मेंढक/वंदना मुकेश की कविता

डॉ. वंदना मुकेश

कूँए में  क्लोरीन की मात्रा बढ़  गई है
बेचारे भोले जीव-जंतु तड़प रहे हैं
एक-एक कर मर रहे हैं।
बच गया  है मोटी चमड़ीवाला मेंढक,
बेताज बादशाह…
मोटी चमड़ीवाला  मेंढक,
सोचता भी है और दुनिया को
 अपनी ही  नज़र से देखता भी है।
उसकी नज़र में दुनिया
ऊँची, लंबी, सँकरी है।

यह रचना डॉ. वंदना मुकेश द्वारा लिखी गयी है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में सम्बद्ध है.आपने अपने  छात्र
जीवन में ही काव्य लेखन की शुरुआत की थी ।1987 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में
पहली कविता ‘खामोश ज़िंदगी’ प्रकाशन से अब तक विभिन्न प्रतिष्ठित
पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पुस्तकों, वेब पत्र-पत्रिकाओं में विविध
विषयों पर कविताएँ, संस्मरण, समीक्षाएँ, लेख, एवं शोध-पत्र आदि  प्रकाशित
हो चुकी हैं .

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