रजनीगंधा

रजनीगंधा

रजनीगंधा हो तुम मेरे जीवन की….
अरमानों का ताज़गी भरा प्याला हो
बेखुदी मे डूबी मद-मस्त हाला हो।
तुम्हारे आँखों मे डूबने को जी करता है
खिला-खिला सा पुष्प हो मेरे जीवन की…

प्रीति जैन
प्रीति जैन

सुरमई ढलती शाम का दिया हो..
ख़ुशी से गदराया मेरा कोमल हिया हो।
केशुओं की घटाओ मे कही खो न जाऊँ..
बहका सा अहसास हो मेरे जीवन की.

हर घडी रिसता-पिसता आभास हो तुम..
अरमानों का सेहरा सजाये विश्वास हो तुम।
ये जिंदगी न मिलेगी दोबारा जान लो गर..
पूरी क़ायनात हो तुम मेरे जीवन की।

मरमरी अंगो पर मखमल सा लिबास हो…
पल-पल लगती अनबुझी प्यास हो तुम।
मँझदार मे फँसकर बैठा तुम्हारे इंतजार मे..
नैया की पतवार हो तुम मेरे जीबन की..।

रजनीगंधा हो तुम मेरे जीवन की…
रजनीगंधा हो तुम……………………।

..✍प्रीति जैन

यह रचना प्रीति जैन(परवीन)द्वारा लिखी गई है।आप स्वतंत्र रूप से,काव्य,लेख,संस्मरण,कहानी लिखती रही है।(हमारा आत्म-मंथन)..public group की संपादक है।लोकजंग,समाचार जगत पत्रिका व विश्व -गाथा,कलम के कदम पुस्तको आदि मे रचनाये छपती रही है।।

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