श्रृंगार

श्रृंगार


जब श्रृंगार कर वो मेरे घर में आएंगे ,
               मेरे नाम का सिन्दूर मांग में भरकर आएंगे ।
दमकेगा चाँद सा मुखड़ा उनका,
               हया आँखों में अपनी भरकर आएंगे ।
समां और भी हसीं हो जाएगा उनके अहसास से,
               सीने पे मेरे वो हाथ धरकर आएंगे ।
खिल जाएगी हर कली दिल की दोनों वजूदो में ,
                छु देंगे वो तो दुआओ से झर के आएंगे ।
साँसों में खुसबू महक जाएगी उनकी ,
                जब प्यार के बीच समंदर में आएंगे ।
रफ़्तार धड़कनो की धीरे धीरे बढ़ने लगेगी ,
                पहली दफा जो आँखों के सामने आएंगे ।
पायल की हर झंकार दिल पर दस्तक देगी ,
               जब नजरो से होकर दिल में उतार जायेंगे ।

यह रचना रवि सुनानिया जी द्वारा लिखी है . आप मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के ग्राम कनासिया से हैं तथा साहित्य रचना में गहरी रूचि रखते हैं . 

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