मैं स्त्री उदास हूँ

मैं स्त्री उदास हूँ

मैं स्त्री हूँ
उदास जिंदगी से
आँखें छलकती हैं
मेरी हर दिन,
पीड़ाएँ अनेकानेक
मैं स्त्री उदास हूँ

चलतीं हैं

साथ मेरे
न देहरी, द्वार लाँघ सकती
न उलझ सकती हूँ
अपनों से
क्योंकि मैं बँधी हूँ?
जिम्मेदारियों से|
मैं पढ़ लिख गयी
जैसे तैसे, पर विवशता आज भी
घेरे हुए मुझे
घुन की तरह चुंगली है
करूँ भी क्या?
कहाँ जाऊँ?
साथ नहीं मेरे कोई
मैं अकेली खड़ी हूँ
हक जताने,
शायद मेरा संघर्ष ही
मुझे पहचान दिला दे
समाज में
विश्व में|
 

– अशोक बाबू माहौर 
ग्राम कदमन का पुरा, तहसील अम्बाह, जिला मुरैना (मप्र) 476111 
मो 8802706980

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