फागुन की मस्ती
खिलखिलाते सुमन से
बाग की शोभा निराली
फागुन |
मन हो जाता आनंदित
देख तितली की अठखेली ।
भंवरे गुन-गुन राग छेड़
मंडराते सुमन-सुमन
नयनाभिराम चारों ओर
मन मयूर देख नील-गगन।
मादक सी सुगंधी
बसंत के मस्त पवन में
रोमांच से भरपूर मन
बासंती बसे नयन में।
कोयल की मीठी कुक
कानों में रस घोलती
पपीहे की बिरही बोली
पिया की याद दिलाती।
बसंत के हवा संग
मादकता फैली सब ओर
चारों ओर रंगों का मेला
फागुन की मस्ती चहुंओर।
गोरी बदन पर खिले
रंग रंगीली चुनर चोली
लगता मदमस्त नयन
सूरत भी भोली-भोली।
गुलाल उड़ाते गली गली
ढोलक मृदंग के धून पर
सब मगन हो नाच रहे
मस्त फाग के ताल पर।
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बसंत का आगाज
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खिले चेहरे बसंत के
जब शिशिर का अवसान हुआ
खिलखिलाने लगे हर ओर
गेंदा गुलाब चंपा चमेली
पलाश तरू साथ गुलमोहर
फिर फागुन का सम्मान हुआ ।
चारों ओर फैलाकर मादकता
बसंती हवा झूमने लगी
कभी इस ओर कभी उस छोर
हवा संग झूमती अलसी
सरसों फूल पीली लकदक
मनमोहक छटा बिखेरने लगी।
आम्र मंजरी पर भंवरों की
गुनगुन राग मन मोहनी
कोयल कूकती डाली-डाली
रसभरे महुआ की बात निराली
फूल-फूल तितलियां डोले
मिजाज मौसम के मन भावनी।
जेकर बसे परदेस पिया
गोरी के ना लागे जिया
सुन पपीहे की बिरही बोली
विकलता में ताके बटिया
सांझ घिरे जब आये पिया
मन ही मन हर्षाए हिया।
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