बांटकर ग्ज्ञान-विग्यान और -गुजराती, पंजाबी, मराठी, बिहारी, सिंधी व् अन्य प्रांतीय भाषाओं व् संस्कृति से सम्बन्धित कक्षाएं प्रतिभागियों को गंयान प्रदान करती हैं.                                                                              समारोह और स्तरीय काव्य गोष्ठियाँ व पत्रिकाएँ
अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी अमेरिका की पहली और सबसे पुरानी संस्था है. इस संस्था की एक विशिष्ट परम्परा रही है , वह है अमेरिका में कवि सम्मेलनों का आयोजन. अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति का चौदहवाँ अधिवेशन अप्रेल २००८ में आयोजित किया गया, जिसका मुख़्य विषय रहा “वैश्वीकरण के युग में हिंदी” . संस्थापक डॉ.कुंवर प्रकाश चंद्रप्रकाश सिंह अलोक मिश्र जी हैं. इस समिति की त्रैमासिक मुख्य पत्रिका है विश्वा, जिसके प्रबंध संपादक डॉ. रवि प्रकाश सिंह व् मुख्य संपादक हैं श्री रमेश जोशी जिनके संपादन तहत देश-विदेश के रचनाकारों को साहित्य से जोड़ने का बखूबी प्रयास हुआ आ रहा है.  
इस के अतिरिक्त ‘अखिल विश्व हिन्दी समिति” संस्थागत रूप में कई स्कूलों की स्थापना करती रही है जहाँ पर भाषा प्रेमी अटलाँटा, क्रानबरी, में अपनी सेवाएं प्रेषित कर रहे हैं इस समिति के अध्यक्ष हैं Dr. Bijoy K. Mehta ( <http://www.hindisamiti.org/> ). इस समिति के द्वारा आयोजित कई अधिवेशन, व साहित्यक गोष्टियाँ NY के Hindu Center, Flushing में संपन्न हुआ करतीं हैं.  इस संस्था की ओर से त्रैमासिक पत्रिका “सौरभ” निकलती है जिसके मुख़्य संपादक और अंतर्ष्ट्रीय अध्यक्ष हैं डा. दाऊजी गुप्त. इन सभी कार्यों से यह स्पष्ट है कि संस्थाओं द्वारा प्रवासी भारतीय भाषा की जड़ें मज़बूत करने में लगे हुए है.                                                              
न्यू यार्क स्थित ” हिंदी न्यास समिति” की ओर से आयोजित सातवाँ अधिवेशन 6 और 7 अक्टूबर, 2007 में हुआ जिसमें मैं भी शामिल रही. लोक इकाई की संपदा है लोक भाषा, लोक गीत, लोक गाथा, नाटक, कथन और प्रस्तुतीकरण, जिसका अनूठा संगम इस अधिवेशन के दौरान देखने को मिला, अविस्मरनीय है. श्री राम चौधरी, श्री कैलाश शर्मा से मिलने का अवसर मिला. उनकी पूरी टीम ने आश्चर्यजनक रूप से “विभिन्नता में एकता” का जो समन्वय प्रस्तुत किया, वह काबिले तारीफ़ रहा. देखने को मिली हमारे देश के तीज त्यौहार की झलकियाँ, विभिन्न प्राँतों की शादियों की रस्मों के साथ पेशगी, जलियनवाला बाग की अंधाधुंध गोलियों की बौछार, और देश के वीरों के स्वतंत्रता संग्राम की स्म्रतियाँ. समिति की ओर से प्रकाशित त्रेमाहिक पत्रिका “हिंदी जगत”- देश विदेश को जोड़ने का काम कर रही है. इस कार्य में जापान से श्री सुरेश ऋतुपर्ण जुड़े हुए हैं. कुछ और भी पत्रिकाए जो अमेरिका व कैनेडा से साहित्य का संचार कर रही है वे है हिंदी चेतना (कैनेडा – -श्यान त्रिपाठी), और वसुधा (कैनेडा- स्नेह ठाकुर), अब विभोम स्वर(सुधा ॐ ढींगरा) स्थापित हुई हैं.  
२. व्यक्ति गत रूप में 
व्यक्तिगत रूप में कुछ सस्थाएं है जो न्यू यार्क व न्यू जर्सी में बड़े ही सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैः
हिंदी.यू एस.ए अमेरिका स्थित न्यू जर्सी की जमीं पर हिंदी को नई पीढ़ी को हिंदी के साथ जोड़ने का काम कर रही है. इसके स्वयं सेवक श्री देवेंद्र सिंह अनेक गतिविधियों द्वारा प्रवासी बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़े रखने में कामयाब रहे है. पच्चीस से ज़्यादा पाठशालाएं चल रही हैं. यह संस्था और ७०० से अधिक छात्र व छात्राएं छट्टी
देवी नागरानी
देवी नागरानी

कक्षा तक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. पच्चास स्वंय सेवक इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं. कई कार्यशालाओं का आयोजन, मंदिरों में हिंदी बाल- विहार, घरों में, सार्वजनिक स्थानों में साप्ताहिक तौर पर हो रहा है. हिंदी.यू एस.ए हर साल हिंदी महोत्सव का आयोजन करता है जहाँ. social and cultural activities के साथ तीज त्यौहार के पर्व भी मनाए जाते हैं. हिंदी भाषा वह धागा है जो हर प्रंतीय भाषा को अपने साथ गूंथ कर उसे अपनी आत्मीयता से जोड़ लेता है. इनकी ओर से प्रकाशित ई-पत्रिका “कर्म‍भूमि” अपने प्रयासों से हिंदी के प्रचार प्रसार में अपना हाथ बँटा रही है.

हिंदी विकास मँडल सुधा ओम ढींगरा के देख रेख में अपने आप एक दीप प्रज्वलित कर रहा है इसी दिशा में. ये हिंदी सेवक सेविकायें अपने निजी समय से कुछ समय निकाल कर छुटी के दिनों में बाल विहार कक्षाँएं चला कर परदेस में देस का माहौल बनाये रखने में कामयाब हुए हैं. अनेक त्रिवेणियों के रूप में विकसित कर रही है – हिन्दी भाषा का विकास, संगीत, नाट्य, वायलिन वादन,शास्त्रीय संगीत, अमरीका में यह एक अद्भुत महा विश्वविद्यालय है जहाँ पर वतन का दिल धड़क रहा है. हर साल दो बार संस्कृतिक कार्यक्रम होते है जहाँ संस्था के छात्रों के अलावा कई रचनाकार, लेखक भी भागीदारी लेते है जहाँ उनका सम्मान भी किया जाता है. बाल मनोविग्यान के आधार पर एक आधार शिला बन कर राह रौशन करते हुए, भारतीय इतिहास से जुड़ने की प्रेरणा देती है.  
Hindu Religion classes Chinnmaya mission and Sadhu Vaswani ission in different cities of USA भी इन्हीं संस्कारों से जोड़ने के प्रयास के अंतरगत आयोजित पाठशालाएं चलाती है, जहाँ गीता सार, संस्कृति के श्लोक व संगीत सिखाया जाता है. मात्रभाषाओं को भी प्रमुखता मिल रही है जिसमें पंजाबी, गुरमुखी, सिंध, तमिल, लगभग २० प्रंतीय भारतीय भाषाएं देवनागरी लिपी में सिखाई जाती है. किसी ने खूब कहा है-  ” तुम्हारे पास लिपी है, भाषा है, इसलिये तुम हो, लिपी गुम हो जाये, भाषा लुप्त हो जाये, तुम अपनी पहचान खो बैठोगे.” 
हिंदी और क्षेत्रिय भाषाओं का आपस में कोई टकराव नहीं, बल्कि वे एक दूसरे के पूरक हैं. किसी कवि की कल्पना इस संद्रभ में किस सुंदरता से भाषा की सजावट बुन रही है देखिये-
भाषाएं आपस में बहनें 
बदल बदल कर गहने पहनें
हिंदी भाषा व संस्कृति को बनाये रखने का प्रयास ये हिंदी सेवी निस्वार्थ रूप में कर रहे हैं,  जहां भाषा व सभ्यता की प्रगति दिन ब दिन बढ रही है. प्रंतीय भाषाओं के संदर्भ में जो कहा , वही सत्य दोहराते हुए यह मानना होगा कि “मौलिक चिंतन यदि अपनी मात्र भाषा में ही किया जाये तो उसका परिणाम अनुकूल होता है. भाषा की स्थिति जटिल तब होती है जब वह प्रयोग में नहीं आती हो या अपनी पहचान खो देती है.” 
३. मीडियाः वैश्वीकरण के इस दौर में संचार प्रणाली द्वारा पूरे विश्व में Telephone, mobile, computer, T.V Cinema, radio व internet जैसे माध्यमों से भौगोलिक दूरियों का मतलब बदल गया है. जनमानस पर हिंदी का प्रभाव गहरा हो गया है.
ब्लाग के माध्यम से देश‍विदेश के लोग आपस में जुड़े 
अनेकों वेब पत्रिकाएं internet द्वारा विदेशों में बसे भारतीय जनता को प्राप्त होती है, इनमें खास है साहित्यकुँज(सुमन घई), अनुभूति एवं अभिव्यक्ति (पुर्णिमा वर्मन), ए-कविता(अनूप भार्गव) गर्भनाल (आत्माराम जी), कविताकोश, गध्यकोश- वेब दुनिया, और भारत की प्रकाशित पत्रिकाएं और दैनिक पत्र जन मानस पर हिंदी का गहरा प्रभाव डालति रही है . भूगोल के दायरों को मिटाने में कामयाब यह यज्ञ  globalisation का सफल संकेत है और इस प्रकार का आदान-प्रदान हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित करने का महत्वपूर्ण कदम है. 
डलास से एक साप्ताहिक रेडियो पत्रिका ” कवितांजली” हर रविवार को प्रसारित होती है जो नेट द्वारा विश्व में सुनी जाती है. भाषाई विकास की दिशा में यह अच्छा प्रयास है. (इस प्रसारण के संयोजक: डा० नंदलाल सिंह प्रस्तुतकर्ता : आदित्य प्रकाश सिंह) 
Internet की प्रणाली द्वारा दुनिया के किसी राष्ट्र की सीमा रेखा नहीं रही, कंम्प्यूटर पर विभिन्न भाषाओं के font उपलब्द्ध होने के कारण वेब साईट सँस्करण अंग्रेज़ी या अन्य कई भाषाओं में पड़ा जा सकता है, जैसे “चिट्ठाजगत”. इसीसे दुनिया को global village का रूप हासिल हुआ है. महात्मा गाँधी का विश्व ग्राम का सपना सभी भौगोलिक सीमाएं तोड़कर आधुनिक संचार प्रणालियों द्वारा साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है. 
इन्सान मानव जाति का प्रतिनिधि है ओर भाषा माँ सम्मान होती है जो हर प्राँत से मात्रभाषा का सैलाब बनकर बहती है, और वह तब तक सुरक्षित है जब तक प्रचार-प्रसार के हर अंग का पालन होता रहेगा. Charity begins at home , के इस सत्य का अनुकरण करते हुए अगर भाषा की शुरूवात शिशु से होती है, उसके साथ आंगन में लोरी बनकर, या गायत्री मंत्र की गूंज बनकर गूंजती है तो सच मानिये, हमें किसी भाषा भय से परीचित होना पड़े, या उस भाषा के लुप्त होने को लेकर किसी शंका या समाधान के बारे में चिंतित होने की आवश्यक्ता नहीं. जब तक यही मात्र भाषा व संस्कृति की मिली जुली वसीयत विरासत के रूप में आने वाली पीढ़ियों को मिलती रहेगी, तय है कि हमारे साथ साथ हमारी भाषा भी जी पायेगी. संस्कृति तोड़ने की नहीं जोड़ने की प्रतिक्रिया है. प्रवासियों ने भारतीय भाषा और संस्कृति को जिस तरह विश्व भर में फैलाया है, वह प्रयास अद्वतीय है. इसीसे विदेश में हिंदी भाषा के प्रचार में इज़ाफा हुआ जा रहा है. यह उनके साहित्य के प्रति प्रेम, जागरूकता व निष्ठा का फल है, इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.                                                                           विशव मंच पर इस प्रतिभाशाली नव युग की पीढ़ी को सर्व भाषाओं की दिशा में विकसित होता देखकर यह महसूस होता है, कि हर युग में रविंद्रनाथ टैगोर का एक शंतिकेतन स्थापित हो रहा है. विश्वास सा बंधता चला जा रहा है की देश हमसे दूर नहीं है, जहाँ जहाँ इस तरह की संस्कृति पनपती रहेगी वहीं वहीं हिंदुस्तान का दिल धड़कता रहेगा और उसकी सुगन्ध चहूँ ओर रोके नहीं रुकेगी. मेरी ग़ज़ल का एक शेर इसी भाव में भीना भीना सा- 
बाड़े सबा वतन की चन्दन सी आ रही है
यादों के पालने में मुझको झुला रही है                                                    
रहती महक है इसमें, मिट्टी की सौंधी सौंधी 
मेरे वतन की खुशबू, केसर लुटा रही है.      
                                               
इस भाषायी नवजागरण का नया आगाज़ बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार है. जयहिंद

 देवी नागरानी ,९-डी॰  कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० . फ़ोन: 9987938258,  (“विदेश में भारतीय भाषाएं” के अंर्तगत मेरी विचारधारा का प्रस्तुतीकरण)

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