प्रसाद और प्रेमचंद की कहानी कला की समीक्षा

प्रसाद और प्रेमचंद की कहानी कला की समीक्षा 

जयशंकर प्रसाद और प्रेमचंद की कहानी कला की समीक्षा jaishankar prasad ki kahani kala jaishankar prasad ki kahani kala ka parichay dijiye premchand ki kahani kala premchand ki kahani kala ki visheshta premchand ki kahani kala par prakash daliye – जयशंकर प्रसाद तथा मुंशी प्रेमचंद जी दोनों ही हिंदी साहित्य गगन के उच्चकोटि के कहानीकार हैं। दोनों की कहानियाँ महत्तम उद्देश्य को लेकर लिखी गयी है। दोनों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानव मंगल की भावना को प्रसारित करने को प्रयास किया है।इस मंगल भावना के विस्तार के लिए इन कहानीकारों ने सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन धारा को ग्रहण किया है।दोनों के कहानी के माध्यम से जीवन तथा जगत को वाणी दी है।इतना होते हुए भी दोनों की कहानियां में विविध दृष्टियों से अंतर देखा जा सकता है – 

कथावस्तु की दृष्टि से 

जयशंकर प्रसाद  व  मुंशी प्रेमचंद जी
जयशंकर प्रसाद  व  मुंशी प्रेमचंद जी
दोनों की कथावस्तु में व्यापक पैमाने का अंतर दिखाई देता है। जहाँ प्रेमचंद ने अपनी कहानियों के लिए सामाजिक धरातल स्वीकार किया है।वहीँ प्रसाद जी ने राष्ट्रीय ,एतिहासिक धरातल को। प्रसाद ने अतीत इतिहास के गौरव को अपनी कहानियों में गाया है।अतीत इतिहास में प्रसाद जी आधुनिक समस्यायों का निरूपण करने में अत्यंत कुशल हैं।प्रेमचंद की कहानियों की कथा वस्तु मूलतः सुधारात्मक है। जहाँ प्रेमचंद के कथानक सपाट ,स्पष्ट और विस्तारमूलक होते हैं ,वहीँ प्रसाद की कहानियों की कथावस्तु कौतुहलपूर्ण ,संस्कृत प्रधान तथा भावात्मक होती है। 

पात्र योजना की दृष्टि से 

प्रसाद की कहानियों में चित्रित पात्रों की संख्या की तुलना में प्रेमचंद की कहानियों में कम पात्र होते हैं। प्रेमचंद की अधिकाँश पात्र वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।उन्हें वर्ग पात्र कहा जा सकता है।परन्तु प्रसाद के अधिकाँश पात्र इतिहास से सम्बंधित होते हैं।प्रेमचंद के पात्र देशकाल तथा परिश्थिति की उपज होते हैं परन्तु प्रसाद के पात्रों में अपना व्यक्तित्व होता है। 

संवाद की दृष्टि से 

प्रसाद की कहानियों में प्रेमचंद की तुलना में उत्त्सम संवाद कौशल दिखाई पड़ता हैं।प्रसाद जी के संवाद काव्यात्मक ,सबल तथा अर्थ गंभीर से पूर्ण हैं।प्रेमचंद की कहानियों में संवाद की कमी पायी जाती है। इस संवादों का कथानक विकास में तो अवश्य महत्व हैं परन्तु चरित्र विकास में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती है। 

भाषा शैली की दृष्टि से 

प्रेमचंद की भाषा सरल और सुबोध होती है।जबकि प्रसाद की भाषा सर्वसाधरण की समझ में नहीं आती है।प्रसाद की भाषा हमेशा अलंकारिक ,काव्यात्मक तथा साहित्यिक कही जा सकती है। प्रसाद की भाषा एक समान होती है ,जबकि प्रेमचंद की बदलती रहती है।प्रेमचंद की कहानियों की शैली व्यास शैली है ,जबकि प्रसाद की समास शैली। 

शीर्षक की दृष्टि से 

दोनों घटना तथा पात्र को शीर्षक के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। प्रसाद जी पात्रों के नाम पर शीर्षक का नामकरण करना उचित मानते हैं। इसी कारण प्रसाद के शीर्षक अधिक आकर्षक होते हैं।प्रेमचंद के शीर्षक पात्र के व्यक्तित्व पर आधारित होते हैं। 
इसी प्रकार भाव कल्पना आदि दृष्टियों से भी दोनों में अंतर पाया जाता है।परन्तु दोनों युगांतकारी कहानीकार हैं। दोनों ने इस विधि को अपनी कहानी कला से संपन्न और श्रेष्ठ बनाया है। 

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