पत्नी कहानी जैनेन्द्र कुमार
Patni Jainendra Kumar
पत्नी कहानी जैनेन्द्र कुमार पत्नी कहानी के पात्र पत्नी कहानी के पात्र पत्नी कहानी का उद्देश्य पत्नी कहानी के पात्र पत्नी कहानी का सारांश patni jainendra kumar – पत्नी कहानी का आरम्भ शहर के एक मकान से होता है। इस मकान में एक बीस बाईस वर्षीय स्त्री रसोई घर में अँगीठी के पास बैठी है।रात के लगभग 12 बज रहे हैं। स्त्री का पति प्रातः काल से घर से बाहर गया हुआ है।अभी तक नहीं लौटा है।अँगीठी की आग राख होती जा रही है। अतः स्त्री आग जलाये रखने के लिये उसमें कोयला डालती है।स्त्री का नाम सुनन्दा और पति का नाम कालिन्दीचरण है।कालान्तर में कालिन्दीचरण अपने मित्रों के साथ बहस करता हुआ कमरे में प्रवेश करता है। उनकी बहस का विषय देश की आजादी, हिंसा-अहिंसा, एवं नीति-अनीति है।पत्नी सुनन्दा पति का शुभ चाहती है।वह इतना जानती है कि जिस कार्य के लिए उसके पति ने घर-द्वार छोड़ दिया है, वह निश्चय ही अच्छा कार्य होगा।अपने सामान्य विवेक से वह यह भी जानती है कि अधिकारी या सरकार से लड़ना ठीक नहीं है। इसी बीच उसे अपने पुत्र की याद आती है जो कुछ दिन पूर्व कवलित हो चुका है।वह अपनी आँखों में आये आँसुओं को पोंछ लेती है।इसी बींच रसोई घर में कालिन्दीचरण का प्रवेश होता है। वह चार व्यक्तियों के लिए भोजन की माँग करते हैं।सुनन्दा चुप है।कालिन्दीचरण उसके न बोलने पर नाराज होकर कहते हैं कि यदि तुम बोल नहीं सकती हो तो भोजन कोई नहीं करेगा।बैठक में पहुँचकर वह कहते हैं कि सुनन्दा की तबीयत ठीक नहीं है।भोजन किसी होटल से ही मिल सकता है।अभी होटल सम्बन्धी बहस चल ही रही थी कि सुनन्दा एक बड़ी थाली में खाना लाकर उनके सामने रख देती है।यह देखकर कालिन्दीचरण झेंप उठे और रसोई घर में जाकर सुनन्दा पर बिगड़ उठे कि जब मैं मना कर चुका था तो खाना ले आने की क्या आवश्यकता थी। सुनन्दा ने शान्त स्वर में कहा-“खाओगे नहीं ?” .
पत्नी कहानी जैनेन्द्र कुमार |
इस बात से वह निरुत्तर हो उठे और बोले कि “खाना और है ? सुनन्दा ने अचार ले जाने के लिए कहा। वह अचार लेकर चले गये। सुनन्दा के लिए कुछ भी बचा नहीं था।सुनन्दा के मन में दःख हुन कि इन्होने एक बार भी नहीं पूछा कि तुम क्या खाओगी।
सुनन्दा घर में अकेली रहकर भी रात-रात भर जागकर पास बठकर पति की प्रतीक्षा करती है। उसे अपनी नहीं, पति की चिन्ता रहती है। इस कारण प्रतीक्षा से भी वह ऊबती नहीं है। वह कहती है- “वह जाने कब आ जायेंगे। एक बज गया है। कुछ हो, आदमी को अपने देह की फिक्र करनी चाहिए।’
जिज्ञासु नारी –
अटूट सेवा भावना –
उसका जीवन उदास है।उसका पुत्र काल-ग्रसित हो उठा है।पति लापरवाह है।घर में वह अकेली निरुत्साहित होकर रहती है।
पति के थोड़े प्यार को पाकर वह अपना समस्त दुःख भल जाती है।वह रात के भोजन की बात पर कहती है कि वह क्षमा प्रार्थी की सी बात क्यों करते हैं। वह हँसकर क्यों नहीं कहते कि कुछ खाना बना दो। जैसे मैं गैर हूँ। पति के लिए भूखी रहने में भी उसे गौरव और सन्तोष है।वह कहती है- “मुझे तो खुश होना चाहिए कि उनके लिए भूखे रहने का मुझे पुण्य मिला।
पत्नी कहानी जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा लिखी गयी एक चरित्र प्रधान कहानी है।पूरी कहानी पत्नी रूपी पात्र सुनंदा के ऊपर आधारित है।कहानी का नामकरण पत्नी बहुत ही संक्षिप्त और सार्थक ,जिससे पाठक त्वरित ही पहचान जायेंगे कि कहानीकार किसका वर्णन करने जा रहा है।पत्नी रूपी सुनंदा के आदर्श चरित्र का वर्णन करना लेखक का उद्देश्य रहा है ,जिसमें वह सफल रहा है।