प्रेम की परिभाषा

प्रेम की परिभाषा  

चाहे ना  मुझको देते तुम   यह  जीने की आशा,
आज  मुझको  ना होती यह तुम्हारे बिन निराशा
चाहे तुम ना घोलते
इंद्रधनुष  कैसे रंग जीवन में  ,

प्रेम की परिभाषा
प्रेम की परिभाषा  

तार-तार ना होता  हृदय
इस क्षणभंगुर के आनंद में  ।

यदि जोते न  मुझको
तुम अपने विभिन्न कलाओं से  ,
आज मुझ को दुख ना होता
तुम्हारे मौसम की तरह बदल जाने से।

यदि खोजा न होता
तुमने मुझको ना नक्षत्रों में  ,
दर्द की नदी में डूबी ना होती
उभर जाती नजाकत से  ।

कैनवास के विभिन्न रंगों से
रंगा है तुमने मेरे हृदय को  ,
मिटाती  हूं तो कहते हैं यह
वजूद को तुम्हारे न  उखाड़ फेंको।

यदि तुमने ना हर्षाया होता
यह चंचल सामान मेरा,
तो ना मैं समझ पाती है प्रेम की परिभाषा  ।




–  रुखसार परवीन

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