पांचवा आम चुनाव 1971

पांचवा आम चुनाव 1971: दो हिस्सों में बंटी कांग्रेस, इंदिरा गांधी पर जनता ने जताया भरोसा

1967 के बाद साल 1971 में लोकसभा चुनाव हुए । आजाद भारत का यह पांचवा आम चुनाव होने के साथ-साथ देश का पहला मध्यावधि चुनाव भी था । कांग्रेस के अंदर मची उथल-पुथल इसी लोकसभा चुनाव से पहले खुलकर सामने आई । वहीं पाकिस्तान का बंटवारा भी इसी साल में देखने को मिला । इसी लोकसभा के वक्त में देश ने पहली बार आपातकाल लगते भी देखा, जिसके बाद कांग्रेस की स्थिति बिगड़ गई और जनता पार्टी सामने आई । 1971 में कुल 520 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें से 352 पर कांग्रेस को जीत मिली थी । इसके बाद कांग्रेस ने लगातार पांचवी बार सरकार बनाई थी । इस चुनाव में कुल 15.15 करोड़ वोट डाले गए थे । कुल वोटरों में से 55.3 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था । इस जीत में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 43.68  % था ।

पहले मध्यावधि चुनाव 

कांग्रेस पार्टी के अंदर चले आ रहे मतभेद धीरे-धीरे बढ़ने लगे । फिर 1969 में मोरारजी देसाई को ‘अनुशासनहीनता’ के लिए निष्कासित कर दिया गया । इस घटना के बाद कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई जिन्हें कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) कहा गया । इंदिरा ने दिसंबर 1970 तक सी.पी.आई. (एम) के समर्थन से एक अल्पमत वाली सरकार को चलाया । वह आगे अल्पमत की सरकार नहीं चलाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने चुनावों की अवधि से एक वर्ष पहले मध्यावधि लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी । 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था, जिसकी वजह से उन्हें भारी जीत मिली । इस चुनाव में कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें भी हासिल की थीं । 1967 में कांग्रेस को 283 सीटों पर जीत मिली थी और इस लोकसभा चुनाव के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 352 हो गया । इस चुनाव में कुल 54 पार्टियों ने अपना भाग्य आजमाया था । सी.पी.आई. (एम) 29 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही ।  वहीं मोरारजी देसाई की कांग्रेस (ओ) को 16 सीट मिलीं और वह तीसरे नंबर की पार्टी बनी ।

71 का चुनाव इंदिरा जीत चुकी थीं । पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश बना कर पड़ोसी देश के दो टुकड़े भी किए जा चुके थे लेकिन उस वक्त देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी । भारत-पाक युद्ध में आई भारी आर्थिक लागत, दुनिया में तेल की कीमतों में वृद्धि और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट ने देश की आर्थिक कठिनाइयों को बढ़ा दिया था । इसी बीच 12 जून 1975 में कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा ।  दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें चुनावी भ्रष्टाचार में लिप्त पाया और उनके चुने जाने तक को अवैध बता दिया ।  इंदिरा पर चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था । इस पर इंदिरा ने इस्तीफा देने की बजाय देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी ।  इसके बाद चुनाव स्थगित करवाए गए और राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया ।  प्रेस पर भी बैन लगा दिया गया । इंदिरा के इस फैसले से जनता के बीच पहली बार कांग्रेस के प्रति गुस्सा काफी बढ़ गया । अपने इस फैसले से  होने वाले नुकसान से शायद तब तक इंदिरा खुद भी वाकिफ नहीं थीं । यही चुनाव आगे चल कर जनता पार्टी के उदय और केंद्र में कांग्रेस की पहली चुनावी हार का कारण बना ।

बरतानवी हुकूमत से देश के आजाद होने के साथ ही जिस तरह महात्मा गांधी की कांग्रेस अनौपचारिक रूप से समाप्त हो गई थी । ठीक उसी तरह जवाहरलाल नेहरू की कांग्रेस भी उनकी मौत के चंद सालों बाद यानी 1969 में आते-आते खत्म हो गई और उसकी जगह ले ली इंदिरा गांधी की कांग्रेस ने । 1971 के आम चुनाव से कोई डेढ़ साल पहले एक ऐसी घटना हुई जिस से कांग्रेस के विभाजन पर आधिकारिक मुहर लग गई । यह घटना थी अगस्त 1969 में हुआ राष्ट्रपति चुनाव । इस चुनाव में इंदिरा गांधी बाबू जगजीवन राम को कांग्रेस का उम्मीदवार बनाना चाहती थीं लेकिन लेकिन कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक में उनकी नहीं चली । निजलिंगप्पा, एस.के. पाटील, कामराज और मोरारजी देसाई जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओं की पहल पर नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपती पद के लिए कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार बना दिए गए । यह एक तरह से इंदिरा गांधी की हार थी । संसदीय बोर्ड के फैसले के बाद इंदिरा गांधी भी नीलम संजीव रेड्‌डी की उम्मीदवारी की एक प्रस्तावक थीं लेकिन उन्हें रेड्डी का राष्ट्रपति बनना गंवारा नहीं था । इसी बीच तत्कालीन उपराष्ट्रपती वराहगिरी व्यंकट गिरि (वी.वी. गिरि) ने अपने पद से इस्तीफा देकर खुद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया । 

स्वतंत्र पार्टी, समाजवादियों, कम्युनिस्टों, जनसंघ आदि सभी विपक्षी दलों ने वी.वी. गिरि को समर्थन देने का एलान कर दिया । चुनाव के ऐन पहले इंदिरा गांधी भी पलट गई और उन्होंने कांग्रेस में अपने समर्थक सांसदों-विधायकों को रेड्डी के बजाय गिरि के पक्ष में मतदान करने का फरमान जारी कर दिया । इंदिरा गांधी के इस पैंतरे से कांग्रेस में हड़कंप मच गया । वी.वी. गिरि जीत गए और कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार रेड्डी को दिग्गज कांग्रेसी नेताओं का समर्थन हासिल होने के बावजूद पराजय का मुंह देखना पड़ा । वी.वी. गिरि की जीत को इंदिरा गांधी की जीत माना गया ।

निर्धारित समय से एक साल पहले हुए चुनाव 

इस घटना के बाद औपचारिक तौर पर कांग्रेस दोफाड़ हो गई । बुजर्ग कांग्रेसी दिग्गजों ने कांग्रेस (संगठन) नाम से अलग पार्टी बना ली । इंदिरा गांधी के लिए यह बेहद मुश्किलों भरा दौर था । उनकी सरकार अल्पमत में आ गई थी । अपने समक्ष मौजूदा राजनीतिक चुनौतियां का सामना करने के लिए इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने और पूर्व राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स के खात्मे जैसे कदम उठाकर अपनी साहसिक और प्रगतिशील नेता की छवि बनाने की कोशिश की । अपने इन कदमों से वे तात्कालिक तौर पर कम्युनिस्टों को रिझाने में भी कामयाब रहीं और उनकी मदद से ही वे अपनी सरकार के खिलाफ लोकसभा में आए अविश्वास प्रस्ताव को भी नाकाम करने में सफल हो गईं । लेकिन इसी दौरान उन्हें यह अहसास भी हो गया था कि बिना पर्याप्त बहुमत के वे ज्यादा समय तक न तो अपनी हुकूमत को बचाए रख सकेंगी और न ही अपने मनमाफिक कुछ काम कर सकेंगी, लिहाजा उन्होंने बिना वक्त गंवाए नया जनादेश लेने यानी निर्धारित समय से पहले ही चुनाव कराने का फैसला कर लिया ।

दिसंबर,1970 में उन्होंने लोकसभा को भंग करने का एलान कर दिया । इस प्रकार जो पांचवीं लोकसभा के लिए चुनाव 1972 में होना था, वह एक साल पहले यानी 1971 में ही हो गया । इस चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपनी “गरीब नवाज” की छवी बनाने के लिए “गरीबी हटाओ” का नारा दिया । बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवीपर्स के खात्मे के कारण उनकी एक समाजवादी छवी  तो पहले ही बन चुकी थी ।  विपक्षी दलों के पास इस सबकी कोई काट नहीं थी । गैर कांग्रेसवाद का नारा देने वाले डॉ. राममनोहर लोहिया के निधन के बाद इंदिरा गांधी का मुख्य मुकाबला बुजुर्ग संगठन कांग्रेसियों से था । चूंकि राज्यों में संविद सरकारों का प्रयोग लगभग असफल हो चुका था, लिहाजा देश ने इंदिरा गांधी में ही अपना भरोसा जताया । चुनाव में कम्युनिस्टों को छोड़कर संगठन कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की बुरी तरह हार हुई ।

गूंगी गुड़िया ने सबके दांत खट्टे कर दिए

1971 के लोकसभा चुनाव को बतौर मतदाता 27 करोड़ 42 लाख लोगों ने देखा । इनमें 14.36 करोड़ पुस्र्ष और और 13.06 करोड़ महिलाएं थीं । मतदान का प्रतिशत 55.27 रहा यानी करीब 15 करोड़ लोगों ने मताधिकार का उपयोग किया । जिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनने के बाद विरोधियों ने गूंगी गुड़ियां कहा था, उन्हीं इंदिरा गांधी ने इस चुनाव में अपने आक्रामक अभियान से विपक्ष के दांत खट्टे कर दिए । उनकी पार्टी कांग्रेस को दो तिहाई से भी ज्यादा यानी 352 सीटों पर जीत मिली । वोटों में भी करीब तीन फीसदी का इजाफा हुआ । कांग्रेस को 43.68 फीसदी वोट हासिल हुए । उसके कुल 441 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे, जिनमें से सिर्फ चार की जमानत जब्त हुई । इस चुनाव में संगठन कांग्रेसियों के पैरों तले जमीन खिसक गई । उनके 238 उम्मीदवारों में से मात्र 16 जीते ओर उसमें भी 11 गुजरात से जीते थे । संगठन कांग्रेस के 114 उम्मीदवारों को जमानत गंवानी पड़ी । पार्टी को प्राप्त मतों का  प्रतिशत 10.43 रहा । जनसंघ को भी झटका लगा लेकिन वह 1967 के चुनाव में मिली 35 में से 22 सीटें जीतने में कामयाब रहा । उसे 7.35 प्रतिशत वोट मिले । उसके कुल 157 उम्मीदवार चुनाव मैदान मे थे जिनमें से 45 की जमानत जब्त हो गई थी । सोशलिस्टों और स्वतंत्र पार्टी की हालत तो और भी खराब रही । प्रजा समाजवादी पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी और स्वतंत्र पार्टी तीनों को मिलाकर मात्र 13 सीटें मिलीं । तीनों का वोट प्रतिशत भी करीब 6.5 % रहा । इनके 215 उम्मीदवारो में से 132 की जमानत जब्त हो गई थी । इन सबके विपरीत कम्युनिस्टों की सीटों में जरूर इजाफा हुआ । मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मा.क.पा.) को 25 सीटों पर जीत मिली जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भा.क.पा.) भी अपनी 23 सीटें बचाए रखने में सफल रही । इन दोनों को मिलाकर करीब 10 फीसदी वोट मिले । मा.क.पा. के 85 में से 31 की और भा.क.पा. के 87 में से 33 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई । इस चुनाव की खास बात यह रही कि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में दो क्षेत्रीय शक्तियों ने असरदार उपस्थिति दर्ज की । आंध्र में तेलंगाना प्रजा समिति को 10 सीटों पर जीत मिली जबकि तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कडगम (द्र.मु.क.) के खाते में 23 सीटें आईं । इस चुनाव में 14 निर्दलीय भी जीते । चुनाव में कुल 2784 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था जिनमें से 1707 की जमानत जब्त हो गई थी । 

इंदिरा की आंधी में कई दिग्गज हार गए

इस चुनाव मे इंदिरा गांधी के करिश्मे के चलते विपक्ष के कई नेता बुरी तरह  हार गए । जिन दिग्गज कांग्रेसियों ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत कर संगठन कांग्रेस नाम से अलग पार्टी बनाई थी उनमें से अधिकांश को हार का सामना करना पड़ा । मोरारजी देसाई को छोड़कर लगभग संगठन कांग्रेस के सभी बड़े नेता चुनाव हार गए । आंध्र प्रदेश की अनंतपुर सीट से दिग्गज संगठन कांग्रेसी नीलम संजीव रेड्डी को एक अदने कांग्रेसी ए.आर. पोन्नायट्टी ने हरा दिया । बिहार के बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से संगठन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं तारकेश्वरी सिन्हा को कांग्रेस के धर्मवीर सिंह ने हराया । अशोक मेहता, यमनालाल बजाज, सुचेता कृपलानी और अतुल्य घोष ये सब के सब कांग्रेस छोड़ संगठन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव ल़ड़े और पराजित हुए । अशोक मेहता को महाराष्ट्र की भंडारा सीट से कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद दुबे ने हराया तो वर्धा से यमनालाल बजाज को गणपत राय कदम ने हराया । सुचेता कृपलानी फैजाबाद से कांग्रेस के रामकृष्ण सिन्हा के हाथों पराजित हुई । अतुल्य घोष को आसनसोल से मा.क.पा. के राबिन सेन ने हराया । कई दिग्गज सोशलिस्ट नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा । बिहार की मुंगेर लोकसभा सीट से मधु लिमये को कांग्रेस के देवनंदन प्रसाद यादव ने हराया था । मणिराम बागड़ी हरियाणा की हिसार सीट से और रवि राय ओडिशा की पुरी सीट से हार गए । रवि राय को कांग्रेस के जे.बी.  पटनायक ने हराया। ओडिशा की ही संबलपुर सीट से किशन पटनायक भी हारे । राजस्थान के बाडमेर से जनसंघ के भैरोसिंह शेखावत भी हारे । उन्हें कांग्रेस के अमृत नाहटा ने हराया । भा.क.पा. नेता ए.बी. बर्धन भी 1971 का चुनाव हारे थे । उन्हें महाराष्ट्र की नागपुर सीट से फारवर्ड ब्लाक के जे.बी. भोटे ने हराया था । भा.क.पा. की ही रेणु चक्रवर्ती और अरुणा आसफ अली भी चुनाव हार गई थी । रेणु को मा.क.पा. के मोहम्मद इस्माइल ने और अरुणा आसफ अली को बांग्ला कांग्रेस के सतीशचंद्र सामंत ने हराया था ।

“गरीबी हटाओ” का नारा खूब चला और देश की राजनीति में इंदिरा गांधी का दबदबा कायम हो गया । देश में यह सवाल उठना बंद हो गया कि नेहरू के बाद कौन ? सबको जवाब मिल गया कि सिर्फ और सिर्फ इंदिरा गांधी । लेकिन इंदिरा का गांधी का असली करिश्मा इस आम चुनाव के बाद तब दिखा जब पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम जीतकर वे दक्षिण एशिया में एक सशक्त नेता के तौर पर उभरीं । अटल बिहारी वाजपेयी जैसे मुखर विपक्षी नेता ने भी उन्हें दुर्गा का अवतार कहा । लेकिन इन उपलब्धियों ने इंदिरा गांधी को थोड़े ही समय में निरंकुश बना दिया । वे चाटुकारों से घिर गईं । इसका नतीजा यह हुआ कि उनका करिश्मा 1977 में खत्म हो गया । 

इंदिरा से चुनाव में हारे राजनारायण अदालत में जीते 

इस चुनाव में इंदिरा गांधी एक बार फिर रायबरेली से चुनाव लड़ी और जीतीं । उन्होंने मशहूर समाजवादी नेता राजनारायण को मतों के भारी अंतर से हराया । लेकिन इस चुनाव में इंदिरा गांधी की यही जीत आगे चलकर उनके राजनीतिक पतन का कारण भी बनी । राजनारायण ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन की वैधता को इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी । उनका आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया । कोर्ट ने राजनारायण के आरोपों को सही पाया और इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार देते हुए उन्हें पांच वर्ष के लिए कोई भी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दे दिया । इस तरह चुनाव मैदान में हारे राजनारायण इंदिरा गांधी को अदालत में हराने में कामयाब हो गए । उसी दौरान जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार से शुरू हुआ आंदोलन भी तेज हो गया था । विपक्षी दलों ने भी इंदिरा गांधी पर इस्तीफे के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था । लेकिन इंदिरा गांधी ने इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले को मानने के बजाय उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी और विपक्षी दलों पर अपनी सरकार को अस्थिर करने और देश में अराजकता फैलाने का आरोप लगाते हुए देश में आपातकाल लगा दिया । इस सबकी परिणति 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के ऐतिहासिक पराभव के रूप में हुई ।

दो राष्ट्रपति, चार प्रधानमंत्री और दर्जनभर मुख्यमंत्री

पांचवीं लोकसभा के चुनाव में जो दिग्गज लोकसभा पहुंचे उनमें से दो नेता ऐसे थे जो बाद में देश के राष्ट्रपती बने, जबकि उनमें चार नेताओं ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला । कांग्रेस के टिकट पर असम की बारपेटा सीट से

पांचवा आम चुनाव 1971

फखरुद्दीन अली अहमद और मध्यप्रदेश के भोपाल से डॉ.शंकरदयाल शर्मा की जीत हुई। तीसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी तो रायबरेली से जीती ही, संगठन कांग्रेस के दिग्गज मोरारजी देसाई भी गुजरात की सूरत सीट से लगातार चौथी बार चुनाव जीतने मे सफल रहे और 1977 के ऐतिहासिक सत्ता परिवर्तन के तहत देश के प्रधानमंत्री बने । कांग्रेस से बगावत कर 1989 में देश के प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह भी इसी चुनाव में उत्तर प्रदेश के फूलपुर से जीतकर पहली बार लोकसभा मे पहुंचे थे । जनसंघ के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी इस बार मध्यप्रदेश की ग्वालियर सीट से जीत कर लोकसभा में पहुंचे और 1998 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे । जवाहरलाल नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद थोड़े-थोड़े समय के लिए देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा भी हरियाणा की कैथल सीट से लोकसभा में पहुंचे । 1971 के चुनाव में ही करीब एक दर्जन ऐसे नेता भी लोकसभा में पहुंचे जिन्होंने बाद में विभिन्न राज्यों में मुख्यमंत्री बने । इलाहाबाद से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर पहली बार हेमवती नंदन बहुगुणा भी लोकसभा में पहुंचे ।

कांग्रेस के ही टिकट पर मध्यप्रदेश की इंदौर सीट से प्रकाशचंद सेठी, बिहार की मधुबनी सीट से जगन्नाथ मिश्र, भागलपुर से भागवत झा आजाद, असम की जोरहाट सीट से तरुण गोगोई, ओडिशा की कटक सीट से जानकी बल्लभ पटनायक, मैसूर की मांडवा सीट से एस.एम. कृष्णा, पश्चिम बंगाल की रायगंज सीट से सिद्धार्थ शंकर राय, हिमाचल की मंडी सीट से वीरभद्रसिंह भी लोकसभा में पहुंचे और बाद में अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री बने । बिहार के मुख्यमंत्री रहे विनोदानंद झा भी बिहार के दरभंगा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीते थे । 1967 में स्वतंत्र पार्टी से और उससे पहले कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचती रहीं ग्वालियर राजघराने की विजयाराजे सिंधिया 1971 के चुनाव में जनसंघ के टिकट पर मध्यप्रदेश के भिंड क्षेत्र से लोकसभा में पहुंचीं । इसी चुनाव में उनके बेटे माधवराव सिंधिया मध्य प्रदेश के ही गुना संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में पहुंचने में कामयाब रहे । माधवराव ने भी जनसंघ के टिकट पर ही चुनाव लड़ा था और यह उनका पहला चुनाव था । पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर से भा.क.पा. नेता ज्योतिर्मय बसु और अलीपुर सीट से इंद्रजीत गुप्त जीते तो बर्दमान से मा.क.पा. के सोमनाथ चटर्जी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर महाराष्ट्र की राजापुर सीट से मधु दंडवते भी पहली बार लोकसभा में पहुंचे । महाराष्ट्र की ही सतारा सीट से कांग्रेस के यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण भी चुनाव जीतने मे सफल हुए ।

कलकत्ता दक्षिण से जीत कर प्रियंजन दास मुंशी लोकसभा मे पहुंचे । बिहार की सासाराम सीट से बाबू जगजीवनराम लगातार पांचवी बार लोकसभा में पहुंचे । गुजरात की गोधरा सीट से स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर पीलू मोदी जीते । रायपुर से एक बार फिर विद्याचरण शुक्ल विजयी हुए । मा.क.पा. नेता ए.के. गोपालन केरल की पालघाट सीट से चुनाव जीतने मे कामयाब रहे । नैनीताल से कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर कृष्णचंद्र पंत जीते । इसी चुनाव में कांग्रे्रस के के.पी. उन्नीकृष्णन भी केरल से लोकसभा में पहुंचे । पांडिचेरी से मोहन कुमार मंगलम भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुंचे । कांग्रेस की ओर से ही उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से राजा दिनेशसिंह और लखनऊ से शीला कौल भी चुनाव जीतीं । शाहजहांपुर से जीतेन्द्र प्रसाद फतेहपुर संसदीय क्षेत्र से विश्वनाथ प्रताप सिंह के बड़े भाई संतबख्श सिंह जीते । सुभद्रा जोशी इस चुनाव में दिल्ली की चांदनी चौक सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतीं । पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस के एच.के.एल. भगत भी चुनाव जीत कर पहली बार लोकसभा में पहुंचे । मद्रास-दक्षिण से द्र.मु.क. के मुरासोली मारन भी चुनाव जीते थे । इसी चुनाव में कांग्रेस के सी.के. जाफर शरीफ मैसूर की कनकपुर सीट से जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे ।

पांचवा आम चुनाव की मुख्य बातें

*पांचवी लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९७१ का । ये चुनाव ०९ दिन तक अर्थात ०१ मार्च से १० मार्च तक चले । पांचवी लोकसभा के लिए उस समय १८  राज्यों और ०९  केंद्रशासित प्रदेशों में ५१८ सीटों के लिए चुनाव हुए ।

*देश की पांचवी लोकसभा १५ मार्च १९७१ को अस्तित्व में आई ।

*पांचवी लोकसभा के चुनाव हेतु ३,४२,९१८ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे । 

*उस समय मतदाताओं की कुल संख्या २७.४२ करोड़ थी । 

*उस समय ५५.२९ % मतदान हुए थे । 

*पांचवी लोकसभा के लिए ५१८ सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल २७८४ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से १७०७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी। 

*पांचवी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में ०१ उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुँचने में सफल हुए थे । 

*इस चुनाव में कुल ६१ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही थी जिन में से २९ महिला उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुई । 

*५१८ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७६ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और ३६ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी । 

*पांचवी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में ५३ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या ०८ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या १७ थी जबकि २८ पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दल भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे थे     । 

*राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल १२२३ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से ३५९ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ४५१ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ७७.८४ % वोट मिले थे ।

*इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल २२४ उम्मीदवार खड़े किए थे।  रिकॉर्ड के अनुसार इन २२४ प्रत्याशीयों में से १२६   प्रत्याशीयों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और ४० प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे।  इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से १०.१७ % वोट मिले थे। 

*इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने २०३ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन २०३ उम्मीदवारों में से १५६ उम्मीदवार अपनी ज़मानत बचाने में भी विफल रहे जबकि १३ उम्मीदवार लोकसभा तक पहुँचने में सफल हुए। इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ३.६२ % वोट मिले थे। 

*इस चुनाव में कुल ११३४ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।  इन ११३४ निर्दलीय उम्मीदवारों में से १४ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे।  कुल वोटो में से ८.३८ % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि १०६६ निर्दलीय उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।

*इस चुनाव में कॉंग्रेस सब से बड़े दल के रूप में सामने आई।  ५१८ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कॉंग्रेस के ४४१ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।  इन में से ३५२ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही ०४ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में कॉंग्रेस को कुल वोटो में से ४३.६८ % वोट मिले थे।

*मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मा.क.पा.)  दूसरी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी।  मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मा.क.पा.) ने कुल ८५  उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे।  इन ८५  उम्मीदवारों में से ३१ उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हुई थी जबकि २५  उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मा.क.पा.)  को कुल वोटों में से ५.१२ % वोट मिले थे।  

*उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय चौथी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के रायबरेली चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची थी।

*सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पांचवी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में ११,६०,८७,४५० (११ करोड़, ६० लाख, ८७ हज़ार, ४५० रुपये) रुपये की राशि खर्च हुई थी ।  

*उस समय श्री एस. पी. सेन वर्मा भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।  

*पांचवी  लोकसभा १८ जनवरी १९७७ को विसर्जित की गई। 

*इस चुनाव के बाद पांचवी लोकसभा के लिए १९  मार्च १९७१ को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।  

*पांचवी लोकसभा के सभापती पद हेतु २२ मार्च १९७७ को चुनाव हुए और जी. एस. ढिल्लों को सभापती और जी. जी. स्वैल को उपसभापती के रूप में चुना गया।  

*पांचवी लोकसभा के कुल १८ अधिवेशन और ६१३ बैठके हुई।  इस लोकसभा में कुल ४८७ बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है। 

*पांचवी लोकसभा की पहली बैठक १९ मार्च १९७१ को हुई थी।

*पांचवी लोकसभा की ५१८ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४५१ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, ४० सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने, १३ सीटों पर पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने जबकि १४ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।

– प्रा. शेख मोईन शेख नईम ,

डॉ. उल्हास पाटील लॉ कॉलेज, जलगाव

7776878784

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