फिर खुला है दर–ए–अदालत–ए–नाज़
गर्म बाज़ार–ए–फ़ौजदारी हैहो रहा है जहाँ में अँधेर
ज़ुल्फ़ की फिर सरिश्तादारी हैफिर दिया पारा–ए–जिगर ने सवाल
एक फ़रियाद–ओ–आह–ओ–ज़ारी हैफिर हुए हैं गवाह–ए–इश्क़ तलब
अश्क़बारी का हुक्मज़ारी हैदिल–ओ–मिज़श्माँ का जो मुक़दमा था
आज फिर उस की रूबक़ारी हैबेख़ूदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब‘
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है