प्रेम की परिभाषा
चाहे ना मुझको देते तुम यह जीने की आशा,
आज मुझको ना होती यह तुम्हारे बिन निराशा
चाहे तुम ना घोलते
इंद्रधनुष कैसे रंग जीवन में ,
प्रेम की परिभाषा |
तार-तार ना होता हृदय
इस क्षणभंगुर के आनंद में ।
यदि जोते न मुझको
तुम अपने विभिन्न कलाओं से ,
आज मुझ को दुख ना होता
तुम्हारे मौसम की तरह बदल जाने से।
यदि खोजा न होता
तुमने मुझको ना नक्षत्रों में ,
दर्द की नदी में डूबी ना होती
उभर जाती नजाकत से ।
कैनवास के विभिन्न रंगों से
रंगा है तुमने मेरे हृदय को ,
मिटाती हूं तो कहते हैं यह
वजूद को तुम्हारे न उखाड़ फेंको।
यदि तुमने ना हर्षाया होता
यह चंचल सामान मेरा,
तो ना मैं समझ पाती है प्रेम की परिभाषा ।
– रुखसार परवीन