माली की व्यथा

माली की व्यथा


छोटे से बीज को बोया था
रात दिन दुनिया से उसे बचाया था
खून पानी से सींचा  था
फिर एक दिन, लंबे इंतजार के बाद
नन्हा सा पौधा उगाया
देख कर मन बहुत हरशाया
कोमल सुनहरा कितना मासूम
अपना है बस यह था मालूम

माली की व्यथा
माली की व्यथा

आंधी तूफान से उसे बचाया
रक्षा की ,पानी से सींचा
पौधा धीरे-धीरे बढ़ रहा था
लहराता लहराता, मन भी खिल उठा था
ठंडी हवा का झोंका देता
फुहार के बीच, वो चमक रहा था
फिर एक दिन प्यारा सा फूल आया
महक गया सारा घर आंगन
घर बन गया मथुरा वृंदावन
हर्ष हो रहा था किस्मत पर
धनवान हूं मैं इसे पाकर
मेरी तो उम्र भर की यही कमाई है
इसमें तो ताउम्र की खुशियां समाई है
एक व्यापारी उधर से गुजरा
नजर पड़ी फूल पर, कुछ देर ठहरा
बोला ,”प्यारा सुंदर फूल है”
यह तो मेरे घर में जाएगा
वहां पर ठाठ से रहेगा
तोड़ ले गया वह कोतुहुलवश
माली रह गया पीछे, बेबस
कोई पकाए कोई खाए
जग की रीत पुरानी है
धनवान ने हमेशा से ही की मनमानी है 

निर्धन की इच्छा सदा ही बेमानी है





– सोनिया अग्रवाल 
प्राध्यापिका अंग्रेजी
राजकीय पाठशाला सिरसमा
कुरूक्षेत्र

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