संवेदनाओं के बाजार में

संवेदनाओं के बाजार में



संवेदनाओं के बाजार में,
जब भी मैं जाता हूं करूणा।
मँहगा ही मिलता है मुझे हर सौदा।
कुछ खरीद नही पाता हूं,
अपनें विचारों के घर के लिए।
मेरे पास उतनें पैसे नही,
कुछ मोल ले सकू।
यहां बेशकिमती है वक्त के हर छण।
लेकिन ठगा महसूस करता हूं,
हर बार मुझे क्यों मँहगा पड़ जाता है हर चीज।
भूख से तड़पता है मेरे तन्हाईयों में,
पला मेरे विचारों का अबोध बालक।
मजबूर हूं खामोश रातों का पानी ही पिलाता हूं,
उसे हर रोज इन चुपचाप आंखों से।

संवेदनाओं के बाजार में

कड़वा खाता हूं और उसे खिलाता हूं कड़वा सच।
कितना रोता है वह मेरे सामने,
रोकर हर बार वहीं सवाल करता है।
क्यों पाला आपनें मुझे बेरूख दुनिया में?
क्या मैं इतना अभागा हूं?
हर पल आप मेरा ही ख्याल रखते है!
क्या आप का अपना कोई अस्तित्व नही?
चुप हो जाता हूं कुछ पल के लिए,
उसके तीक्ष्ण चुभते बातों पर।
उत्तर देता हूं-तुम्हें पाया है,
कितनें जन्मों के किस्मतों को मिलाकर,
तुम्ही से जीवन है तुम्ही से मरना।
करूणा! तुम्हारी सौदे बाजी तो अच्छी है,
कितनें सस्ते में हर चीज खरीद लेती हो तुम।
संवेदनाओं के दुकानदार तुम्हारा हर पल,
इन्तजार करते है।
कितनों की तुमनें जिन्दगी संवार दी।
क्या तुम कभी मेरी अपनी नही हो सकती?
तन्हाई में पला मेरे विचारों का सौम्य बच्चा,
तुम्हें हर वक्त पूछता है।
क्या तुम उसके लिए कुछ नही खरीद सकती।
तुम्हें बहुत याद करता है।
क्या तुम्हें उसका भूखा चेहरा याद नही।
बस मेरे लिए न सही,
मेरे उस निराकार बच्चे के लिए,
खोटा ही सही मुफ्त में ही दिला दो उसे,
बस शान्ति।
मैं तो मुफ्त में उसके लिए कुछ नही खरीद पाता हूं।
क्योंकि मेरा स्वाभिमान आड़े आता है।
प्यार से मुफ्त क्या हर चीजे मिल जाती है।
बस एक बार संवेदनाओं के दुकानदारों से,
सौदा ठीक करा दो करूणा।
सिर्फ तुम्ही नही सबकुछ मुफ्त में लेने वाली।
बहुत लोग है आओ हम-तुम भी,
सौदा पक्का कर लेते है इनकी तरह,
चाँद भी मांगता है मुफ्त में सारा आकाश,
अपनी चांदनी का पेट भरने के लिए।
एक दीया भी तो मुफ्त में मांगता है अंन्धेरे से,
हर सपने ,
उजाले में सजाने-सवारने के लिए।
पेड़ भी मांगता है मुफ्त में सूरज से हर,
धूप-छांव,
फलों-पत्तीयों को पालनें के लिए।
दुआयें भी मांगते है मुफ्त में खुदा से,
ताउम्र की खुशियों के लिए।
हिमालय भी मांगता है मुफ्त में बादलों से पानी,
अपनें चंचल नदी के लिए।
तो बताओ करूणा !
तुम भी तैयार हो कुछ देने के लिए,
इस रागहीन,शब्दहीन,उदास बच्चे के लिए।
तुम्हारे हां का इन्तजार रहेगा,
करूणा।
     
                   

– राहुलदेव गौतम

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