रजनीगंधा
रजनीगंधा हो तुम मेरे जीवन की….
अरमानों का ताज़गी भरा प्याला हो
बेखुदी मे डूबी मद-मस्त हाला हो।
तुम्हारे आँखों मे डूबने को जी करता है
खिला-खिला सा पुष्प हो मेरे जीवन की…
प्रीति जैन |
सुरमई ढलती शाम का दिया हो..
ख़ुशी से गदराया मेरा कोमल हिया हो।
केशुओं की घटाओ मे कही खो न जाऊँ..
बहका सा अहसास हो मेरे जीवन की.
हर घडी रिसता-पिसता आभास हो तुम..
अरमानों का सेहरा सजाये विश्वास हो तुम।
ये जिंदगी न मिलेगी दोबारा जान लो गर..
पूरी क़ायनात हो तुम मेरे जीवन की।
मरमरी अंगो पर मखमल सा लिबास हो…
पल-पल लगती अनबुझी प्यास हो तुम।
मँझदार मे फँसकर बैठा तुम्हारे इंतजार मे..
नैया की पतवार हो तुम मेरे जीबन की..।
रजनीगंधा हो तुम मेरे जीवन की…
रजनीगंधा हो तुम……………………।
यह रचना प्रीति जैन(परवीन)द्वारा लिखी गई है।आप स्वतंत्र रूप से,काव्य,लेख,संस्मरण,कहानी लिखती रही है।(हमारा आत्म-मंथन)..public group की संपादक है।लोकजंग,समाचार जगत पत्रिका व विश्व -गाथा,कलम के कदम पुस्तको आदि मे रचनाये छपती रही है।।