पेड़ लगाओ

पेड़ लगाओ 

पेड़ लगाओ बचाओ वन
 वृक्ष लगाकर बचाओ जीवन
 पर कट रहे हैं वन 
बन रहे हैं भवन 
पेड़ लगाओ
पेड़ लगाओ
भागदौड़ में कौन किसकी सुने 
भवनों में मजे से चल रहा है जीवन
 वह जीवन जिसमें आनंद की धार नहीं
 वह घर जिसमें वृक्ष छायादार नहीं
 वह चमन जिसमें अब फूल खुशबूदार नहीं
 अंधी दुनिया को कैसे समझाऊं 
बिन वृक्ष जीवन का आधार है नहीं
 वह चमन कहां अब 
वह शीतलता कहां अब
बिन वृक्ष जीवन कहां अब
 इक घुटन सी है अब
 जीवन बस कारोबार है अब
 स्वार्थ में खो गए हम
 ध्यान नहीं निज भलाई का
 प्रकृति के लिए  वह मन कहां अब
 आंखों के अंधे मत बनो 
निज स्वार्थ में मत झूलो 
अपराधी प्रकृति के मत बनो
 निज स्वार्थ में गर झूमोगे 
प्रकोप प्रकृति का सहोगे 
समय है अभी भी चेत जाओ
 चहुं दिसि अब पेड़ लगाओ
 यह पेड़ है कोटर पंछियों के
 पेड़ है पूजा ऋषियों की 
 यह जीवन धारा है इस जीवन की
 मत भूलो गाथा वन की 
गर हर इक पेड़ इक लगाएं 
तो संपूर्ण धरा पर शीतलता छाए 
जीवनदान हम सब  पा जाएं
 पंछी भी झूम के गाएं
सावन में घनघोर घटा छा जाए 
मयूर नाचे पपीहा गाए
घटा हरियाली की झूम के आए
 वातावरण सुखद बन जाए 
स्वस्थ समास ले लंबी उम्र पाएं
 पुष्पों के झुरमुट लहराए 
तितली संघ भ्रमर मंडराए
गर करें हम इतना सा काम 
स्वस्थ सुखद यह हिंदुस्तान बन जाए
– विनोद महर्षि (अप्रिय)
9772255022

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