पैसा भी मिट्टी का ढेला

कलयुग

म सब वाकिफ हैं कि हमारी जिन्दगी में दिखावा,एक दूसरे से होड़ जलन,एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में जुटे रहना—‘आम है।ये सभी कुछ सदियों से बदस्तूर जारी है।  ” खासकर संपति विवाद “। 
आज की बात करें तो, अब दिल से ज्यादा दिमाग को लेकर चलते हैं लोग। चाहे अपने ही घर में संपति को लेकर मसला हो, फिल्मी दुनिया हो,व्यापार हो,सरकारी दफ्तर हो,स्कूल काॅलेज हो,बङी बङी कंपनी हो____ सभी जगह भीङ है ।
  
रोज की बात हो चुकी है, जब देखो तब वही किचकिच  घर में , भइया आंगन में  खड़ा हो कर हल्ला  गुल्ला मचाते , बाबूजी आप बंटवारा कर दीजिए  सब किराया का पैसा खाए जा रहा है  नितिन,  किराए के पैसे का आधा हिस्सा मेरा भी  बनता है न , आप सब  मेरे  हक का पैसा मार रहे हैं,  ठीक नहीं कर रहे आप, मेरा  भी पचास खर्च है।  बाबूजी चुप्पी साधकर अपने कमरे में बैठे रहते , कान में रूई डालकर । भैया हो – हल्ला मचा कर  ऑफिस निकल जाते , मैं भी अपना दूकान खोलने चला जाता । 
  

पैसा भी मिट्टी का ढेला

पहले ही  दिन से  महाभारत होता चला रहा  है घर के किचन में , जेठानी देवरानी के बीच में खाना तैयार को लेकर , कि सुबह का नाश्ता व दोपहर का खाना देवरानी बनाए और शाम का नाश्ता व रात का खाना जेठानी ।   , मां ने जीते जी दोनों के  कामों  को बांट दिया है ताकि घर में शांति रहे। अकसर घरों में स्त्रियों की लड़ाई  रसोईघर से शुरू होकर , घर के बंटवारा तक जाकर पूर्ण विराम लगाती है ।
   
अब मां रहीं नहीं !  अब शुरू  है बाबूजी के पितृ रूपेण परीक्षा की कठिन घड़ी?  , भैया के बंटवारा मांग को लेकर , हमेशा की भांति  मौन व्रत धारण करके  बैठे रहते  अपने कमरे में।घर का खर्च भी है, पैसे की कमी भी नहीं है , चार फ्लैट है जिसका किराया नितिन ही उठाता है, चूकिं दूकान की आमदनी कभी होए कभी न होए। मतलब ठन ठन गोपाल ?

 भैया सरकारी मुलाजिम ठहरे , अच्छी खासी तनख्वाह,  फिर भी !

भैया को पता है छोटे की आय बहुत कम है ,उसके बच्चों की पढ़ाई है ,  घर के राशन पानी का व्यवस्था, बाबूजी की दवाई,  सब नितिन करता है, बाबूजी सब समझते हैं कि घर की बागडोर वही संभाल रहा है । भैया मनी मांइडेड हैं , दिमाग में बैठा है कि पैसा कहां लगाना है आदि।(शेयर, एफ डी, एल आई सी )  मां के रहते सब कुछ ठीक रहा है घर में , पर अब प्रापर्टीज का बंटवारा ।
 
 भैया के कलह से बाबूजी अंदर ही अंदर घुलते जा  रहे हैं , यूं  समझे कि गांधीजी के तीन बंदर के भांति या समझो धृतराष्ट्र।दूसरे दिन बाबूजी चल बसे हृदयाघात से ! नितिन बिलख बिलख कर रोए जा रहा है, उसकी पत्नी भी , भैया अचंभित रह गए हैं ,  प्रकृति के कुठाराघात से। 
  
 तेरहवीं के बाद सब रिश्तेदार चले गए हैं । भैया एकदम से गुमशुम हो गए हैं , बार बार बाबूजी के फोटो को एकटक  देखते रहते हैं , अकेले में सुध बुध खोए जैसे रहते ,एक महीने के बाद बाबूजी की अलमारी खोली मैंने,  उसमें बीस लाख रूपए मिले ,{ तीन भाग में बांट लिए} बाबूजी के नाम से मकान व दूकान के कागज मिले हैं  । 
  
बाबूजी अपना बिल नहीं बना कर गए?  अब क्या किया जाए भैया !
   
सब कुछ अपने नाम कर लो , कुछ सुनीता  (शादीशुदा छोटी बहन)को भी दे दो , हमको कुछ नहीं चाहिए नितिन ! बहुत पापी हूं मैं , बाबूजी के मौत का जिम्मेदार हूं, बाबूजी को  खोंभता रहा , शब्दों के बाण से  कि  बंटवारा कर दीजिए,पर अब ? बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी मेरी ? बाबूजी की बहुत  याद आ रही है नितिन ! दिल पर बोझ ढो रहा हूं। 
   
कोई बात नहीं भैया ,  “विनाश काले विपरीत बुद्धि”।

बाबूजी के स्थान पर आप हैं भैया । याद है न , कि बाबू जी के काम क्रिया संस्कार के   दिन ” सेजिया – दान ” में हम  भाई बहन ने आपको पगड़ी पहनाया है ,(श्राद्ध कर्म का संस्कार,  जिसके तहत छोटे भाई बहन  बड़े भाई को पगड़ी पहनाकर घर का मुखिया घोषित )आप हैं हमारे बाबूजी के समकक्ष!
   
आप ऐसे विचलित होंगे तो हम सबको कौन देखेगा , भैया फूट-फूटकर रो पड़े। वक्त का चोट या मार ने आँखें खोल दी हैं इनकी।  बाबूजी के रहने पर उनका मोल समझ नहीं आया ,   दिमाग लेकर चलते रहे हैं लालच में अंधा बन के या  ?????
  
भैया के  दिमाग के समक्ष दिल का  जीत गया  है  दिमाग पराजित।, उनके अंदर वो सारे गुण समाहित कर गए हैं,  बाबूजी के  जैसा शांत , स्नेहपूर्ण व्यवहार। मुझे भी पिता जैसे बड़ा भाई का साथ  पुन: वापस मिल गया है।
   
तीन हिस्सा में बांटा गया प्रापर्टीज __ भैया , छोटी बहन और मैं । भैया का प्यार , हमदोनों के लिए सदैव बना रहा ।
हमेशा बोलते  रहते भैया, बाबूजी  को स्मरण कर , कि हमारा शरीर मिट्टी का है  और पैसा भी मिट्टी का ढेला ।
   

– अंजू ओझा, पटना

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