भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा

भारत को नव्य रैनेसां चाहिए

      
भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा यूपी और बिहार से जिस तरह की बलात्कार की खबरें आ रही हैं वे ‘महान भारत’ की बजाय ‘बर्बर भारत’ की तस्वीर पेश करती हैं।बलात्कार की खबर आते ही हम सब समय दलीय राजनीति और उनके बयानों पर मीडिया की बहस में उलझे रहते हैं ,इससे सामाजिक सचेतनता का व्यापक निर्माण नहीं होता। सामाजिक सचेतनता के व्यापक स्तर पर निर्माण के लिए जरूरी है कि बलात्कार या स्त्री-उत्पीडन के मसलों को हम दलीय राजनीति के फ्रेमवर्क के बाहर निकालकर राष्ट्रीय स्त्री परिप्रेक्ष्य में रखकर देखें। 
    
स्त्री के सवाल राष्ट्रीय सवाल हैं,  उनको दलीय नजरिए की बहसों में उलझाकर मीडिया ने पितृसत्ता और अपराधतंत्र की जाने-अनजाने मदद की है।  दलीय आलोचना के बाहर निकलकर  स्त्री मुक्ति के परिप्रेक्ष्य में बलात्कार और स्त्री उत्पीडन के सवालों पर बहस करनी चाहिए और केन्द्र और राज्य सरकारों पर दवाब बनाना चाहिए। 
       
हाल में अबोध बच्चियों के शारीरिक शोषण की अनेक घटनाएं सामने आई हैं। क्या यह संभव है कि हम समाज में बलात्कार के खिलाफ एकस्वर से बातें करें ! कठुआ में जिस तरह बलात्कार की घटना हुई उस पर दलीय ध्रुवीकरण हुआ,इसी तरह दलीय ध्रुवीकरण बंगाल में भी देखा गया, कठुआ में भाजपाई और बंगाल में टीएमसी बलात्कारियों के पक्ष में अनेक बार नजर आए।हमारी  कोशिश यह होनी चाहिए कि बलात्कार के सवाल को दलीय नजरिए से पेश करने और दलीय गोलबंदी करने से बचें। दलीय गोलबंदी से आगे जाकर कुछ अर्सा पहले अलीगढ़ में ट्विकल के साथ हुई घटना को  जाहिल लोगों ने हिंदू-मुसलमान का मसला बना दिया और इसके आधार प्रशासन से लेकर सोशलमीडिया तक उन्माद फैला दिया । 
      
भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा

मैं  दोहराना चाहता हूँ कि बलात्कार को दलीय नजरिए से न देखें। बलात्कारी अपराधी है और उसकी सजा को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी कार्रवाई पर हमारा मुख्य जोर होना चाहिए। स्त्री संबंधी सवालों,खासकर बलात्कार के सवालों पर सही नजरिए के प्रचार-प्रसार के लिए एक साझा मंच बनाया जाना चाहिए। बलात्कार की घटनाएं राष्ट्रीय शर्म और राष्ट्रीय अपराध है। हमें उन परिस्थितियों की खोज करनी चाहिए जिसके कारण ये घटनाएं बालिका संरक्षण गृह से लेकर निजी संबंधी के घर तक अबाध ढ़ंग से घटित हो रही हैं। 

    
पहली चीज यह कि कानून का समाज में  भय खत्म हो गया है। केन्द्र और राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे कानून के शासन की स्थापना करें। कानून के शासन की स्थापना के लिए जरूरी है कि सरकारें पुलिस विभाग को सख्त हिदायतें जारी करें और कानूनी नजरिए से काम करें,निहित स्वार्थी नजरिए से काम न करें। इसके लिए हर स्तर पर कमेटियां बनायी जानी चाहिए। पहले चरण के तौर पर पुलिस बलों को कानूनी चेतना से लैस किया जाय और स्थानीय स्तर पर निरंतर जन-जागरण अभियान चलाया जाय, यह काम शहरों से लेकर गांवों के स्तर तक किया जाना चाहिए। इस देश में बलात्कार से पीड़ित औरतों की संख्या हजारों में हैं।यह संख्या सीमा पर मारे गए और घायल सैनिकों और अर्द्ध सैन्य-बलों की संख्या से कई गुना ज्यादा है। यह समस्या आतंकवाद और पाक घुसपैठियों की समस्या से भी ज्यादा गंभीर है। बलात्कार के अपराधी हमारे नागरिक हैं और हम सबके बीच में सीना तानकर घूमते रहते हैं। 
     

कानून के शासन की स्थापना

बलात्कार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए पहले कदम के तौर पर इस तरह के अपराधियों की सूची को सार्वजनिक किया जाय। जब भी किसी बलात्कारी की गिरफ्तारी हो तो स्थानीय पुलिस के संरक्षण में गधे पर बिठाकर उसका सार्वजनिक जुलूस निकाला जाय। इससे बलात्कारियों के खिलाफ सामाजिक सचेतनता पैदा करने में मदद मिलेगी।फिल्मों और सीरियल में बलात्कार का प्रदर्शन बंद हो। इंटरनेट पर पोर्न साइट पर सख्ती से पाबंदी लगाई जाय।इसके अलावा सामाजिक सचेतनता के रूप में बलात्कार के खिलाफ स्कूलों-कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जुलूसों, सेमीनार और पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जाय।यह काम निरंतर कई वर्षों तक चलाया जाना चाहिए। 
    
निर्भया फंड को महिला संगठनों और राजनीतिक संगठनों की मदद से समाज सुधार और सचेतनता से जुड़े सवालों पर खर्च करने की व्यवस्था सरकार की जाय। 
    
इसके अलावा बलात्कार के मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित की जाएं और उनके जल्द निबटारे की न्यायिक व्यवस्था की जाय। बलात्कार संबंधी अदालती फैसलों को अधिक से अधिक प्रचारित-प्रसारित किया जाय। यह काम केन्द्र और राज्य सरकारों की मदद लेकर किया जाय, यदि सरकारें इस काम में मदद न करें तो जनांदोलन के जरिए दवाब पैदा किया जाए।
यह लेख जगदीश्वर चतुर्वेदी जी द्वारा लिखा गया है .प्रोफेसर एवं पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग,कलकत्ता विश्वविद्यालय,कोलकाता, स्वतंत्र लेखन और स्वाध्याय .संपर्क ईमेल – jcramram@gmail.com

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