नज्में
ये लम्हा रेत सा उड़ा दूँ क्या,
जज्बातों को फिर से हवा दूँ क्या,?
कोई मरहम लगा लूँ क्या,?
पड़ गई है मन में दरारें बहुत,
आँसुओं से भिगा लूँ क्या,?
दिल किसी जगह नहीं लगता,
तेरे नाम से फिर बहला लूँ क्या?
कोई शै तेरे जैसी नहीं लगती,
कोई दिया ही जला लूँ क्या?
सांस घुटती है मुहब्बत नाम से,
दिल में इसे दफना लूँ क्या?
चलते हुए इस पतझड़ में ठहर कर,
दामन में एक फूल छुपा लूँ क्या?
(2)
चाँद से नूर जब चुराया होगा,
तब कहीं हुस्न बनाया होगा।
उड़े होगें कुछ रंग हवाओं में,
जुल्फ को जब लहराया होगा।
चमक उठे होगें जुगुनू हवा में,
पलकों को जब उठाया होगा।
कायनात की सारी कशिश से,
उसका रूप फिर सजाया होगा।
ज्यादा क्या कहूँ उसके प्यार में,
पूरा सागर ही समाया होगा।
उतर आये होंगें फरिश्ते धरती पर,
जब उसने प्यार से बुलाया होगा।
हुई होगी उसकी हर दुआ कबूल,
हाथ जब भी उसने उठाया होगा।
(3)
दिल की दहलीज पर कोई आता रहा,
रातों को इसकी भनक तक न लगी,
एक चेहरा भी उसमें जगमगाता रहा।
नींद टूटी नहीं कल की बेचैनी से,
ख्वाब कोई मुझे जो सुलाता रहा।
सूना पनघट था जैसे गुलजार सा,
दिल की दरिया में काई नहाता रहा।
माँ के सीने से लग कर कोई सो गया,
ख्वाब पलकों में ऐसे छुपाता रहा।
तुम जो बिछड़े अब तक आये नहीं,
तेरे जैसा कोई आता-जाता रहा।
टूटकर जो कभी बिखर था गया,
वही ख्वाबों के टुकड़े उठाता रहा।
(4)
इश्क था तो मुझे फिर बुला लेते।
कसूर था गर, मुझे सजा देते।
कहते थे मुझे नमक इश्क का,
खुद में ही मुझे फिर घुला देते।
बिखरे से जज्बातों को समेटकर,
चाहते तो एक बार मुस्कुरा देते।
प्यार एहसास है जिन्दगी भर का,
सारे गिले शिकवे तुम भुला देते।
मौत तो आनी है सबको एक दिन,
मौत से जिन्दगी को मिला देते।
मुहब्बत किसी की बनने से पहले,
जहर देकर मुझे तुम सुला देते।
– गरिमा सिंह
वाणिज्य कर अधिकारी,
अयोध्या