मंदिर पर कविता
मंदिर मंदिर नहीं
मन का द्वार है
यहां भगवन ही नहीं बसते
ये शुद्धता का भंडार है
स्वर्ग सी असीम शांति
आत्मीयता का संसार है
वैसे तो कन कन में भगवान है
पर
होता मिलन यहां, ये उसका घर बार है
पत्थर रूप में मूरत उसकी
रूप उसके हजार हैं
मस्जिद ,गुरुद्वारा ,देवालय
स्थानों का अंबार है
नित रोज जाने से यहां
मिलती खुशियां अपार है
आत्मा का परमात्मा से मिलन
मोक्ष प्राप्ति का सू द्वार है
तुझ में मुझ में सभी में
होता भगवान का वास है
करो नमन इंसानियत को
सुख मिलता बारंबार है
इंसान इंसान से प्यार करें
भगवान को भी इस की दरकार है
भगवान को भी इस की दरकार है
मंदिर मंदिर नहीं
मन का द्वार है
– सोनिया अग्रवाल
प्राध्यापिका अंग्रेजी
राजकीय पाठशाला सिरसमा
कुरूक्षेत्र