शाम और तुम
सोचती हूं,
एक शाम में क्या-क्या संभव है?
हवा में तैरती वो बाैर की खुशबू,
घर लौटने की आस में कुछ बेघर परिंदे,
बादलों पर पांव रखकर आगे बढ़ती हवा ,
और पेड़ों से झूलते अधमरे पीले पत्ते ,
आफरीन बानो |
या…
कभी गालों पर हवा की एक मीठी सी थपकी ,
ढलते सूरज और चांदनी की आंख मिचौली ,
बालकनी में सूखती लाल चादर का कोना ,
उम्रदराज दरख़्तो पे जन्मीं कोमल हरी पत्तियां,
धीरे धीरे सूरज की आखिरी किरण का पलकों को छूकर गुज़र जाना,
और, दिलों का खालीपन ,
कितना कुछ बुनती है एक शाम,अपने दामन में,
सबकुछ संभव है एक शाम में ,
अगर कुछ संभव नहीं है, तो वो है “तुम्हारा होना “।
मगर तुम्हारे बग़ैर ये शाम,
सिर्फ शाम है
और कुछ भी नहीं !!!
तुम्हारे बगैर, ये शामें कुछ भी करलें ,
मगर ये उदास शामें, उदास ही रहेंगी
इसलिए इनका ढल जाना ही बेहतर है !!
लगता है हर शाम की किस्मत अधूरी है,क्युकी इनकी किस्मत में तुम जो नहीं ❤️
– आफरीन बानो
स्नातक द्वितीय वर्ष की विद्यार्थी
निवास – लखीमपुर खीरी